क्या है ‘मुंबई के डब्बावालों की कहानी’..जिसे केरल के स्कूलों में पढ़ाई जाएगी

0
370

डब्बावालों’ की कहानी सुनकर थोड़ा अजीब लगता है न? अब चाहे अजीब लगे या बोझिल, यह कहानी बोरिंग तो नहीं है. इसीलिए केरल के स्कूलों में नौवीं कक्षा के सिलेबस में इसे शामिल किया गया है. अब इसे ‘द सागा ऑफ़ द टिफ़िन कैरियर्स’ नाम से जाना जाएगा. आखिर क्या है मुंबई के डब्बावालों की कहानी, इस रिपोर्ट में हम जानेंगे.

हां, केरल के स्कूलों में नौवीं कक्षा के छात्रों को अंग्रेज़ी की किताब में मुंबई के डब्बावालों की कहानी पढ़ाई जाएगी. स्टेट काउंसिल ऑफ़ एजुकेशनल रिसर्च ऐंड ट्रेनिंग ने 2024 के अपडेटेड सिलेबस में शामिल किया है. अब कहानी को ‘द सागा ऑफ़ द टिफ़िन कैरियर्स’ नाम से जाना जाएगा. इसके लेखक ह्यूग और कोलीन गैंटज़र हैं. कहानी के जरिए बच्चों को डब्बावालों की संघर्ष बताने की कोशिश की गई है.

130 साल से भी ज्यादा पुराना बिजनेस

मुंबई में डब्बा का बिजनेस करीब 130 साल से भी ज्यादा पुराना है. डब्बा वाले मुंबई में घरों से दफ्तर मुंबईकर्स को गर्म खाना पहुंचाते हैं. इनके डिलीवरी सिस्टम की देश ही नहीं विदेशों में भी जमकर तारीफ होती है. मुंबई में साइकिल पर एक साथ ढेरों डिब्बे टंगे हुए आसानी से दिख जाएंगे. साफ शब्दों में कहें डब्बेवाले ऐसे लोगों का एक संगठन है जो मुंबई शहर में काम करने वाले सरकारी और गैर-सरकारी कर्मचारियों को खाने का डब्बा यानी टिफिन पहुंचाने का काम करते हैं.

अब ‘डब्बावाले’ दुनियाभर में फेमस

मुंबई में डब्बा वाले संघ से करीब 5,000 से ज्यादा लोग जुड़े हुए हैं और हर दिन ये लगभग दो लाख से ज्यादा डब्बा पहुंचाने का काम करते हैं. कहा जाता है कि साल 1890 में महादु हावजी बचे (Mahadu Havji Bache) ने इसकी शुरुआत की थी. शुरुआत में यह काम सिर्फ 100 ग्राहकों तक ही सीमित था. लेकिन जैसे-जैसे शहर बढ़ता गया, डब्बा डिलीवरी की मांग भी बढ़ती गई. अब ये इतना बड़ा हो चुका है कि पूरी दुनिया में इसकी चर्चा होती है.

खास यूनिफॉर्म पहनते हैं ‘डब्बावाले’

मुंबई में डब्बा वाले बाकायदा एक खास यूनिफॉर्म पहनकर अपना काम करते हैं. इन्हें आमतौर पर सफेद रंग का कुर्ता-पायजामा, सिर पर गांधी टोपी, गले में रुद्राक्ष की माला और पैरों में कोल्हापुरी चप्पल पहने देखा जा सकता है.

मुंबई के डब्बावाले अब दुनिया भर में अपने काम और मेहनत के लिए मशहूर हो गए हैं. बिजनेस स्कूलों और शोधकर्ताओं ने इनके बिजनेस पर गौर किया है. इसके अलावा उनका जिक्र फिल्म, डॉक्यूमेंट्रीज़ और किताबों में भी है. 2019 में मुंबई के कलाकार अभिजीत किनी ने उनके काम पर एक कॉमिक बुक भी बनाई थी. डब्बावाले अब भारत और विदेशों में आईआईटी और आईआईएम जैसे बड़े संस्थानों में लेक्चर देने भी जाते हैं.

कोविड महामारी में काम हुआ प्रभावित

कोविड-19 महामारी ने उनके काम को काफी प्रभावित हुआ था जिस कारण उनकी संख्या घटकर लगभग दो हजार रह गई थी. अब केवल वही लोग इस काम को कर रहे हैं जिन्हें नौकरी की जरूरत है, क्योंकि उनकी सेवा धीरे-धीरे ठीक हो रही है. जब डब्बावालों को केरल के स्कूल पाठ्यक्रम में शामिल किया गया, तो उन्होंने राज्य के शिक्षा विभाग को धन्यवाद दिया और अपनी सेवा को मिली मान्यता की सराहना की.

Share Article: