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डायन प्रथा के खिलाफ लोगों को जागरूक करने वाली छुटनी देवी की कहानी

यह कहानी झारखंड के उस महिला के हौसलों की कहानी है जिसे कभी डायन कह कर प्रताड़ित किया गया। आज वह न सिर्फ डायन प्रथा के खिलाफ लोगों को जागरूक कर रही हैं बल्कि महिलाओं को मुखर होने का स्वर भी दे रही हैं। अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर पढ़िए पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित छुटनी महतो उर्फ छुटनी देवी की यह हिम्मती कहानी…

झारखंड के सरायकेला-खरसावां जिले में अवस्थित है। बीरबांस गांव । अत्यंत साधारण से इसी गांव में रहती है असाधारण हौसलों की धनी छुटनी देवी । छुटनी देवी ने डायन प्रथा जैसी सामाजिक कुप्रथा के खिलाफ अपनी जिंदगी लगा दी और लाया समाज में बदलाव।

दर्द भरा संघर्ष और जागरूकता की शुरुआत

बात साल 1995 की है, जब छुटनी देवी को उनके ससुराल वालों ने डायन करार देकर प्रताड़ित किया। इतना ही नहीं उन्हें गांव से बाहर निकाल दिया गया। इस वक्त छुटनी देवी को काफी शारीरिक और मानसिक यातनाएं सहनी पड़ीं, यहां तक कि उन्हें मैला तक खिलाया गया। इन अत्याचारों के बाद, वह अपने मायके में आ गई । और लिया संकल्प अपने साथ हुए अन्याय के खिलाफ आवाज उठाने का ।

डायन प्रथा के खिलाफ अभियान

अपने अनुभवों से प्रेरित होकर, छुटनी देवी ने डायन प्रथा के खिलाफ जागरूकता फैलाने का बीड़ा उठाया। यह सब आसान न था पर जहां मन में मजबूत संकल्प हो वहां बाधाएं भी रास्ते से दूर हो जाती है। वो गांव में इस प्रथा के खिलाफ लोगों को जागरूक करने लगी। धीरे धीरे लोगों में जागरूकता आई।
उन्होंने ‘आशा’ नामक गैर-सरकारी संगठन के साथ मिलकर एक पुनर्वास केंद्र की स्थापना भी की है ।जहां वे डायन प्रथा से पीड़ित महिलाओं को सहायता और समर्थन प्रदान करती हैं। अब तक, वे 62 से अधिक महिलाओं को इस कुप्रथा से मुक्त करा चुकी हैं ।

और मिला पद्मश्री पुरस्कार

एक वक्त ऐसा आया जब सरकार तक छुटनी देवी के मुहिम की बात पहुंची ।
झारखंड सरकार ने भी डायन प्रथा उन्मूलन के लिए ‘गरिमा परियोजना’ शुरू की है, जिसमें छुटनी देवी जैसी समाजसेवियों का महत्वपूर्ण योगदान है। छुटनी देवी को उनकी अथक सेवाओं के लिए, उन्हें 2021 में पद्मश्री सम्मान से नवाजा गया, जो उनकी प्रतिबद्धता और साहस का प्रतीक है।

छुटनी देवी का जीवन हमें सिखाता है कि व्यक्तिगत पीड़ा को सामाजिक परिवर्तन के माध्यम में कैसे बदला जा सकता है। उनकी कहानी न केवल झारखंड, बल्कि पूरे देश के लिए प्रेरणास्रोत है, जो हमें अंधविश्वास और कुप्रथाओं के खिलाफ लड़ने की प्रेरणा देती है।

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खिलखिलाते फूलों से कीजिए ,दिल की बगिया गुलजार

जीवन उतार-चढ़ाव से भरा होता है। कभी खुशियों की बहार तो कभी मायूसी का मौसम दस्तक देता है। ऐसे में, खुद को सकारात्मक बनाए रखना किसी चुनौती से कम नहीं। बागवानी यानी गार्डनिंग एक ऐसा तरीका है जो न सिर्फ आपके आसपास हरियाली लाती है, बल्कि आपके मन को भी सुकून और आनंद से भर देती है। फूलों को लगाना, उन्हें संभालना और फिर खिलते हुए देखना एक ऐसी प्रक्रिया है, जो हमारे भीतर आशा, धैर्य और संतोष के भाव को जन्म देती है। अगर आप अपने जीवन में सकारात्मक बदलाव चाहते हैं, तो फूलों और पौधों से दोस्ती कर लीजिए।

बागवानी का मानसिक स्वास्थ्य पर प्रभाव
मनुष्य का स्वभाव प्रकृति के करीब रहने से और अधिक संतुलित होता है। जब हम अपने हाथों से मिट्टी को छूते हैं, बीज डालते हैं और फिर उसमें अंकुर फूटते हुए देखते हैं, तो यह प्रक्रिया हमें जीवन के मूलभूत सत्य से जोड़ती है ।

तनाव को करता है कम

आज की भागदौड़ भरी जिंदगी में तनाव आम समस्या बन चुकी है। लेकिन जब आप बागवानी करते हैं, तो यह आपको वर्तमान में जीने की कला सिखाती है। मिट्टी में काम करने से तनाव और चिंता कम होती है। वैज्ञानिक शोधों में भी यह सिद्ध हो चुका है कि पौधों की देखभाल करने से ‘स्ट्रेस हार्मोन’ कम होता है और व्यक्ति मानसिक रूप से ज्यादा शांत महसूस करता है।

धैर्य और अनुशासन सिखाता है

फूलों और पौधों को बढ़ते हुए देखने के लिए समय और धैर्य की जरूरत होती है। आप आज बीज डालते हैं, उसे पानी देते हैं, देखभाल करते हैं और फिर हफ्तों या महीनों बाद उसमें फूल खिलते हैं। यह प्रक्रिया हमें जीवन के प्रति एक सकारात्मक नजरिया देती है और सिखाती है कि मेहनत और धैर्य का फल अवश्य मिलता है।

खुशी और आत्मसंतोष की सौगात 

जब आपका लगाया हुआ पौधा हरा-भरा हो जाता है और उसमें रंग-बिरंगे फूल खिलते हैं, तो यह आपके भीतर गर्व और संतोष की भावना पैदा करता है। यह खुशी किसी भी महंगे उपहार या उपलब्धि से कम नहीं होती। बागवानी हमें सिखाती है कि सच्ची खुशी छोटी-छोटी चीजों में छिपी होती है।

