महिलाओं में जोश भर रही यह साइकिल वाली ‘आशा’

बचपन में सर से पिता का साया उठ गया। खेल- खिलौने का वक्त मुफलिसी के बीच बीता। मां मजदूरी कर दो पैसे जोड़ती और उससे किसी तरह जलता घर में दो वक्त का चूल्हा। कभी एक शाम बस ग़म का निवाला खा पेट भर लेना होता। उम्र बढ़ी तो मां के कंघे से कंघा मिला

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कभी पढ़ाई छोड़ उठाई बंदूक, आज हजारों छात्रों को दे रहे मार्गदर्शन, पढ़ें जुनून और जीत की यह कहानी

ये कहानी उस शख्स की है जिसने अपने टूटते – जुड़ते सपनों से हताश होने की जगह उसे हथियार बना इतिहास रच डाला। जीवन के हर पहर संकटों से टकराहट होती रही। कभी पढ़ाई बीच में छूटी तो कभी कलम वाले हाथ में बंदूक थामने की नौबत आ गई। सपने बनते बिखरते रहे पर नहीं

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