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हौसलों के “जुगनू “थाम बदनाम गलियों से मानव अधिकार आयोग के सलाहकार तक का सफर,

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ये कहानी नसीमा की है। उन नसीमा की जो बदनाम तंग गलियों में पली बढ़ी और अपने हौसलों के दम पर न सिर्फ खुद की किस्मत बदली बल्कि सेक्स वर्करों की बेटियों के जीवन सुधारने की मुहिम भी चलाई। मुजफ्फरपुर के रेडलाइट इलाके चतुर्भुज स्थान से राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग की सलाहकार तक का सफर तय करने वाली नसीमा की हिम्मत भरी कहानी आपको जरूर पढ़नी और समझनी चाहिए….

मेरी कहानी उन बदनाम उन बदनाम गलियों से शुरू होती है जिसका नाम जुबा पे लाना भी सभी सभ्य समाज में गुनाह है। मैं मुजफ्फरपुर के रेड लाइट इलाके चतुर्भुज स्थान में पली-बढ़ी। हमने बचपन से ही काफी कुछ झेला, देखा , सुना समझा। अपनी बड़ बड़ी आंखों में बीते वक्त की खामोशी भरते हुए नसीमा आगे कहती है। हम पांच भाई बहन हैं मेरे अब्बा ने किसी तरह हम बहनों को पढ़ने के लिए प्राइवेट स्कूल में दाखिला कराया , पर यह सख्त सख्त हिदायत भी दी कि कभी भी किसी से अपने घर का पता नहीं बताएंगे।
जब मुझसे मेरे सहपाठी घर का पता पूछते तो मुझे बड़ा अजीब सा लगता । मैं सोचती कि यह क्या है और ऐसा क्यों है ? मुझे समझ तो नहीं थी लेकिन ऐसा लगता था कि मैं हर दिन अपने साथ बस्ते में एक झूठ लेकर जाती हूं और एकझूठ लेकर लौटती हूं। मैं और मेरी दोस्त स्कूल से लौटते वक्त इसलिए रास्ता बदलती रहती थी कि कहीं सच बाहर ना जाए।

  यह कहती थी दादी

नसीमा हमसे आगे कहती है कि मेरी मां सेक्स वर्कर नहीं थी ।उन्हें पालने वाली इस पेशे में थी। मेरी परवरिश मेरी दादी ने की जो एक सेक्स वर्कर रही थी इसलिए मैं अपने आपको डॉटर ऑफ सेक्स वर्कर कहती हूं।

नसीमा बताती हैं कि क्योंकि इस पेशे में औरत अपनी बेटी को आगे बढ़ाती है ताकि उसका बुढ़ापा आराम से कट जाए । मेरी दादी भी चाहती तो हम बहनों को इसमें शामिल कर अपना बुढ़ापा आराम से बिता सकती थी लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया। मेरी दादी हमेशा कहती थी मैंने अपने जीवन में जो किया वह इनके साथ नहीं होने दूंगी। मुझे अपनी दादी पर गर्व है। मैं अपनी दादी की वजह से इतने गर्व से खुद को डॉटर ऑफ सेक्स वर्कर कहना शुरू किया ।

समाज के तानों से पढ़ाई छूटी

नसीमा बताती हैं कि समाज के तानों के कारण कई बार पढ़ाई छूटी अभी फाइनल किया है रेड लाइट एरिया में घरों में छोटी-छोटी बेटियां रहती है शर्मिंदगी और समाज के ताने के कारण उनकी पढ़ाई छूट जाती है जो कोई स्कूल जाती भी है तो उनमें से ज्यादातर को मजबूरी के चलते अपनी पहचान छुपा करती है।

परचम ने दी उम्मीद

नसीमा कहती हैं कि मुझे बचपन से ही लगता है कि मैं इस मोहल्ले के लोगों की स्थिति कैसे बदलूं आगे चलकर मैं सेक्स वर्करों और उनकी की बेटियों के जीवन में सवेरा भरने की कोशिश में जुट गयी। हमने कुछ लड़कियों के साथ एक छोटा सा संगठन बनाया और उसे नाम दिया “परचम”। परचम में सबसे पहले तो हम यहां की बेटियों को मोटिवेट करते उन्हें पढ़ाई से जोड़ते और जो सेक्स वर्कर हैं इन्हें छोटे छोटे रोजगार से जोड़कर आमदनी का विकल्प देते।
शुरूआती दौर में तो काफी समस्या आई । हमारा काफी विरोध हुआ। यहां के लोगों ने ही हमारा विरोध किया पर हमने अपना काम जारी रखा। धीरे- धीरे माहौल बदलने लगा। इग्नू जैसी संस्थाओं ने चतुर्भुज स्थान में अपनी शाखाएं खोली यहां की लड़कियों की पढ़ाई के लिए। हमारी संस्था की अब चर्चा होने लगी।

जुगनू से आयी रौशनी

उस दौर में एंड्राइड मोबाइल फोन हाथों तक नहीं पहुंचे थे, सोशल मीडिया का दौर नहीं था। ऐसे में मुझे लगा कि एक ऐसा माध्यम हो जहां हम अपने मन की बात रख पाए। यहां के बच्चे अपनी कलाओं को उस पटल पर रख सकें । मैं आपको ये जरूर बता दूं कि यहां के बच्चों में प्रतिभा की कोई कभी नहीं है। तो हमने साल 2004 में एक हस्तलिखित पत्रिका शुरू की नाम रखा जुगनू । इस पत्रिका में हमारे समाज के बच्चे अपनी बात रखते। उनकी कहानियां इसमें छपती। उनकी रचनाओं को स्थान मिलता। जुगनू एक वैसा मंच बना जहां आपसी संवाद करने और मन की बात रखने की पूरी आजादी मिलती। जुगनू का प्रकाशन आज भी जारी है। अब जुगनू राष्ट्रीय स्तर पर प्रकाशित हो रहा है और इसमें चार राज्यों के बच्चे लिख रहे हैं।

जुगनू रेडीमेड गारमेंट भी

नसीमा खातून के प्रयास से चतुर्भुज स्थान की महिलाएं अब रेडीमेड गारमेंट भी बना रही हैं। इसकी बाजार में अच्छी मांग है इसके लेबल को जुगनू रेडीमेड गारमेंट का नाम दिया गया है।

राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग ने बनाया सलाहकार

नसीमा को राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग ने राष्ट्रीय सलाहकार कोर ग्रुप का सदस्य बनाया है। इस कोर ग्रुप में देश भर से 13 लोग शामिल होते हैं।

नसीमा कहती है कि आज भी अगर कोई अपराध होता है तो इन बदनाम गलियों में ही सबसे पहले पुलिस आती है। उन्हें लगता है कि अपराधी यही छुपा होगा। हमने यह सब देखा सुना है। मेरे लिए यह गर्व की बात है कि आज मुझे राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग में सलाहकार बनाया गया है।

मिल चुके हैं कई एवार्ड

नसीमा खातून को सेक्स वर्करों के बीच बेहतर कार्य करने के लिए राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय मंचों से कई सम्मान मिल चुके हैं। इसमें प्रतिष्ठित मीडिया कंपनी cnn-ibn द्वारा “रियल हीरोज सम्मान” भी शामिल है। दुनिया भर की प्रतिष्ठित न्यूज़ एजेंसियों ने नसीमा खातून के ऊपर डॉक्यूमेंट्री फिल्मों का निर्माण भी किया है।, नसीमा नहीं यूएनडीपी के सहयोग से देश भर के रेड लाइट इलाका पर केंद्रित “सफर” नामक पुस्तक का संपादन भी किया है।

बात प्रोफेशन चेंज कि नहीं जनरेशन चेंज की

नसीमा कहती हैं कि हम प्रोफेशन चेंज कि नहीं जेनरेशन चेंज की बात करते हैं। मैं तीन मुख्य बिंदुओं पर यहां ध्यान दे रही हूं एक तो यह की योजनाएं सीधे तौर पर इस इलाके के लोगों तक पहुंच पाए। दूसरा जुगनू के जरिए बच्चों को बेहतर तालीम के लिए सरकार से मदद मिल सके और तीसरा की इस इलाके में एक वैसा कम्युनिटी सेंटर बनें जहां स्वास्थ्य परीक्षण की व्यवस्था से लेकर सरकार की योजनाओं की जानकारी तक एक जगह पर उपलब्ध हो।
फिलवक्त समाज के अंधेरे को अपने हौसलों का परचम लहरा जुगनू बन नसीमा उसमें उजास भरने की भरपूर कोशिश में जुटी है। नसीमा को भरोसा है कि कोशिशें कामयाब जरूर होती हैं ।

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भारत की इस बेटी के प्रयास से ‘कतर’ में मुस्कुरा रही है प्रकृति, पढ़ें पूरी कहानी

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यह कहानी भारत में जन्मे और पली-बढ़ी श्रेया सूरज की है। श्रेया वैसे तो गणित की शिक्षिका है पर इनके अंदर एक कलाकार का दिल धड़कता है। वैसा कलाकार जो प्रकृति की खूबसूरती को बचाने और संवारने में जुटा है। श्रेया समुद्र तटों की सफाई करती हैं। समुद्र के कचरे को इकट्ठा करती है और फिर अपने कलाकारी के हुनर से उसे रीसाइक्लिंग कर दोबारा प्रयोग के काबिल बना देती हैं। श्रेया ने अब तक कतर के 150 से अधिक समुद्र तटों के सफाई अभियान में हिस्सा लिया है। आईए इस प्रकृति प्रेमी कलाकार की कहानी जानते हैं

मेरा जन्म चेन्नई में हुआ कोलकाता में पली-बढ़ी और आज कतर में गणित की शिक्षिका हूं। मेरे मन में बचपन से ही प्रकृति के प्रति अगाध श्रद्धा रही है। यह प्रकृति की तो है जो हमें जीवन देती है, और हमें चलना और बढ़ना सिखाती है। कतर समुद्र के किनारे बसा है समंदर के कारण बसे होने यहां की ख़ूबसूरती भी निखर उठती है, इसका दूसरा पक्ष बेहद ही स्याह है। आपको समुद्र तटों पर कचरे के ढेर दिखेंगे। लोग यहां समंदर के किनारे वक्त बिताने आते हैं और प्लास्टिक, चिप्स की पैकटे, और ढेर सारा कचरा छोड़ कर चले जाते हैं। यह सब समंदर के लिए ही हानिकारक नहीं उस में रह रहे जलीय जीवो के लिए भी काफी खतरनाक है। मैंने सोचा कि क्यों ना प्रकृति को संवारने की पहल की जाए। लोगों को जागरूक किया जाए। इसके लिए मेरे कलाकार मन ने सबसे पहले मेरा साथ दिया।

मन के कलाकार को जिंदा रखने की जरूरत

मुझे लगता है कि प्रकृति की खूबसूरती बचाने के लिए मन की खूबसूरती को बचाना भी जरूरी है आपको अपने मन के कलाकार को जिंदा रखने की जरूरत है। इसको लेकर फेसबुक पर एनी बडी कैन ड्रा नामक कला समूह का गठन किया। मेरा मानना है कि हर इंसान के अंदर एक कलाकार छुपा बैठा होता है जरूरत उसे जगाने की है।

कार्यशालाओं का करतीं हैं आयोजन

श्रेया आगे कहती हैं कि मैं बच्चों और वयस्कों के लिए कला कार्यशाला का आयोजन करती हूं ।जिसमें बेकार फेंक दी गई प्लास्टिक सीसा, कागज की वस्तुओं को रिसाइकल कर उन्हें खूबसूरत बना पुनः उपयोग में लाने के लिए तैयार किया जाता है। इससे जहां बेकार की वस्तुएं उपयोगी बन रही है वही लोगों के बीच पर्यावरण संरक्षण को लेकर जागरूकता भी आती है।

समुद्री तटों की सफाई और वृक्षारोपण का कार्य भी

श्रेया आगे बताती है कि इन सबके साथ ही वो समुद्री तटों की सफाई और वहां वृक्षारोपण का कार्य भी कर रही हैं। वह कतर के कई पर्यावरण संरक्षण संगठन की सदस्य भी हैं।

150 से अधिक समुद्र तटों की कर चुकी है सफाई

the post.com से बात करते हुए श्रेया बताती है कि वह कई समूहों के साथ मिलकर पिछले 4 साल में150 से अधिक समुद्र तटों की सफाई और वहां वृक्षारोपण का कार्य कर चुकी है। ऐसा करने से पर्यावरण तो सुंदर होता ही है साथ ही मानसिक शांति भी मिलती है। वह कहती है कि प्रकृति है तो ही जीवन है ।हमें जीवन को बचाने के लिए पहले प्रकृति को बचाना और संवारना होगा।

कोरोना काल में अकेले निकल पड़ी सफाई अभियान पर

श्रेया का कहना है कि कोरोना के 6 महीनों में, कोरोना प्रतिबंधों के कारण समुद्र तट पर अकेले जा सफाई का कार्य मैनै किया। सभी समुद्र तटों में कूड़े की मात्रा को देखना बहुत निराशाजनक होता है.

बच्चों से मिलता है हौसला

श्रेया बताती है कि मेरे बच्चे हमेशा मेरी सफाई अभियान के दौरान मुझे हौसला देते हैं। वें कई बार मेरे साथ भी आते हैं। हम अपने घर में पानी, बिजली, भोजन और संसाधनों की बर्बादी को कम करने का प्रयास करते हैं।


नई पीढ़ी के लिए बनाए खूबसूरत पृथ्वी

वह यह भी कहती हैं कि केवल एक पृथ्वी है जहां इंसानों का वास है। हम सभी को आने वाली पीढ़ियों के लिए एक बेहतर दुनिया बनाने की पहल करनी चाहिए। प्लास्टिक जैसे पदार्थ के पुन: उपयोग और पुनर्चक्रण के लिए में अपनी भूमिका निभानी चाहिए।

बिना किसी अपेक्षा के दूसरों का भला करो

श्रेया कहती है कि जीवन में मेरा सिद्धांत है – बिना शर्त और बिना किसी अपेक्षा के दूसरों का भला करो। अगर आपका काम अच्छा है तो प्रकृति आपको इनाम जरूर देगी

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अंधेरे वक्त में उम्मीदों के अरूण बन जीवन का उजियारा बांट रहे इस डाक्टर की कहानी जरूर पढ़ें…

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यह कहानी एक वैसे डॉक्टर के हौसलों की बानगी है जिन्होंने अपने मजबूत इरादों से उत्तर बिहार में सालों से कहर बरपा रहे चमकी बुखार की न सिर्फ वजह ढूंढी, बल्कि उसे हारने पर मजबूर कर दिया। इनकी कोशिशों से इस इलाके में चमकी का खौफ लगभग थम गया है और बच्चों के चेहरों पर खिलखिलाहट लौट आई है। इतना ही नहीं यह लगातार बिहार के गांव- गांव जा गुदड़ी के लालों को स्वस्थ्य रहने का हुनर भी बांट रहे हैं। अंधेरे वक्त में उम्मीदों के अरुण बन समाज में आलोक भर रहे डॉक्टर अरुण शाह की यह कहानी आपको जरूर पढ़नी चाहिए…

वह बड़ा ही बेरहम वक्त था, सैकड़ों बच्चे काल के गाल में समा रहे थे, हर और रुदन और गम का माहौल रहता। सालों से जैसे ही गर्मी का मौसम आता मुजफ्फरपुर और इसके आसपास के जिलों में एक खौफ का साया मंडराने लगता, यह खौफ था AES यानी चमकी बुखार का। यह बेरहम बुखार कुछ ही मिनटों में बच्चों की जिंदगी छीन लेता, यह वाकया सुनाते -सुनाते प्रसिद्ध पीडियाट्रिक्स डॉक्टर अरुण शाह की आंखें भर आती हैं। वो आगे बताते हैं कि इससे प्रभावित होने वाले ज्यादातर बच्चे हाशिए पर रह रहे समाज से आते ।
देश – दुनिया के अखबार और टेलीविजन चैनल चमकी के तांडव से भरे होते थे। एक पीडियाट्रिक्स होने के नाते मुझे इसने अंदर तक हिला कर रख दिया। पत्रकार मुझसे विशेषज्ञ के तौर पर अपनी राय मांगते थे। । मुझे यह बात हमेशा बेचैन किए रही कि आखिर चमकी बुखार का यह कहर कैसे थमेगा, और क्या मैं इसके लिए कुछ भी नहीं कर सकता।
कई रातें इसी तरह बेचैनी में कटी। मैंने मन ही मन यह प्रण किया कि मुझे चमकी बुखार के इस कहर को खत्म करना है और लौटाना है बच्चों के चेहरों पर एक आजाद मुस्कान। कहते हैं ना कि जब मन में दृढ़ इच्छा शक्ति हो तो कुछ भी असंभव नहीं होता एक कार्यक्रम के सिलसिले में मेरी मुलाकात डॉक्टर टी जैकब जॉन से हुई ।

डॉक्टर जॉन इंडियन काउंसिल फॉर मेडिकल रिसर्च (ICMR) के एंडवांस्ड रिसर्च इन वायरोलॉजी सेंटर के प्रमुख रह चुके हैं। मैंने उन्हें मुजफ्फरपुर आने के लिए मना लिया, डॉक्टर टी. जैकब जॉन के निर्देशानुसार हमने इस खौफनाक बीमारी के वजह तलाशनी शुरू कर दी। हमने काफी कड़ी मेहनत की , और इस नतीजे पर पहुंचे की इस बीमारी का एक बड़ा कारण कुपोषण है। फिर हमने सबसे ज्यादा प्रभावित गांव मे विशेष अभियान चलाया। इस अभियान में लोगों को जागरूक करने के साथी गरीब बच्चों के परिवार में ग्लूकोज और बिस्किट बांटे गए। घर घर जाकर लोगों को यह संदेश दिया कि वह अपने घर के अंदर और बाहर साफ सफाई रखें, अपने बच्चे को घर का बना भरपेट खाना चार से पांच बार दें। खाली पेट रात में ना सुलाएं, उन्हें ज्यादा से ज्यादा पानी पिलाएं और सड़े गले फल से उन्हें दूर रखे । गर्मी के मौसम में बाग बगीचों में धूप में ना निकलने दें।

हमारे अभियान को गांव वालों का भरपूर समर्थन मिला, लोग हमारी बात मानने लगे और देखते ही देखते इन गांव में चमकी बुखार का कहर घटने लगा। हमने सरकार को भी यह प्रस्ताव दिया और सरकारी ने भी जोर शोर से कैंपेन चलाए । नतीजा यह हुआ कि चमकी बुखार का कहर काफी हद तक काबू में आया। मुझे बताते हुए खुशी हो रही है कि हमने जिन गांव में अभियान चलाएं इस साल में वहां एक भी बच्चा चमकी के कारण बीमार नहीं हुआ है। इस साल पूरे मुजफ्फरपुर जिले में चमकी से प्रभावित होने वाले बच्चों की संख्या भी काफी सीमित रही है।
डॉक्टर अरुण शाह का यह शोध जल्द ही दुनिया के बड़े साइंस जनरल में प्रकाशित होने वाला है।

बिहार के गांव-गांव में लगा चुके हैं स्वास्थ्य शिविर

डॉ अरुण शाह ने चमकी जैसे खतरनाक बीमारी को अपने हौसलों से हराने में कामयाबी तो पारी ही, वे लगातार अन्य बीमारियों को लेकर भी बिहार भर में स्वास्थ्य शिविर और जागरूकता अभियान चलाया करते हैं। डॉक्टर शाह कहते हैं कि बच्चे ही देश के भविष्य हैं, किसी परिवार के लिए भी बच्चे ही उम्मीद की किरण होते हैं वैसे में बच्चों का सेहतमंद होना सबसे जरूरी होता है। शहरी इलाके बच्चों के सेहत के प्रति जागरूकता देखी जाती है, ग्रामीण क्षेत्रों में इसका अभाव रहता है। इसे लेकर हमने बिहार भर में निशुल्क शिशु स्वास्थ्य जांच एवं जागरूकता शिविर का आयोजन करते रहते हैं, जिसमें बच्चों का स्वास्थ्य परीक्षण और स्वास्थ्य के प्रति जागरूक किया जाता है। डॉक्टर अरुण शाह बताते हैं कि उनका यह अभियान सालों से चला आ रहा है और अब तक बिहार का कोई भी वैसा गांव नहीं बचा जहां उन्होंने स्वास्थ्य शिविर नहीं लगाया हो।


गांव में बितता है हर रविवार और छुट्टी का दिन

डॉक्टर अरुण शाह का हर रविवार अलग-अलग सुदूरवर्ती गांव में ही बीताता है। वो इन गांवों में निशुल्क शिशु स्वास्थ्य जांच एवं जागरूकता
शिविर का आयोजन करते हैं। डॉक्टर शाह बताते हैं कि दूर-दराज के गांव में जाने के लिए मुझे भोर के तीन बजे ही निकला पड़ता है, और लौटते लौटते देर रात हो जाती है। ऐसे में कई बार सोना भी गाड़ी में ही होता है। वे कहते हैं कि सामाजिक कार्यों से दिल में एक अनोखा सुकून मिलता है।

एंटीबायोटिक के खिलाफ अभियान

डॉक्टर अरुण शाह एंटीबायोटिक के खिलाफ विश्वव्यापी अभियान से भी जुड़े हुए हैं। डॉक्टर शाह बताते हैं कि बेवजह एंटीबायोटिक का इस्तेमाल हमारे स्वास्थ्य के लिए काफी खतरनाक होता है। ऐसा करने से एंटीबायोटिक प्रतिरोध में वृद्धि होती है जो कि वैश्विक स्वास्थ्य के लिए सबसे बड़े खतरे में एक है ।लंबे समय तक एंटीबायोटिक प्रतिरोध संक्रमण से मरीज की मौत के आंकड़े काफी तेजी से बढ़ रहे हैं।

मुफ्त दवा का करते हैं वितरण

डॉक्टर अरुण शाह बीमार बच्चों के बीच मुफ्त दवा का वितरण भी करते हैं। स्वास्थ्य शिविर के साथ ही उनके क्लीनिक पर आए बीमार बच्चों को भी यथासंभव मुफ्त दवाएं उपलब्ध कराई जाती है। डॉक्टर शाह बताते हैं कि उनके द्वारा गठित ‘डॉक्टर अरुण साह फाउंडेशन ‘ दवाइयों की खरीद करता है और उसे मरीजों के बीच वितरित करता हैं।

निशुल्क टीकाकरण अभियान भी

बच्चों के लिए निशुल्क टीकाकरण अभियान भी डॉक्टर अरुण शाह के क्लीनिक में चलाया जाता है। इसका उद्देश्य बच्चों में गंभीर संक्रमण रोग से होने वाली बीमारियों एवं मौतों में कमी लाना है।

डॉक्टर अरुण शाह , द्वारा गठित ‘डॉक्टर अरुण शाह फाउंडेशन’ द्वारा कोरोना महामारी से बचने के लिए भी लोगों को जागरूक किया जा रहा है। कोरोना से बचने का टीका लगवाने के लिए वे लोगों को लगातार प्रेरित करते हैं। कोरोना की लहर में उन्होंने अपने फाउंडेशन के द्वारा गरीबों के लिए निशुल्क मास्क और साबुन का वितरण करवाया। लॉक डाउन की अवधि में भी वे फोन और ऑनलाइन माध्यम से 12 घंटे चिकित्सीय परामर्श देते रहे। ‘डॉक्टर अरुण सा फाउंडेशन’ जाड़े के मौसम में गरीबों के बीच उनकी कपड़ों का वितरण करता रहा है। उत्तर बिहार में आने वाली प्रलयंकारी बाढ़ में भी फाउंडेशन द्वारा राहत कार्य चलाए जाते हैं।

जन्म परिचारक को प्रशिक्षण

प्रसव के दौरान जच्चा और बच्चा दोनों स्वस्थ रहें इसे लेकर डॉक्टर अरुण शाह ने बिहार के अलग-अलग गांव में 7000 से अधिक जन्म परिचारक को प्रशिक्षित किया। इसके लिए अलग-अलग कई टीमों का गठन किया गया था। इससे जच्चा और बच्चा की मृत्यु दर में काफी कमी आई।

मुक्तिधाम में अनोखी पहल

डॉक्टर अरुण शाह के प्रयास से मुजफ्फरपुर के सिकंदरपुर स्थित शवदाह गृह में 40 लाख रुपय की लागत से अत्याधुनिक शवदाह संयंत्र स्थापित है, इस संयंत्र की स्थापना में उन्होंने आर्थिक मदद की । इस संयंत्र के स्थापित हो जाने से जहां शवदाह में वायु प्रदूषण समस्या खत्म हुई है वहीं नौ मन की जगह दो मन लकड़ी में ही परंपरागत हिंदू धर्म अनुसार शवों का अंतिम संस्कार संपन्न हो रहा है। इसके साथ ही डॉ शाह की मदद से शवों को श्मशान घाट तक लाने के लिए मुक्ति रथ वाहन और डीप फ्रीजर की खरीद भी की गई है। डॉक्टर अरुण शाह कहते हैं कि मृत्यु जीवन का अंतिम सत्य है और हर इंसान की मृत्यु के बाद उसका अंतिम संस्कार सम्मान के साथ होना चाहिए। नये संयंत्र की स्थापना से शव दाह में आने वाले खर्च में काफी कमी आई है साथ ही पर्यावरण का संरक्षण भी हो रहा है।

ऐसे बने डॉक्टर

डॉक्टर अरुण सब बताते हैं कि हमारी पारिवारिक पृष्ठभूमि व्यवसाय की रही। पिताजी कपड़े के व्यवसाय से जुड़े थे। मेरी प्रारंभिक शिक्षा मुजफ्फरपुर के मारवाड़ी हाई स्कूल से हुई। मेरे अंदर डॉक्टर बनने की चाहत तो बचपन से थी पर मैंने यह संकल्प किया था कि मैं अपने काबिलियत के दम पर डॉक्टरी की पढ़ाई करूंगा डोनेशन के दम पर नहीं। मैंने दिन-रात पढ़ाई की और फिर मेरा चुनाव दरभंगा मेडिकल कॉलेज में हो गया। डॉ शाह ने देश के प्रतिष्ठित मुंबई हॉस्पिटल से इंटर्नशिप किया।

पहले एनआईसीयू के निर्माण का श्रेय

डॉक्टर अरुण साह को मुजफ्फरपुर के पहले एनआईसीयू के निर्माण का श्रेय भी जाता है। डॉक्टर शाह मुजफ्फरपुर के केजरीवाल अस्पताल में जब चिकित्सक थे तो उन्होंने ही वहां प्रबंधन को एनआईसीयू की जरूरत बताई और इसे स्थापित करने के लिए तैयार किया।

माता पिता के आशीष और ईश्वर की कृपा

सादगी पूर्ण जीवन जीने वाले डॉक्टर शाह अपने जीवन की सफलता का श्रेय अपने माता- पिता और ईश्वर को देते हैं। वे कहते हैं कि पिताजी और माताजी के मार्गदर्शन ने इन्हें हमेशा इंसान बने रहने में मदद की। वे कहते हैं कि बचपन में बताइए मां की छोटी-छोटी बातें जीवन निर्माण में काफी महत्वपूर्ण बन गई। डॉक्टर शाह मानते हैं कि जीवन के हर मोड़ पर ईश्वर की कृपा मिलती रही है। कभी कभी जब हर रास्ते बंद नजर आते हैं तो अचानक एक उम्मीद की लौ दिख जाती है। ईश्वर की कृपा ही है कि मैं इस उम्र में भी कुछ काम कर पा रहा हूं।

मिल चुका है कई सम्मान

डॉक्टर अरुण शाह को चिकित्सा और समाज सेवा के क्षेत्र में कार्य करने के लिए कई अंतरराष्ट्रीय और राष्ट्रीय सम्मान प्रदान किया जा चुका है। रॉयल कॉलेज ऑफ फिजीशियन लंदन ने उन्हें स्वास्थ्य के क्षेत्र में बेहतर कार्य के लिए एफआरसीपी की डिग्री प्रदान की। वे इसके फेलो भी है। डॉक्टर शाह इंडियन एसोसिएशन ऑफ पीडियाट्रिक्स के बिहार चैप्टर के प्रमुख भी रह चुके हैं। वह I.I.M.A , N.N.F के भी फेलो है। वह कई अन्य स्वास्थ्य और सामाजिक संगठनों में भी महत्वपूर्ण पदों पर जुड़े हैं।

इंसानियत सबसे बड़ा धन

डॉक्टर अरुण शाह कहते हैं कि उद्देश्य के बिना जीना मृत्यु के बराबर है। हमें हमेशा एक दूसरे की मदद करनी चाहिए और नेक रास्ते पर चलना चाहिए। आर्थिक संपन्नता से बड़ी मन की संपन्नता होती है। पैसों का वैभव समय के साथ नष्ट हो जाता है पर आपकी कृति आपका व्यवहार हमेशा याद रखा जाता है। हर व्यक्ति को अपनी आत्मा की आवाज सुनने की जरूरत है। आज के एकल होते समाज में अपने अंदर के इंसान को बचाने और संवारने की जरूरत है। आप ऐसा करके देखिए आपको पैसे इकट्ठा करने या उसके पीछे भागने से ज्यादा खुशी मिलेगी।

फिलवक्त डॉक्टर अरुण शाह, रिटायरमेंट की उम्र में भी बच्चों सी उर्जा से लवरेज हो समय और समाज में नई ऊर्जा भरने में जुटे हैं। इनकी कोशिशों से जहां समाज में उजियारा फैल रहा है वही लाखों लोगों को मिल रही है आशा की किरण।

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स्वस्थ भारत का अलख जगा रहे बिहार के डॉक्टर निखिल

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“उनकी आंखों में स्वस्थ भारत का सपना पलता है। उनकी पहल से सुदूर ग्रामीण इलाकों की फिजा में जागरूकता आ रही है। गांव के लोग स्वास्थ्य के प्रति सजग हो रहे । इनके प्रयासों से जिंदगी का गुलशन गुलजार हो रहा है। आशाओं का दामन थाम हाशिए पर रह रहे लोगों की दिन रात मदद के लिए तत्पर रहने वाले डॉक्टर निखिल रंजन चौधरी की उम्मीद और उर्जा से लबरेज यह कहानी जरूर पढ़ें।”

आम तौर पर बिहार जैसे राज्य में लोगों के अंदर यह धारणा रहती है कि जब तक वो गंभीर रुप से बीमार न हो जाएं उन्हें डॉक्टर के पास जाने की जरूरत नहीं है। यह धारणा इतनी खतरनाक है कि ज्यादातर मरीज उस स्टेज में हम डॉक्टरों के पास पहुंचते हैं जब चाहकर भी हम उन्हें ठीक नहीं कर पाते। बीमारी अपने अंतिम चरण तक पहुंच चुकी होती है , जिंदगी और मौत के बीच काफी कम फासला बचा होता है। मैंने बतौर चिकित्सक ऐसे कई केसेज देखें जिसमें अगर मरीज शुरूआत में इलाज के लिए आ जाता तो उसकी जिंदगी बच सकती थी। किसी भी परिवार में एक सदस्य की जिंदगी पर पूरे परिवार की धूरी टीकी होती है, खासकर तब जब वह परिवार का मुखिया हो। ऐसे में मुझे लगा की लोगों की जिंदगी बचाने के लिए उन्हें स्वास्थ्य के प्रति जागरूक करना सबसे जरूरी है।ऐसा करके हजारों जिंदगी बचायी जा सकती है फिर मैंने लोगों को जागरूक करना शुरू कर दिया। मैं लोगों को समय पर अस्पताल आने, और ईयरली हेल्थ चेकअप के लिए जागरूक करता हूं। उन्हें यह बताता हूं कि थोड़ी भी दिक्कत होने पर चिकित्सक से सलाह जरूर लें और आवश्यक हो तो जांच भी जरूर कराएं। कहते हैं यूरोलॉजिस्ट डॉक्टर निखिल रंजन चौधरी।डॉक्टर निखिल पटना के इंदिरा गांधी आयुर्विज्ञान संस्थान में चिकित्सक हैं।

छुट्टी वाले दिन लगाते हैं स्वास्थ्य शिविर

डॉक्टर निखिल लोगों को स्वास्थ के प्रति जागरूक करने के लिए अनोखी मुहिम चला रहे हैं। छुट्टी वाले दिनों में वे बिहार के सुदूरवर्ती ग्रामीण इलाकों में जा कर स्वास्थ्य जागरूकता शिविर का आयोजन करते हैं। इन शिविरों में लोगों को जागरूक करने के साथ साथ उनका निःशुल्क स्वास्थ्य परीक्षण भी किया जाता है।
डॉक्टर निखिल अब तक ऐसे दर्जनों स्वास्थ्य शिविर का सफल आयोजन कर चुके हैं। लगभग हर रविवार को वह ऐसे आयोजनों में समय देते हैं। बिहार के समस्तीपुर, सुपौल, मोकामा और झारखंड के चपला में वे नियमित रूप से निशुल्क स्वास्थ्य जांच व जागरूकता शिविरों का आयोजन करते रहे हैं।

खुद भी करते हैं रक्त दान

निशुल्क स्वास्थ्य शिविर के साथ-साथ डॉक्टर निखिल रंजन रक्तदान की मुहिम भी चलाया करते हैं। वे अब तक दर्जनों रक्तदान शिविर का आयोजन सहभागिता कर चुके हैं। सामाजिक संगठनों द्वारा आयोजित रक्तदान शिविर में भी उनकी सहभागिता बढ़-चढ़कर रहती है। डॉक्टर निखिल न सिर्फ रक्तदान शिविर का आयोजन करते हैं बल्कि खुद भी रक्तदान करते हैं। डॉक्टर निखिल कहते हैं कि साल में कम से कम एक बार रक्तदान जरूर करें। रक्तदान बड़ा ही पुण्य का कार्य है । रक्तदान कर आप किसी की जिंदगी बचा सकते हैं।

24 घंटे ऑन रहता है मोबाइल

डॉक्टर निखिल बताते हैं कि फोन के द्वारा भी वे जरूरतमंदों की मदद और उन्हें उचित सलाह दिया करते हैं।वें बताते हैं कि उनका मोबाइल 24 घंटे ऑन रहता है।

मरीजों से दोस्तान व्यवहार

डॉक्टर निखिल बताते हैं कि उनके अस्पताल में ज्यादा मरीज ग्रामीण इलाकों से आते हैं। उनके अंदर बीमारी को लेकर एक भय का माहौल रहता है ।ऐसे में मेरी पहली कोशिश उनसे मित्रवत व्यवहार कर उनके भय को खत्म करने और आत्मविश्वास बढ़ाने की होती है। मैं यह भी मानता हूं कि चिकित्सक के अच्छे व्यवहार से मरीज खुलकर अपनी परेशानी बता पता है और इससे हमें चिकित्सा में काफी मदद मिलती है साथ ही मरीज को मानसिक रूप से सुकून भी मिलता है।

 

यहां बीता बचपन
डॉक्टर निखिल का जन्म रांची में हुआ था। रांची अब झारखंड की राजधानी है। डॉक्टर निखिल बताते हैं कि उनका बचपन रांची और पटना आते -जाते बीता इसकी वजह यह रही कि डॉक्टर निखिल के पिता रांची विश्वविद्यालय में वनस्पतिशास्त्र के प्राध्यापक थे वहीं नानाजी पटना में इंजीनियर। इस कारण ननिहाल पटना ही आना जाना लगा होता।

ऐसा रहा डॉक्टर बनने का सफर

डॉक्टर निखिल की स्कूली शिक्षा रांची के संत जेवियर स्कूल से हुई। ,
उन्होंने कोलकाता से MBBS की पढ़ाई की वहीं रांची स्थित रिम्स से PG किया । सीनियर रेजिडेंसी के लिए फिर उन्होंने हनुमानजी नैनीताल का रूख किया । नैनीताल में वे एक साल तक रहें। 2012 – 2015 तक आईजीआईएमएस से MCH यूरोलॉजी किया। इसके बाद 2015 से 2019 तक वे पटना के महावीर कैंसर संस्थान में यूरोलॉजिस्ट के तौर पर कार्यरत रहे। इसके बाद से वे आईजीआईएमएस में अपनी सेवाएं दे रहे हैं। डॉक्टर निखिल ने महावीर कैंसर संस्थान में कार्य करने के दौरान राजेंद्रनगर पटना में अपनी प्रेक्टिस भी की थी। यहां उस दौर में मरीजों की भीड़ लगी रहती। यहां भी डॉक्टर निखिल गरीबों का निःशुल्क इलाज किया करते थे।