जीवन में सकारात्मक ऊर्जा भरने का माध्यम

फूलों का हमारे मूड पर गहरा प्रभाव पड़ता है। सुबह ताजे खिले हुए फूलों को देखकर दिन की शुरुआत करना एक सकारात्मक ऊर्जा से भर देता है। घर के आंगन, बालकनी या छत पर हरियाली होना हमारे अंदर सुकून और ताजगी भर देता है।

 रचनात्मकता को बढ़ावा देता है

बागवानी करने से हमारी कल्पनाशक्ति और रचनात्मकता बढ़ती है। हम नए-नए तरीकों से अपने बगीचे को सजाने के बारे में सोचते हैं, रंग-बिरंगे फूलों के संयोजन को प्लान करते हैं और एक खूबसूरत हरियाली से अपना वातावरण सजाते हैं।

 आत्मनिर्भरता की भावना जगाता है

जब हम अपने हाथों से पौधे उगाते हैं, तो यह हमें आत्मनिर्भर बनाता है। यह अहसास कि हमने अपने प्रयासों से हरियाली को जन्म दिया है, हमारे आत्मविश्वास को बढ़ाता है।

प्रकृति से जुड़ने का मौका देता है

बागवानी करने से हम प्रकृति के प्रति और अधिक संवेदनशील हो जाते हैं। हमें समझ आता है कि पेड़-पौधे सिर्फ सजावट का साधन नहीं, बल्कि जीवन का आधार हैं। यह एहसास हमें अपने पर्यावरण को बेहतर बनाने और हरियाली को बचाने के लिए प्रेरित करता है।

कैसे करें शुरुआत?

अगर आपने पहले कभी बागवानी नहीं की है, तो इसकी शुरुआत छोटे स्तर पर करें। घर में एक-दो गमले लगाकर शुरुआत करें और धीरे-धीरे इसे बढ़ाएं।

सही पौधे चुनें

शुरुआत में ऐसे पौधे लगाएं, जिन्हें ज्यादा देखभाल की जरूरत न हो। मनी प्लांट, तुलसी, एलोवेरा, गुड़हल और गेंदा जैसे पौधे देखभाल में आसान होते हैं और जल्दी बढ़ते हैं।

नियमित देखभाल करें

पौधों को समय पर पानी देना, धूप में रखना और खाद डालना जरूरी होता है। इन्हें प्यार और देखभाल की जरूरत होती है, ठीक उसी तरह जैसे किसी रिश्ते को संवारने में लगती है।

अपने बगीचे को सजाएं

रंग-बिरंगे फूलों के साथ-साथ सजावटी पौधे लगाएं। हैंगिंग पॉट्स, वर्टिकल गार्डन और छोटे-छोटे फव्वारे आपके बगीचे को और खूबसूरत बना सकते हैं।

बागवानी सिर्फ एक शौक नहीं, बल्कि एक जीवनशैली है। यह हमें सिखाती है कि धैर्य और मेहनत से कुछ भी हासिल किया जा सकता है। फूलों की दुनिया हमें बताती है कि छोटी-छोटी खुशियों में भी जीवन का सार छिपा होता है। तो आइए, अपने दिल की बगिया को गुलजार करें, मायूसी को दूर भगाएं और फूलों के साथ अपने जीवन को भी महकाएं।

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बच्चों से सीखें खुश रहने का फ़लसफ़ा

बचपन जीवन का सबसे मासूम, आनंदमय और निश्छल समय होता है। जैसे-जैसे हम बड़े होते हैं, जिम्मेदारियों का बोझ हमें जकड़ लेता है और हम बचपन की मासूमियत, जिज्ञासा और खुशमिजाजी को पीछे छोड़ देते हैं। लेकिन अगर हम बच्चों जैसी कुछ विशेषताओं को अपने जीवन में बनाए रखें, तो यह न केवल हमारे मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य के लिए फायदेमंद होगा, बल्कि हमारे व्यक्तित्व को भी और अधिक आकर्षक बना सकता है।

 तनावमुक्त जीवन

बच्चों का स्वभाव खुशमिजाज और बेफिक्र होता है। वे किसी भी चीज़ को ज़्यादा गंभीरता से नहीं लेते और छोटी-छोटी बातों में खुशियां ढूंढ लेते हैं। यदि हम भी उनकी तरह तनाव को कम महत्व देना सीखें और जीवन को हल्के-फुल्के अंदाज में लें, तो मानसिक शांति और खुशहाली प्राप्त कर सकते हैं।

 जिज्ञासा और सीखने की प्रवृत्ति

बच्चे हर चीज़ के प्रति जिज्ञासु होते हैं और हमेशा नई चीज़ें सीखने के लिए उत्सुक रहते हैं। अगर हम भी इसी जिज्ञासा को बनाए रखें, तो हमारा ज्ञान बढ़ेगा, रचनात्मकता में वृद्धि होगी और हम जीवन में लगातार आगे बढ़ते रहेंगे।

 सरलता और ईमानदारी

बच्चे जो महसूस करते हैं, वही व्यक्त करते हैं। वे बनावटी व्यवहार नहीं करते और अपने मन की बात सच्चाई से कहते हैं। यदि हम भी अपनी बातों और विचारों में ईमानदारी और सरलता बनाए रखें, तो हमारे रिश्ते मजबूत होंगे और लोग हम पर अधिक विश्वास करेंगे।

 आनंद लेने की क्षमता

बच्चे छोटे-छोटे पलों में भी खुशी ढूंढ लेते हैं, चाहे वह खेलना हो, बारिश में भीगना हो या किसी नए दोस्त से मिलना हो। यदि हम भी जीवन के छोटे-छोटे पलों को पूरी तरह जीने लगें, तो हमारा जीवन अधिक आनंदमय और संतोषजनक बन सकता है।

आत्मविश्वास और निडरता

बच्चे असफलता से डरते नहीं हैं। वे गिरकर दोबारा उठते हैं और बार-बार प्रयास करते हैं। यदि हम भी असफलता के डर को छोड़कर हर चुनौती को एक नए अवसर की तरह लें, तो हम जीवन में अधिक सफल हो सकते हैं।

 संबंधों में प्रगाढ़ता

बच्चे बिना किसी स्वार्थ के दोस्ती करते हैं और दिल से प्रेम करते हैं। यदि हम भी बिना स्वार्थ के रिश्ते निभाने की कोशिश करें, तो हमारे संबंध अधिक मजबूत और स्नेहपूर्ण बन सकते हैं।

बच्चों जैसा मासूम, निडर और आनंदमय बने रहना हमें मानसिक और शारीरिक रूप से स्वस्थ, खुशहाल और सफल बना सकता है। यदि हम अपने अंदर जिज्ञासा, सरलता, आनंद लेने की प्रवृत्ति और निडरता को बनाए रखें, तो हमारा जीवन अधिक रंगीन और सार्थक बन सकता है

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महाशिवरात्रि विशेष: शिव जी से सीखें  सरलता, त्याग और कर्तव्य 

भगवान शिव केवल एक देवता नहीं, बल्कि प्रेरणा का अजस्र स्रोत हैं। उनकी पूजा की सादगी, त्याग की पराकाष्ठा और कर्तव्य के प्रति समर्पण हमें जीवन की गहरी सीख देते हैं। शिव की कथा हमें सिखाती है कि सच्चा नेतृत्व, सच्ची भक्ति और सच्ची सफलता किसी आडंबर में नहीं, बल्कि सादगी, निस्वार्थता और धैर्य में निहित है।

सादगी का संदेश: शिव पूजा की सरलता

अन्य देवताओं की पूजा में जहां विधि-विधान, आडंबर और महंगे चढ़ावे का प्रचलन है, वहीं शिव पूजा मात्र जल अर्पण से भी पूर्ण हो जाती है। इससे हमें यह संदेश मिलता है कि सच्ची भक्ति में दिखावे की आवश्यकता नहीं होती, बल्कि भावनाओं की पवित्रता अधिक महत्वपूर्ण होती है। शिव हमें सिखाते हैं कि सरलता में ही सबसे बड़ी शक्ति छिपी होती है।

त्याग और बलिदान: कालकूट विष का पान

समुद्र मंथन के दौरान जब हलाहल (कालकूट विष) निकला, तो संपूर्ण सृष्टि संकट में आ गई। देवता, असुर और मानव किसी के पास भी इसे रोकने का उपाय नहीं था। तब भगवान शिव ने बिना किसी स्वार्थ के उस विष को अपने कंठ में धारण कर लिया और नीलकंठ बन गए। यह हमें सिखाता है कि सच्चा नेता वही होता है, जो समाज के हित में कष्ट सहने के लिए तैयार रहता है। शिव का यह बलिदान त्याग, कर्तव्यनिष्ठा और समाज की भलाई के लिए आत्मसमर्पण का सबसे बड़ा उदाहरण है।

निष्पक्षता और समभाव: सभी के देवता

शिव न केवल देवताओं के पूज्य हैं, बल्कि राक्षस, पशु, मानव, सभी के लिए समान रूप से सुलभ हैं। वे किसी एक वर्ग, जाति या विशेष समूह के नहीं, बल्कि पूरे ब्रह्मांड के ईश्वर हैं। उनकी जटाओं में गंगा, गले में सर्प, माथे पर भस्म और प्रिय वाहन नंदी – यह सब यह दर्शाते हैं कि वे समभाव और समदर्शिता का संदेश देते हैं। वे हमें सिखाते हैं कि सच्ची महानता दूसरों को अपनाने और बिना भेदभाव के प्रेम करने में है।

शिव से क्या सीख सकते हैं?

सादगी अपनाएं – बाहरी चमक-दमक के बजाय आंतरिक शांति और संतोष पर ध्यान दें।

कर्तव्यनिष्ठ बनें – यदि समाज या परिवार के हित के लिए त्याग करना पड़े, तो पीछे न हटें।

सहनशीलता विकसित करें – जीवन में कई कठिनाइयाँ आएँगी, लेकिन उन्हें धैर्य और हिम्मत से स्वीकार करें।

सबको समान दृष्टि से देखें – ऊँच-नीच, अमीर-गरीब का भेदभाव न करें, सभी को समान समझें।
स्वयं को जानें – आत्मचिंतन करें और बाहरी दुनिया से अधिक अपने आंतरिक विकास पर ध्यान दें।

भगवान शिव केवल एक आराध्य देव नहीं, बल्कि जीवन जीने की कला सिखाने वाले गुरु भी हैं। उनकी सरल पूजा हमें दिखावे से बचने का पाठ पढ़ाती है, उनका त्याग हमें कर्तव्य के प्रति जागरूक करता है और उनकी निष्पक्षता हमें समभाव का महत्व सिखाती है। यदि हम शिव के इन गुणों को अपने जीवन में उतार लें, तो निश्चित ही हम एक संतुलित, सशक्त और प्रेरणादायक जीवन जी सकते हैं।

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डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम की इन कहानियों में है जिंदगी की सीख

भारत के पूर्व राष्ट्रपति और ‘मिसाइल मैन’ डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम का जीवन संघर्ष, प्रेरणा और विनम्रता की मिसाल है। वे केवल एक वैज्ञानिक ही नहीं, बल्कि एक सच्चे नेता और महान इंसान भी थे। उनके जीवन की कई कहानियाँ हमें सिखाती हैं कि असली सफलता दूसरों को साथ लेकर आगे बढ़ने में है। आइए, उनकी कुछ ऐसी अनसुनी कहानियों को जानते हैं, जो हमें जीवन की सीख देती है

जब कलाम साहब ने साधारण कर्मचारी को सम्मान दिया
एक बार डॉ. कलाम एक विज्ञान सम्मेलन में आमंत्रित थे। उनके साथ राष्ट्रपति भवन के कुछ कर्मचारी भी गए थे। सम्मेलन के बाद जब भोज का आयोजन हुआ, तो कर्मचारियों को अलग बैठाने की व्यवस्था की गई।

कलाम साहब ने जब यह देखा तो आयोजकों से पूछा, “क्या ये मेरे साथ दिन-रात मेहनत नहीं करते? क्या ये मेरी टीम का हिस्सा नहीं हैं?” आयोजकों के पास कोई जवाब नहीं था। उन्होंने स्पष्ट रूप से कहा, “अगर ये मेरे साथ नहीं बैठ सकते, तो मैं भी यहाँ नहीं खाऊँगा।”

आखिरकार, कर्मचारियों को भी मुख्य हॉल में बुलाया गया, और डॉ. कलाम ने उनके साथ भोजन कर यह संदेश दिया कि सच्चे नेता को अपने साथियों का सम्मान करना चाहिए।

जब एक बच्चे के सवाल ने बदल दी उनकी सोच

एक बार डॉ. कलाम एक स्कूल में बच्चों से बातचीत कर रहे थे। वे बच्चों को सपने देखने और बड़े लक्ष्य रखने के लिए प्रेरित कर रहे थे। तभी एक छोटे बच्चे ने हाथ उठाकर सवाल किया, “सर, आप राष्ट्रपति बनकर क्या कर रहे हैं?”

