मुफलिसी से लड़कर अपने जायके की खुशबू को सात समंदर पार तक पहुंचाने वाले गोपाल कुशवाहा की कहानी

उनकी शुरुआती जिंदगी गरीबी से दो-दो हाथ करते बीती। मुफलिसी इतनी कि त्योहारों में भी सूखी रोटी ही नसीब होती। कम कीमत पर खरीदे पुराने कपड़े से तन ढकने का काम चलता। उस शख़्स ने कुंडली मारकर बैठी गरीबी की रेखा को अपने जीवन की रेखा से निकाल फेंकने का प्रण किया और मन में

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इनसे सीखिए जिंदगी का हुनर, फोर्थ स्टेज कैंसर से लड़ बांट रहे जिंदादिली…

होंठों पर मुस्कान.. आंखों में सतरंगी सपनों की बसावट और दिल में लव यूं जिंदगी की जिद लिए धड़कती जिंदादिली.. बात बस यही तक नहीं है इनके चेहरे पर फैला बालपन सा उत्साह यह देखकर आप समझ नहीं पाएंगे कि आखिर मौत का दूसरा नाम कहीं जाने वाले खतरनाक कैंसर के फोर्थ स्टेज से दो

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हौसलों के “जुगनू “थाम बदनाम गलियों से मानव अधिकार आयोग के सलाहकार तक का सफर,

ये कहानी नसीमा की है। उन नसीमा की जो बदनाम तंग गलियों में पली बढ़ी और अपने हौसलों के दम पर न सिर्फ खुद की किस्मत बदली बल्कि सेक्स वर्करों की बेटियों के जीवन सुधारने की मुहिम भी चलाई। मुजफ्फरपुर के रेडलाइट इलाके चतुर्भुज स्थान से राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग की सलाहकार तक का सफर तय

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