यह कहानी एक वैसे डॉक्टर के हौसलों की बानगी है जिन्होंने अपने मजबूत इरादों से उत्तर बिहार में सालों से कहर बरपा रहे चमकी बुखार की न सिर्फ वजह ढूंढी, बल्कि उसे हारने पर मजबूर कर दिया। इनकी कोशिशों से इस इलाके में चमकी का खौफ लगभग थम गया है और बच्चों के चेहरों पर खिलखिलाहट लौट आई है। इतना ही नहीं यह लगातार बिहार के गांव- गांव जा गुदड़ी के लालों को स्वस्थ्य रहने का हुनर भी बांट रहे हैं। अंधेरे वक्त में उम्मीदों के अरुण बन समाज में आलोक भर रहे डॉक्टर अरुण शाह की यह कहानी आपको जरूर पढ़नी चाहिए…
वह बड़ा ही बेरहम वक्त था, सैकड़ों बच्चे काल के गाल में समा रहे थे, हर और रुदन और गम का माहौल रहता। सालों से जैसे ही गर्मी का मौसम आता मुजफ्फरपुर और इसके आसपास के जिलों में एक खौफ का साया मंडराने लगता, यह खौफ था AES यानी चमकी बुखार का। यह बेरहम बुखार कुछ ही मिनटों में बच्चों की जिंदगी छीन लेता, यह वाकया सुनाते -सुनाते प्रसिद्ध पीडियाट्रिक्स डॉक्टर अरुण शाह की आंखें भर आती हैं। वो आगे बताते हैं कि इससे प्रभावित होने वाले ज्यादातर बच्चे हाशिए पर रह रहे समाज से आते ।
देश – दुनिया के अखबार और टेलीविजन चैनल चमकी के तांडव से भरे होते थे। एक पीडियाट्रिक्स होने के नाते मुझे इसने अंदर तक हिला कर रख दिया। पत्रकार मुझसे विशेषज्ञ के तौर पर अपनी राय मांगते थे। । मुझे यह बात हमेशा बेचैन किए रही कि आखिर चमकी बुखार का यह कहर कैसे थमेगा, और क्या मैं इसके लिए कुछ भी नहीं कर सकता।
कई रातें इसी तरह बेचैनी में कटी। मैंने मन ही मन यह प्रण किया कि मुझे चमकी बुखार के इस कहर को खत्म करना है और लौटाना है बच्चों के चेहरों पर एक आजाद मुस्कान। कहते हैं ना कि जब मन में दृढ़ इच्छा शक्ति हो तो कुछ भी असंभव नहीं होता एक कार्यक्रम के सिलसिले में मेरी मुलाकात डॉक्टर टी जैकब जॉन से हुई ।
डॉक्टर जॉन इंडियन काउंसिल फॉर मेडिकल रिसर्च (ICMR) के एंडवांस्ड रिसर्च इन वायरोलॉजी सेंटर के प्रमुख रह चुके हैं। मैंने उन्हें मुजफ्फरपुर आने के लिए मना लिया, डॉक्टर टी. जैकब जॉन के निर्देशानुसार हमने इस खौफनाक बीमारी के वजह तलाशनी शुरू कर दी। हमने काफी कड़ी मेहनत की , और इस नतीजे पर पहुंचे की इस बीमारी का एक बड़ा कारण कुपोषण है। फिर हमने सबसे ज्यादा प्रभावित गांव मे विशेष अभियान चलाया। इस अभियान में लोगों को जागरूक करने के साथी गरीब बच्चों के परिवार में ग्लूकोज और बिस्किट बांटे गए। घर घर जाकर लोगों को यह संदेश दिया कि वह अपने घर के अंदर और बाहर साफ सफाई रखें, अपने बच्चे को घर का बना भरपेट खाना चार से पांच बार दें। खाली पेट रात में ना सुलाएं, उन्हें ज्यादा से ज्यादा पानी पिलाएं और सड़े गले फल से उन्हें दूर रखे । गर्मी के मौसम में बाग बगीचों में धूप में ना निकलने दें।
हमारे अभियान को गांव वालों का भरपूर समर्थन मिला, लोग हमारी बात मानने लगे और देखते ही देखते इन गांव में चमकी बुखार का कहर घटने लगा। हमने सरकार को भी यह प्रस्ताव दिया और सरकारी ने भी जोर शोर से कैंपेन चलाए । नतीजा यह हुआ कि चमकी बुखार का कहर काफी हद तक काबू में आया। मुझे बताते हुए खुशी हो रही है कि हमने जिन गांव में अभियान चलाएं इस साल में वहां एक भी बच्चा चमकी के कारण बीमार नहीं हुआ है। इस साल पूरे मुजफ्फरपुर जिले में चमकी से प्रभावित होने वाले बच्चों की संख्या भी काफी सीमित रही है।
डॉक्टर अरुण शाह का यह शोध जल्द ही दुनिया के बड़े साइंस जनरल में प्रकाशित होने वाला है।
बिहार के गांव-गांव में लगा चुके हैं स्वास्थ्य शिविर
डॉ अरुण शाह ने चमकी जैसे खतरनाक बीमारी को अपने हौसलों से हराने में कामयाबी तो पारी ही, वे लगातार अन्य बीमारियों को लेकर भी बिहार भर में स्वास्थ्य शिविर और जागरूकता अभियान चलाया करते हैं। डॉक्टर शाह कहते हैं कि बच्चे ही देश के भविष्य हैं, किसी परिवार के लिए भी बच्चे ही उम्मीद की किरण होते हैं वैसे में बच्चों का सेहतमंद होना सबसे जरूरी होता है। शहरी इलाके बच्चों के सेहत के प्रति जागरूकता देखी जाती है, ग्रामीण क्षेत्रों में इसका अभाव रहता है। इसे लेकर हमने बिहार भर में निशुल्क शिशु स्वास्थ्य जांच एवं जागरूकता शिविर का आयोजन करते रहते हैं, जिसमें बच्चों का स्वास्थ्य परीक्षण और स्वास्थ्य के प्रति जागरूक किया जाता है। डॉक्टर अरुण शाह बताते हैं कि उनका यह अभियान सालों से चला आ रहा है और अब तक बिहार का कोई भी वैसा गांव नहीं बचा जहां उन्होंने स्वास्थ्य शिविर नहीं लगाया हो।
गांव में बितता है हर रविवार और छुट्टी का दिन
डॉक्टर अरुण शाह का हर रविवार अलग-अलग सुदूरवर्ती गांव में ही बीताता है। वो इन गांवों में निशुल्क शिशु स्वास्थ्य जांच एवं जागरूकता
शिविर का आयोजन करते हैं। डॉक्टर शाह बताते हैं कि दूर-दराज के गांव में जाने के लिए मुझे भोर के तीन बजे ही निकला पड़ता है, और लौटते लौटते देर रात हो जाती है। ऐसे में कई बार सोना भी गाड़ी में ही होता है। वे कहते हैं कि सामाजिक कार्यों से दिल में एक अनोखा सुकून मिलता है।
एंटीबायोटिक के खिलाफ अभियान
डॉक्टर अरुण शाह एंटीबायोटिक के खिलाफ विश्वव्यापी अभियान से भी जुड़े हुए हैं। डॉक्टर शाह बताते हैं कि बेवजह एंटीबायोटिक का इस्तेमाल हमारे स्वास्थ्य के लिए काफी खतरनाक होता है। ऐसा करने से एंटीबायोटिक प्रतिरोध में वृद्धि होती है जो कि वैश्विक स्वास्थ्य के लिए सबसे बड़े खतरे में एक है ।लंबे समय तक एंटीबायोटिक प्रतिरोध संक्रमण से मरीज की मौत के आंकड़े काफी तेजी से बढ़ रहे हैं।