यह सुनकर डॉ. कलाम कुछ क्षण के लिए चुप हो गए। फिर उन्होंने मुस्कुराते हुए जवाब दिया,

“मैं यहाँ तुम्हारे जैसे बच्चों से बात कर रहा हूँ, ताकि तुम बड़े होकर देश के भविष्य को उज्ज्वल बना सको।”

बाद में उन्होंने स्वीकार किया कि उस मासूम सवाल ने उन्हें यह सोचने पर मजबूर कर दिया कि एक राष्ट्रपति के रूप में वे किस तरह देश के युवाओं के लिए अधिक योगदान दे सकते हैं।

जब उन्होंने वैज्ञानिक की गलती को अपनी गलती बना लिया

डॉ. कलाम जब इसरो में कार्यरत थे, तब उन्हें एक महत्वपूर्ण प्रोजेक्ट की जिम्मेदारी दी गई। उनकी टीम के एक वैज्ञानिक से एक गंभीर गलती हो गई, जिससे परियोजना असफल हो सकती थी। जब इस बारे में अधिकारियों को बताया गया, तो सभी वैज्ञानिक डरे हुए थे कि कहीं उन्हें सज़ा न मिल जाए।

लेकिन डॉ. कलाम ने आगे बढ़कर कहा, “गलती मेरी थी, क्योंकि मैं टीम लीडर हूँ। मैंने उनकी निगरानी में चूक की।”

उनकी इस ईमानदारी ने न केवल उनकी टीम का मनोबल बढ़ाया, बल्कि भविष्य में सभी वैज्ञानिकों को अधिक सतर्कता से काम करने की प्रेरणा भी दी।

जब उन्होंने गार्ड की ड्यूटी को समझा

राष्ट्रपति बनने के बाद भी डॉ. कलाम का दिल आम लोगों के लिए धड़कता था। एक बार वे एक कार्यक्रम में देर रात तक व्यस्त रहे। जब वे बाहर आए तो उन्होंने देखा कि सुरक्षा गार्ड सुबह से बिना आराम किए ड्यूटी पर खड़ा था।

कलाम साहब ने तुरंत गार्ड से कहा, “तुम सुबह से ड्यूटी पर हो, अब तुम्हें आराम करना चाहिए।” और उन्होंने खुद गार्ड की कुर्सी पर बैठने की पेशकश कर दी। गार्ड अवाक रह गया और बोला, “सर, यह मेरी ड्यूटी है!”

कलाम साहब ने मुस्कुराते हुए कहा, “देश के लिए काम करना मेरी भी ड्यूटी है, लेकिन इंसानियत सबसे बड़ी ड्यूटी है।”

डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम केवल एक महान वैज्ञानिक नहीं, बल्कि विनम्रता, करुणा और नेतृत्व के प्रतीक थे। उन्होंने हमें सिखाया कि असली सफलता केवल ऊँचाइयों को छूने में नहीं, बल्कि दूसरों को साथ लेकर आगे बढ़ने में है। उनकी ये  कहानियाँ हमें यह याद दिलाती हैं कि सच्चा नेतृत्व वही है जो दूसरों को प्रेरित करे और हर व्यक्ति को समानता का दर्जा दे।

सपने वो नहीं होते जो हम सोते समय देखते हैं, सपने वो होते हैं जो हमें सोने नहीं देते।” – डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम

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इस  गांव में बेटियों के नाम से रौशन हैं दरवाज़े, पढ़ें अनोखे गांव तिरिंग की कहानी

आज कहानी झारखंड के एक वैसे गांव की जहां घर की मिल्कियत बेटियों के नाम होती है। इस गांव में हर घर के दरवाजे पर घर की बेटियों के नाम का बोर्ड लगा मिलेगा। आमतौर पर जहां घर के मुखिया का नाम लोग मकान के बाहर लगे नेम प्लेट पर लिखवाते हैं पर झारखंड के इस गांव में घर की बेटियों के नाम नेमप्लेट पर लिखवाने की परंपरा चल रही है। क्यों और कैसे शुरू हुई ये परंपरा और क्या है इसका मकसद पढ़िए झारखंड का आदिवासी बहुल छोटे से गांव तिरिंग की अनोखी कहानी।

छोटे- छोटे मकान । ज्यादातर मिट्टी की कच्ची दीवारों वाले घर । दीवारों पर चटख रंग, फूल पत्ते और बेल-बूटे की पेंटिंग ‌।
साफ सुथरी और लीपी हुई देहरी। हर घर के मुख्य दरवाजे के उपर एक बड़ा बोर्ड जिसपर शान से लिखा है घर की बेटियों का नाम और उसके नीचे उनकी मां का।
झारखंड का साधारण सा दिखने वाला गांव तिरिंग वास्तव में असाधारण सोच और जज्बे से लैस है। यह गांव आज देश के लिए प्रेरणा का स्रोत बन चुका है। यहां हर घर के दरवाजे पर बेटियों के नाम लिखे नेम प्लेट दिख जाएंगे।

दरअसल यहां हर घर के बाहर गृह मुखिया के तौर पर बेटियों के नाम बड़े बड़े अक्षरों वाले बोर्ड पर लिखे जाते हैं। इसके पीछे का मकसद बेटियों को
न केवल पहचान और समाज में सम्मान दिलाना हैं बल्कि उनके अधिकारों और महत्व को भी मजबूत करना हैं। इस गांव का टैग लाइन ही है “मेरी बेटी मेरी पहचान”।

ऐसे शुरू हुआ यह खास अभियान

गांव वालों के अनुसार गांव में आदिवासियों के कुल 161 घर है। घरों पर बेटियों के नाम लिखने की परंपरा तब शुरू हुई जब इस गांव की जनसंख्या में लड़कियों का लिंगानुपात लड़कों की अपेक्षा कम होने लगा। तब साल 2016 में जिले के तात्कालिक डीसी संजय पाण्डेय ने इस खास पहल की शुरुआत। इसके लिए गांव वालों और सामाजिक संगठनों से बात कर इस अभियान के लिए राजी किया गया।


