महिलाओं में जोश भर रही यह साइकिल वाली ‘आशा’

बचपन में सर से पिता का साया उठ गया। खेल- खिलौने का वक्त मुफलिसी के बीच बीता। मां मजदूरी कर दो पैसे जोड़ती और उससे किसी तरह जलता घर में दो वक्त का चूल्हा। कभी एक शाम बस ग़म का निवाला खा पेट भर लेना होता। उम्र बढ़ी तो मां के कंघे से कंघा मिला

Share Article:
Read More