मुफ्त दवा का करते हैं वितरण
डॉक्टर अरुण शाह बीमार बच्चों के बीच मुफ्त दवा का वितरण भी करते हैं। स्वास्थ्य शिविर के साथ ही उनके क्लीनिक पर आए बीमार बच्चों को भी यथासंभव मुफ्त दवाएं उपलब्ध कराई जाती है। डॉक्टर शाह बताते हैं कि उनके द्वारा गठित ‘डॉक्टर अरुण साह फाउंडेशन ‘ दवाइयों की खरीद करता है और उसे मरीजों के बीच वितरित करता हैं।
निशुल्क टीकाकरण अभियान भी
बच्चों के लिए निशुल्क टीकाकरण अभियान भी डॉक्टर अरुण शाह के क्लीनिक में चलाया जाता है। इसका उद्देश्य बच्चों में गंभीर संक्रमण रोग से होने वाली बीमारियों एवं मौतों में कमी लाना है।
डॉक्टर अरुण शाह , द्वारा गठित ‘डॉक्टर अरुण शाह फाउंडेशन’ द्वारा कोरोना महामारी से बचने के लिए भी लोगों को जागरूक किया जा रहा है। कोरोना से बचने का टीका लगवाने के लिए वे लोगों को लगातार प्रेरित करते हैं। कोरोना की लहर में उन्होंने अपने फाउंडेशन के द्वारा गरीबों के लिए निशुल्क मास्क और साबुन का वितरण करवाया। लॉक डाउन की अवधि में भी वे फोन और ऑनलाइन माध्यम से 12 घंटे चिकित्सीय परामर्श देते रहे। ‘डॉक्टर अरुण सा फाउंडेशन’ जाड़े के मौसम में गरीबों के बीच उनकी कपड़ों का वितरण करता रहा है। उत्तर बिहार में आने वाली प्रलयंकारी बाढ़ में भी फाउंडेशन द्वारा राहत कार्य चलाए जाते हैं।
जन्म परिचारक को प्रशिक्षण
प्रसव के दौरान जच्चा और बच्चा दोनों स्वस्थ रहें इसे लेकर डॉक्टर अरुण शाह ने बिहार के अलग-अलग गांव में 7000 से अधिक जन्म परिचारक को प्रशिक्षित किया। इसके लिए अलग-अलग कई टीमों का गठन किया गया था। इससे जच्चा और बच्चा की मृत्यु दर में काफी कमी आई।
मुक्तिधाम में अनोखी पहल
डॉक्टर अरुण शाह के प्रयास से मुजफ्फरपुर के सिकंदरपुर स्थित शवदाह गृह में 40 लाख रुपय की लागत से अत्याधुनिक शवदाह संयंत्र स्थापित है, इस संयंत्र की स्थापना में उन्होंने आर्थिक मदद की । इस संयंत्र के स्थापित हो जाने से जहां शवदाह में वायु प्रदूषण समस्या खत्म हुई है वहीं नौ मन की जगह दो मन लकड़ी में ही परंपरागत हिंदू धर्म अनुसार शवों का अंतिम संस्कार संपन्न हो रहा है। इसके साथ ही डॉ शाह की मदद से शवों को श्मशान घाट तक लाने के लिए मुक्ति रथ वाहन और डीप फ्रीजर की खरीद भी की गई है। डॉक्टर अरुण शाह कहते हैं कि मृत्यु जीवन का अंतिम सत्य है और हर इंसान की मृत्यु के बाद उसका अंतिम संस्कार सम्मान के साथ होना चाहिए। नये संयंत्र की स्थापना से शव दाह में आने वाले खर्च में काफी कमी आई है साथ ही पर्यावरण का संरक्षण भी हो रहा है।
ऐसे बने डॉक्टर
डॉक्टर अरुण सब बताते हैं कि हमारी पारिवारिक पृष्ठभूमि व्यवसाय की रही। पिताजी कपड़े के व्यवसाय से जुड़े थे। मेरी प्रारंभिक शिक्षा मुजफ्फरपुर के मारवाड़ी हाई स्कूल से हुई। मेरे अंदर डॉक्टर बनने की चाहत तो बचपन से थी पर मैंने यह संकल्प किया था कि मैं अपने काबिलियत के दम पर डॉक्टरी की पढ़ाई करूंगा डोनेशन के दम पर नहीं। मैंने दिन-रात पढ़ाई की और फिर मेरा चुनाव दरभंगा मेडिकल कॉलेज में हो गया। डॉ शाह ने देश के प्रतिष्ठित मुंबई हॉस्पिटल से इंटर्नशिप किया।
पहले एनआईसीयू के निर्माण का श्रेय
डॉक्टर अरुण साह को मुजफ्फरपुर के पहले एनआईसीयू के निर्माण का श्रेय भी जाता है। डॉक्टर शाह मुजफ्फरपुर के केजरीवाल अस्पताल में जब चिकित्सक थे तो उन्होंने ही वहां प्रबंधन को एनआईसीयू की जरूरत बताई और इसे स्थापित करने के लिए तैयार किया।
माता पिता के आशीष और ईश्वर की कृपा
सादगी पूर्ण जीवन जीने वाले डॉक्टर शाह अपने जीवन की सफलता का श्रेय अपने माता- पिता और ईश्वर को देते हैं। वे कहते हैं कि पिताजी और माताजी के मार्गदर्शन ने इन्हें हमेशा इंसान बने रहने में मदद की। वे कहते हैं कि बचपन में बताइए मां की छोटी-छोटी बातें जीवन निर्माण में काफी महत्वपूर्ण बन गई। डॉक्टर शाह मानते हैं कि जीवन के हर मोड़ पर ईश्वर की कृपा मिलती रही है। कभी कभी जब हर रास्ते बंद नजर आते हैं तो अचानक एक उम्मीद की लौ दिख जाती है। ईश्वर की कृपा ही है कि मैं इस उम्र में भी कुछ काम कर पा रहा हूं।
मिल चुका है कई सम्मान
डॉक्टर अरुण शाह को चिकित्सा और समाज सेवा के क्षेत्र में कार्य करने के लिए कई अंतरराष्ट्रीय और राष्ट्रीय सम्मान प्रदान किया जा चुका है। रॉयल कॉलेज ऑफ फिजीशियन लंदन ने उन्हें स्वास्थ्य के क्षेत्र में बेहतर कार्य के लिए एफआरसीपी की डिग्री प्रदान की। वे इसके फेलो भी है। डॉक्टर शाह इंडियन एसोसिएशन ऑफ पीडियाट्रिक्स के बिहार चैप्टर के प्रमुख भी रह चुके हैं। वह I.I.M.A , N.N.F के भी फेलो है। वह कई अन्य स्वास्थ्य और सामाजिक संगठनों में भी महत्वपूर्ण पदों पर जुड़े हैं।
इंसानियत सबसे बड़ा धन
डॉक्टर अरुण शाह कहते हैं कि उद्देश्य के बिना जीना मृत्यु के बराबर है। हमें हमेशा एक दूसरे की मदद करनी चाहिए और नेक रास्ते पर चलना चाहिए। आर्थिक संपन्नता से बड़ी मन की संपन्नता होती है। पैसों का वैभव समय के साथ नष्ट हो जाता है पर आपकी कृति आपका व्यवहार हमेशा याद रखा जाता है। हर व्यक्ति को अपनी आत्मा की आवाज सुनने की जरूरत है। आज के एकल होते समाज में अपने अंदर के इंसान को बचाने और संवारने की जरूरत है। आप ऐसा करके देखिए आपको पैसे इकट्ठा करने या उसके पीछे भागने से ज्यादा खुशी मिलेगी।
फिलवक्त डॉक्टर अरुण शाह, रिटायरमेंट की उम्र में भी बच्चों सी उर्जा से लवरेज हो समय और समाज में नई ऊर्जा भरने में जुटे हैं। इनकी कोशिशों से जहां समाज में उजियारा फैल रहा है वही लाखों लोगों को मिल रही है आशा की किरण।