गांव की आंगनबाड़ी सहायिका सुलोचना कहती है

“आदिवासी समाज में वैसे तो बेटियों और बेटों के बीच भेदभाव नहीं किया जाता है पर इस गांव में बेटियों की घटती तादाद चिंतित करने वाली थी। जब तात्कालिक डीसी ने इस गांव को मेरी बेटी मेरी पहचान अभियान के लिए चुना तो गांव वालों ने इसमें बढ़-चढ़कर कर हिस्सा लिया। अब यह इस गांव की परंपरा बन गई है। इसका असर भी दिखता है। यहां की हर बेटियां स्कूल जाती है और पढ़ लिख रही हैं।”

गांव की बेटी उषा रानी सरकार कहती हैं।

मैं जब भी दरवाजे पर लगा अपने नाम का नेमप्लेट देखती हूं मेरा आत्मविश्वास कई गुना बढ़ जाता है। यह हमें मजबूती देता है और एक जिम्मेदार नागरिक बने रहने की चुनौती भी। “

लौह नगरी जमशेदपुर से इतनी दूर है तिरिंग

तिरिंग गांव झारखंड के पूर्वी सिंहभूम जिले में स्थित है और लौह नगरी जमशेदपुर से लगभग 30 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यह गांव मुख्य रूप से कृषि पर आधारित है,यही यहां के लोगों की आजीविका का मुख्य साधन है।

हालांकि, यहां की अर्थव्यवस्था अन्य क्षेत्रों की तुलना में बहुत मजबूत नहीं लेकिन , लेकिन शिक्षा और सामाजिक सुधारों के चलते यह गांव तेजी से प्रगति की इबारत लिख रहा है।

बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ का सजीव उदाहरण

बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ अभियान को जहां सरकार और सामाजिक संस्थाएं बढ़ावा दे रही हैं, वहीं तिरिंग गांव ने मेरी बेटी मेरी पहचान को अपने जीवन का हिस्सा बना लिया है। यहां के लोग यह मानते हैं कि बेटियां किसी से कम नहीं हैं और उन्हें भी समान अवसर मिलने चाहिए। दरवाजों पर बेटियों के नाम लिखने की यह पहल इस सोच को और मजबूत करती है।

हर फैसले में भी बेटियों की राय

इस परंपरा ने गांव में बेटियों के प्रति सोच को बदला है। अब यहां माता-पिता गर्व से न सिर्फ अपनी बेटियों के नाम अपने घर के मुख्य द्वार पर लिखवाते हैं। बल्कि हर प्रमुख फैसलों में भी बेटियों की राय भी लेते हैं।

उदार होता है आदिवासी समाज

इस गांव का कई बार दौरा कर चुके झारखंड के युवा पत्रकार समीर कहते हैं

“आदिवासी समाज में महिलाओं के प्रति स्वतंत्रता और समानता का नजरिया प्राचीन काल से ही है। यह उनकी संस्कृति का हिस्सा है। दूसरी बात यह कि यहां के लोग किसी भी बात का दिखावा नहीं करते वो आपके साथ दिल से जुड़ते हैं। यही वजह है कि जब तात्कालिक जिला प्रशासन ने इस गांव में मेरी बेटी मेरी पहचान अभियान की शुरुआत की तो तिरिंग गांव के लोग इस अभियान के साथ न सिर्फ पूरे मन से जुड़े बल्कि इसे एक परंपरा का रूप ही दे दिया। मुझे लगता है यह आदिवासी समाज में ही संभव है और यह आदिवासी समाज की खुबसूरती भी है जहां कोई दिखावा नहीं होता। “

 

फैल रही शिक्षा और समानता की रोशनी

इस पहल का सबसे सकारात्मक प्रभाव शिक्षा के क्षेत्र में देखने को मिल रहा है। गांव में लड़कियों की स्कूल छोड़ने की दर में कमी आई है और उच्च शिक्षा के प्रति जागरूकता काफी बढ़ी है।

समाज के लिए एक नई राह

जहां जहां देश के महानगरों में महिलाओं के प्रति भेदभाव और महिला हिंसा की खबरें चिंता में डालतीं है। वहीं झारखंड का यह छोटा सा गांव तिरिंग गांव की यह पहल पूरे देश के लिए एक प्रेरणास्रोत है।

यह दिखाता है कि बदलाव सिर्फ सरकारी नीतियों से ही नहीं, बल्कि उन नीतियों को लोगों की सोच से जोड़ने की है जब समाज बेटियों को दिल से बराबरी का दर्जा देगा, तभी महिला सशक्तिकरण का सपना साकार हो सकेगा।

झारखंड का तिरिंग के बदलाव की पहल यह बताती है कि अपने समाज में छोटी-छोटी सकारात्मक बदलाव करें, तो उसका दूरगामी प्रभाव पूरे देश पर पड़ सकता है।

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Sunday को क्यों न बनाएं funday!

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रविवार यानी संडे, छुट्टी का दिन, एक ऐसा दिन जब हम अपनी दिनचर्या की भागदौड़ से राहत पाते हैं। लेकिन क्या हम इसे सिर्फ आराम का दिन मानकर गंवा देते हैं, या इसे सच में खुशियों से भर सकते हैं? आइए इस संडे को ‘खुशियों का संडे’ बनाने के कुछ शानदार तरीकों पर गौर करें।

अपने लिए समय निकालें

पूरे हफ्ते की व्यस्तता के बाद, संडे को अपने लिए समय दें। अपनी पसंदीदा किताब पढ़ें, कोई नई चीज़ सीखें, या सिर्फ शांति से बैठकर खुद से संवाद करें। यह आत्म-विश्लेषण और मानसिक शांति का बेहतरीन अवसर हो सकता है।

 परिवार और दोस्तों के साथ वक्त बिताएं

व्यस्त दिनचर्या में अपनों के लिए समय निकालना मुश्किल हो सकता है। संडे को परिवार के साथ बैठकर बातें करें, साथ में खाना खाएं या कोई गेम खेलें। अगर दोस्तों से लंबे समय से मुलाकात नहीं हुई है, तो उनसे मिलने या वीडियो कॉल करने का प्लान बनाएं।

शरीर और मन का रखें ख्याल 

रविवार को शरीर और मन को तरोताजा करने के लिए योग, ध्यान या हल्का व्यायाम करें। एक अच्छी वॉक पर जाएं या किसी पार्क में जाकर ताज़ी हवा लें। इससे न केवल शरीर स्वस्थ रहेगा, बल्कि मन भी प्रसन्न रहेगा।

अपने शौक पूरे करें

संडे को सिर्फ सोने या मोबाइल पर समय बिताने के बजाय अपने शौक पूरे करें। पेंटिंग, म्यूजिक, डांस, गार्डनिंग जैसी चीज़ों में शामिल होकर खुद को खुश करें। इससे रचनात्मकता भी बढ़ती है और मन को सुकून भी मिलता है।

  दूसरों में बांटे खुशी 

खुशियों को फैलाना भी अपने संडे को यादगार बनाने का एक तरीका हो सकता है। किसी जरूरतमंद की मदद करें, किसी के चेहरे पर मुस्कान लाने के लिए छोटे-छोटे प्रयास करें। दान करें, किसी बूढ़े व्यक्ति से बातचीत करें या बच्चों के साथ खेलें। यह आपको भी आंतरिक संतुष्टि देगा।

 नई योजना बनाएं

आने वाले हफ्ते के लिए योजनाएं बनाएं। अपने लक्ष्यों पर ध्यान दें और उनकी प्राप्ति के लिए छोटी-छोटी रणनीतियाँ बनाएं। यह आपको आने वाले दिनों में प्रेरित और व्यवस्थित रखेगा।

 मनपसंद खाने का आनंद लें

संडे को अपने पसंदीदा व्यंजन बनाएं या बाहर किसी अच्छे रेस्तरां में जाकर परिवार के साथ भोजन करें। अच्छा खाना मूड को बेहतर करता है और आपको पूरे हफ्ते के लिए तरोताजा महसूस कराता है।

संडे को केवल एक छुट्टी के रूप में न देखें, बल्कि इसे अपनी खुशियों को बढ़ाने और नई ऊर्जा प्राप्त करने के अवसर के रूप में अपनाएं। छोटी-छोटी चीज़ों से संडे को यादगार और आनंददायक बनाया जा सकता है। तो अगली बार जब संडे आए, इसे केवल ‘संडे’ न रहने दें, बल्कि इसे ‘खुशियों का संडे’ बना दें!

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Exam में तनाव को ऐसे कहें bye-bye

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परिणाम से ज्यादा महत्वपूर्ण है प्रयास!परीक्षा का नाम सुनते ही दिल की धड़कन तेज हो जाना, हाथ-पैर ठंडे पड़ जाना, और मन में तरह-तरह के सवाल उठना—यह सब बहुत सामान्य है। हर छात्र इसे महसूस करता है। यह सिर्फ एक परीक्षा नहीं होती, बल्कि कई सपनों, उम्मीदों और संघर्षों की कसौटी होती है। माता-पिता की उम्मीदें, अपने भविष्य की चिंता और समाज का दबाव—सब मिलकर इस तनाव को और बढ़ा देते हैं।

 

 

लेकिन क्या यह सही तरीका है? क्या परीक्षा केवल नंबर का खेल है, या यह हमारी काबिलियत को निखारने का एक अवसर?सोचिए, जब कोई खिलाड़ी मैदान में उतरता है, तो वह सिर्फ जीतने की नहीं, बल्कि अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन देने की सोचता है। जब कोई कलाकार मंच पर होता है, तो वह सिर्फ तालियों के लिए नहीं, बल्कि अपनी कला को जीने के लिए वहां होता है। तो परीक्षा में हम क्यों डरते हैं? यह भी तो खुद को साबित करने का एक अवसर है!अगर हम सही तरीके से तैयारी करें, आत्मविश्वास बनाए रखें और तनाव से दूर रहें, तो परीक्षा को आसान और सफलता को सुनिश्चित किया जा सकता है।

आइए जानते हैं कुछ बेहतरीन टिप्स, जो आपको परीक्षा में कूल और कॉन्फिडेंट बनाए रखेंगे।

सही योजना और टाइम मैनेजमेंट

पढ़ाई के लिए एक संगठित योजना बनाएं।कठिन विषयों को पहले और आसान विषयों को बाद में पढ़ने की रणनीति अपनाएं।छोटे-छोटे ब्रेक लेकर पढ़ाई करें ताकि ध्यान केंद्रित बना रहे।


सकारात्मक सोच बनाए रखें

खुद को बार-बार याद दिलाएं कि आपने पूरे वर्ष मेहनत की है और आप परीक्षा के लिए तैयार हैं।
नकारात्मक विचारों को हावी न होने दें, बल्कि आत्मविश्वास बनाए रखें।
सफलता के छोटे-छोटे लक्ष्य बनाकर उन्हें पूरा करें, इससे आत्मबल बढ़ेगा।


अच्छी नींद और खान-पान का रखें ध्यान

परीक्षा के दिनों में नींद से समझौता न करें। कम से कम 7-8 घंटे की नींद लें।
जंक फूड की जगह पौष्टिक भोजन करें, जिससे दिमाग और शरीर दोनों ऊर्जावान रहें।
हाइड्रेटेड रहें और पर्याप्त पानी पिएं।


तनाव कम करने के लिए मेडिटेशन और एक्सरसाइज

रोजाना 10-15 मिनट मेडिटेशन करें, इससे दिमाग शांत और केंद्रित रहेगा।
हल्की-फुल्की एक्सरसाइज या योग करें ताकि शरीर और मन दोनों ताजगी महसूस करें।

तुलना न करें, खुद पर भरोसा रखें

दूसरों की पढ़ाई से खुद की तुलना न करें, क्योंकि हर किसी की तैयारी का तरीका अलग होता है।
अपने मजबूत पक्षों पर ध्यान दें और परीक्षा को सकारात्मक दृष्टिकोण से लें।

परीक्षा हॉल में अपनाएं ये टिप्स

प्रश्न-पत्र मिलने के बाद घबराएं नहीं, पहले गहरी सांस लें और पेपर को ध्यान से पढ़ें।
जो प्रश्न आसान लगें, उन्हें पहले हल करें ताकि आत्मविश्वास बना रहे।
समय का सही प्रबंधन करें और उत्तर लिखने में स्पष्टता बनाए रखें।

परीक्षा जीवन का केवल एक हिस्सा है, यह पूरी जिंदगी नहीं है। मेहनत, आत्मविश्वास और सही रणनीति से परीक्षा के तनाव को दूर किया जा सकता है। याद रखें, परीक्षा केवल ज्ञान को परखने का जरिया है, आपकी पूरी क्षमता को आंकने का नहीं। इसलिए शांत रहें, सकारात्मक सोचें और अपने लक्ष्य की ओर आत्मविश्वास के साथ आगे बढ़ें। सफलता निश्चित ही आपके कदम चूमेगी!

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FAST LOVE TREND : बड़े धोखे हैं इस राह में

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प्यार… एक भोला सा एहसास, प्यार …एक शर्बतों सी मीठास, प्यार जिसमें हर पहर मन खिल कर गुलाब होता हो। यह वह नर्म सी भावनाओं की छुअन है जो एक दूसरे के दिल में महक उठता है।आज वर्चुअल वर्ल्ड ने प्यार को एक नया विस्तार तो दिया पर इस विस्तार के साथ प्रेम का बाजार भी फलता फूलता गया। प्रेम के बाजार ने इसे फास्ट बना दिया। आज प्यार इंस्टेंट एनर्जी ड्रिंक की तरह हों गया है। वैलेंटाइन डे पर पढ़िए आज के first Love culture और इसके side effect के बारे में…

आज सोशल मीडिया पर दोस्ती होती है। इमोजी के रूप में भावनाओं का आदान प्रदान होता है और फिर आई लव यू के रेडिमेड रेड टैम्पलेट से प्यार का इजहार भी हो जाता है।

आज का प्यार काफी फास्ट हो चुका है। व्हाट्सएप पर जन्म लेता है और इंस्टाग्राम पर जवान होता है । मोबाइल के टच एक से प्यार, तकरार और ब्रेकअप तक की आजादी और आपाधापी है । इन सब में कोई झिझक भी नहीं। यह आज का लव ट्रेंड है।


मोबाइल और इंटरनेट युग ने बदला love Trend

वैलेंटाइन डे कभी प्रेम के पवित्र और गहरे एहसास का प्रतीक हुआ करता था, लेकिन आज यह एक ‘बाज़ार का उत्सव’ बन चुका है। मोबाइल, इंटरनेट और सोशल मीडिया के फ़ास्ट युग में में प्यार भी उतना ही फास्ट हो गया है—फटाफट मुलाकात, झटपट कन्फेशन, और फिर जल्द ही ब्रेकअप।

जहां पहले प्रेम एक एहसासों और भावनाओं की धीमी यात्रा थी, जिसमें परस्पर समझ, धैर्य और समर्पण की जरूरत होती थी,

वहीं अब यह इंस्टेंट ग्रैटिफिकेशन (तत्काल संतुष्टि) का साधन बन गया है। युवाओं के लिए प्यार अब एक गहरी भावना की बजाय एक स्टेटस सिंबल और टाइमपास का जरिया बनता जा रहा है 

प्यार या सोशल मीडिया का स्टेटस?

पहले जहां प्रेम पत्र लिखे जाते थे, घंटों एक-दूसरे से मिलने के मौके तलाशे जाते थे, वहीं अब प्यार इंस्टाग्राम स्टोरीज़, व्हाट्सएप स्टेटस और डीपी चेंज करने तक सीमित हो गया है। अगर कोई पार्टनर सोशल मीडिया पर ‘रिलेशनशिप स्टेटस’ अपडेट नहीं करता या वैलेंटाइन डे पर फैंसी गिफ्ट नहीं देता, तो उसे गंभीरता से नहीं लिया जाता।

अब प्यार का मापदंड यह हो गया है कि आपका पार्टनर आपके पोस्ट पर कितने हार्ट इमोजी भेजता है, या आपके साथ कितनी ‘कपल रील्स’ बनाता है। सोशल मीडिया ने रिश्तों को सिर्फ दिखावे तक सीमित कर दिया है, जहां असली भावनाओं की बजाय ‘वर्चुअल वेलिडेशन’ को महत्व दिया जाता है।

 

डेटिंग ऐप्स और ‘स्वाइप कल्चर’ की दुनिया

आज  प्यार मिलना आसान हो गया है—बस एक क्लिक, एक स्वाइप और नई चैट शुरू! लेकिन यह सुविधा प्यार को गहरा बनाने की बजाय उसे सतही बना रही है। डेटिंग ऐप्स के ज़रिए रिश्ते इतनी जल्दी बनते हैं कि उनके टूटने की परवाह ही नहीं रहती।

टिंडर, बंबल, हिंज जैसे ऐप्स ने प्रेम को ‘ऑप्शंस का खेल’ बना दिया है। एक व्यक्ति से मन भरते ही दूसरा विकल्प हाज़िर रहता है।

यह ‘स्वाइप कल्चर’ युवाओं को लॉन्ग-टर्म कमिटमेंट से दूर कर रही है, जहां वे किसी रिश्ते को निभाने की बजाय नए ऑप्शन तलाशने में ज्यादा दिलचस्पी लेते हैं।

ब्रेकअप इतना आसान क्यों हो गया?

पहले जब रिश्ते टूटते थे, तो लोग उसे बचाने की कोशिश करते थे, समझौते करते थे और उसे निभाने की पूरी कोशिश करते थे। लेकिन आज ब्रेकअप करना उतना ही आसान हो गया है जितना कि एक एप्लिकेशन डिलीट करना।

छोटी-छोटी बातों पर ब्रेकअप होना आम बात हो गई है। ‘घोस्टिंग’ (बिना बताए रिश्ता खत्म कर देना), ‘स्लो फेडिंग’ (धीरे-धीरे कम होते टेक्स्ट और कॉल्स) और ‘सिचुएशनशिप’ (जहां कोई भी रिश्ता परिभाषित नहीं होता) जैसे ट्रेंड्स रिश्तों में अनिश्चितता और अस्थिरता ला रहे हैं।

रिश्तों में छोटी परेशानियों से बचने के लिए ब्रेकअप का रास्ता चुना जाता है, बजाय इसके कि आपसी समझदारी से रिश्ते को बचाया जाए। प्यार अब धैर्य और समर्पण की बजाय ‘जब तक सब ठीक है, तब तक ठीक है’ वाले फॉर्मूले पर चल रहा है।

क्या प्यार केवल गिफ्ट्स और डेट्स तक सीमित है?
बाजार ने प्रेम को एक महंगी चीज़ बना दिया है।

वैलेंटाइन डे पर महंगे गिफ्ट्स, फैंसी डेट्स और सरप्राइज़ प्लानिंग अनिवार्य मान लिए गए हैं। अगर कोई इन सब चीजों में पीछे है, तो उसे ‘रोमांटिक’ नहीं माना जाता।

पहले जहां प्यार का इज़हार एक सच्चे दिल से होता था, अब यह महंगे गुलाब, चॉकलेट, डिनर डेट्स और ब्रांडेड गिफ्ट्स से तय होने लगा है।यह बाज़ार प्रेम का इस्तेमाल कर रहा है, लेकिन हम इसे समझ नहीं पा रहे।

क्या है फास्ट लव में प्यार का गणित ?