* घर के माहौल ने दी प्रेरणा

डॉक्टर निखिल बताते हैं बचपन में घर के माहौल ने डॉक्टर बनने में काफी मदद की। घर में हमेशा पढ़ाई का माहौल रहता। वें आगे बताते हैं कि वह दौर मोबाइल फोन का नहीं था, परिवार के हर सदस्य बच्चों की पढ़ाई का काफी ख्याल रखते। सबके पास पर्याप्त समय एक दूसरे के लिए हुआ करता था। पिता जी के प्रोफेसर होने के कारण घर में हमेशा किताबों की मौजूदगी होती। उन दिनों बच्चों के नैतिक मूल्यों पर काफी जोर दिया जाता था। मेरी मौसी भी डॉक्टर है ऐसे में मुझे लगा कि आगे जाकर कोई ऐसा पेशा चुना जाए जिसमें समाज के लोगों के सेवा की पूरी गुंजाइश हो और यह एक डॉक्टर के रूप में काफी हद तक संभव था।

परिवार का हर कदम पर मिला साथ

डॉक्टर निखिल बताते हैं कि जीवन के हर अच्छे बुरे वक्त में परिवार के सभी सदस्यों का खुब साथ मिला। पत्नी नेहा सिंह जो खुद पेशे से डॉक्टर हैं और एम्स पटना में कार्यरत हैं ने हमेशा परिवार की मजबूत धूरी का कार्य किया है।जब कभी निराशा हुई उन्होंने भरपूर हौसला दिया है। जीवन के कई अहम फैसले में पत्नी का साथ तो मिला ही सामाजिक कार्यों में भी वह मेरा हौसला बढ़ाती है। कई स्वास्थ्य शिविर में हम दोनों साथ भी होते हैं। डॉक्टर निखिल आगे बताते हैं कि डॉ नेहा एम्स के ब्लड बैंक में हेड के तौर पर कार्यरत हैं, रक्तदान की मुहिम में उनका हमेशा साथ और सहयोग मिलता रहता है। वो खुद भी मुझे रक्तदान करने के लिए प्रेरित करती रहतीं है।

बच्चे से मिलती है ऊर्जा

डॉक्टर निखिल कहते हैं कि हम डॉक्टर का पेशा काफी चुनौतीपूर्ण होता है और ऐसे में हमें अपने लिए काफी कम समय मिल पाता है ऐसे में मेरे पांच साल का बेटा नव्यांश के तुतली आवाज से सारी थकान दूर हो जाती है। डॉक्टर निखिल आगे कहते हैं कि छोटे बच्चे भी जीवन की कई बारिकियां आपको खेल- खेल में सीखा जाते हैं।

सपना चैरिटेबल अस्पताल खोलने का

डॉक्टर निखिल कहते हैं कि उनका सपना एक ऐसे चैरिटेबल अस्पताल खोलने की है जिससे विश्व स्तरीय स्वास्थ्य सेवाएं एक छत के नीचे मौजूद हो।इस अस्पताल में सेवाओं की दर कम से कम रखी जाए जिससे आम और खास के बीच उत्तम स्वास्थ्य सेवाओं को लेकर फर्क मिट सके। वें कहते हैं कि बिहार जैसे राज्य में ऐसे अस्पताल की काफी आवश्यकता है।

बदलाव के लिए मेहनत करे युवा

डॉक्टर निखिल रंजन चौधरी मानते हैं कि समाज में परिवर्तन की काफी आवश्यकता है और इस परिवर्तन के लिए युवाओं को आगे आने की जरूरत है, मेहनत करने की जरूरत है। वें कहते हैं कि आज युवा दौलत और शोहरत कमाने का शॉर्टकट रास्ता अपनाना चाहते हैं। इससे बचने की जरूरत है ।सफलता का आकाश मेहनत के दम पर ही मिलता है।

ऐसे रहेंगे आप स्वस्थ

डॉक्टर निखिल कहते हैं कि यूरोलॉजी से संबंधित समस्या से बचाव के लिए जागरूक काफी जरूरी है। सेहत को लेकर जागरूक रहें।खुब पानी पीएं। नशा का सेवन न करें रुटिन हेल्थ चेकअप कराते रहे और अगर किसी तरह की समस्या नजर आ रही हो तो तुरंत यूरोलॉजिस्ट से संपर्क करें। वें आगे कहते हैं कि यहां ख़र्च के डर से बीमारी को छुपाने का प्रचलन है इससे बचने की जरूरत है। बिहार के सरकारी अस्पतालों में भी सभी संसाधन काफी कम दर पर उपलब्ध है आप उनका लाभ लें और स्वास्थ रहें।
फिलहाल डॉक्टर निखिल अपने जन-सेवा की मशाल जलाएं स्वस्थ भारत की रौशनी जन-जन तक पहुंचाने में जुटे हैं। डॉक्टर निखिल के इन प्रयासों से जहां समाज स्वस्थ हो सबल हो रहा है वहीं लोगों को भी मिल रही है प्रेरणा।

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