मोबाइल और इंटरनेट ने हमें करीब तो ला दिया है, लेकिन भावनात्मक रूप से शायद दूर कर दिया है। लोग अब टेक्स्टिंग से गहराई तक पहुंचने की कोशिश करते हैं, लेकिन क्या वाकई टेक्स्ट से प्यार महसूस किया जा सकता है?

प्यार एक एहसास है, एक यात्रा है, न कि कोई ऑनलाइन ट्रेंड या टाइमपास। यह केवल आकर्षण या सुविधा नहीं, बल्कि आत्मीयता, समझ और परस्पर सम्मान का नाम है।

प्यार को फिर से समझने की जरूरत 

इस वैलेंटाइन डे पर ज़रूरी है कि हम खुद से पूछें—क्या हमारा प्यार असली है? क्या हम सिर्फ बाजार और ट्रेंड्स के पीछे तो नहीं भाग रहे हैं,

सच्चा प्यार वक्त और समझदारी मांगता है, यह सिर्फ दिखावे और तात्कालिक संतुष्टि से नहीं टिकता। इसलिए जरूरी है कि हम प्यार को दोबारा उसी भावनात्मक गहराई से देखें, जहां रिश्ता सिर्फ स्टेटस अपडेट नहीं, बल्कि दिल से दिल का जुड़ाव हो।

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इस वैलेंटाइन, खुद से ,खुद को कहें— ‘I LOVE U’

वैलेंटाइन वीक आ चुका है। प्रेम की मादक मिठास हवा में घुलने लगी है। हर कोई अपने प्रिय से अपने प्यार का इजहार कर रहा है— कोई गुलाब देकर अपने इश्क पर फना हो जाना चाहता है तो कोई , तो कोई अपने प्रेम जज़्बातों को शब्दों में पिरोकर प्यार के इन लम्हे को अमर कर देना चाहता है ।

लेकिन इस प्यार के मौसम में एक रिश्ता अक्सर नज़र अंदाज़ हो जाता है वो है हमारा खुद से खुद का रिश्ता।

क्या हमने कभी खुद से कहा है, “

I LOVE U  ?

क्या हम खुद को वैसे ही अपनाते हैं, जैसे हम दूसरों को अपनाने की चाह रखते हैं ? शायद नहीं। कभी नहीं।

हम अक्सर अपनी कमियों पर ध्यान देते हैं, खुद की आलोचना करते हैं, और खुद को उतना महत्व नहीं देते जितना दूसरों को देते हैं। लेकिन इस वैलेंटाइन क्यों न अपने लिए समय निकालें और खुद से एक वादा करें— यह वादा हो खुद से प्यार करने का, खुद को अपनाने का, खुद की सराहना करने का।

क्यों जरूरी है खुद से प्रेम ?

हम जीवनभर दूसरों की पसंद, उनकी स्वीकृति और उनके प्रेम को पाने की कोशिश में लगे रहते हैं। लेकिन जब तक हम खुद को नहीं अपनाते, तब तक कोई भी बाहरी प्रेम हमें पूर्ण नहीं कर सकता। खुद से प्रेम आत्म-सम्मान की नींव रखता है। यह हमें आत्मविश्वास देता है, खुशी का एहसास कराता है और कठिन परिस्थितियों में हमें मजबूत बनाए रखता है।

जब हम खुद से प्रेम करते हैं, तो हम खुद को किसी शर्त के बिना स्वीकारते हैं— अपनी अच्छाइयों के साथ, अपनी कमजोरियों के साथ, अपनी असफलताओं और सफलताओं के साथ। यह स्वीकृति हमें आत्मनिर्भर और सशक्त बनाती है।

खुद से प्रेम करने के तरीके

आईने के सामने खड़े होकर खुद से कहें— “आई लव यू”
पहली बार यह अजीब लग सकता है, लेकिन जब आप इसे रोज़ कहेंगे, तो आपको खुद से एक गहरा जुड़ाव महसूस होगा।

अपनी गलतियों को करें माफ

हम सब गलतियां करते हैं, लेकिन खुद को दोषी ठहराने के बजाय, खुद को माफ करें और आगे बढ़ें।

खुद को सराहें

आपको किसी और जैसा बनने की जरूरत नहीं है। आप जैसे हैं, वैसे ही अनमोल हैं। अपनी खूबियों को पहचानें और उनका जश्न मनाएं।

अपने लिए निकालें समय

दूसरों की देखभाल करने के साथ-साथ खुद का भी ख्याल रखें। खुद को वो खुशियां दें, जिनकी आप हकदार हैं— चाहे वो एक किताब पढ़ना हो, संगीत सुनना हो, या अकेले कहीं घूमने जाना हो।

अपनी उपलब्धियों पर हो गर्व

बड़ी हो या छोटी, हर उपलब्धि मायने रखती है। खुद की मेहनत को पहचानें और खुद को शाबाशी दें।

जब आप खुद से प्रेम करेंगे, तब दुनिया भी आपसे प्रेम करेगी । जिस तरह किसी पौधे की जड़ें मजबूत होने पर ही वह बड़ा और हरा-भरा हो सकता है, उसी तरह जीवन में दूसरों से प्रेम पाने के लिए सबसे पहले खुद से प्रेम करना जरूरी है। जब हम खुद को स्वीकारते हैं, तो हम दूसरों से भी बिना शर्त प्रेम कर सकते हैं।

इस वैलेंटाइन, गुलाबों और गिफ्ट्स से ज्यादा जरूरी है खुद को अपनाना, खुद को प्यार करना

खुद से यह कहिए—”मैं खुद को पूरी तरह स्वीकार करता/करती हूं। मैं अपनी गलतियों से सीखता/सीखती हूं। मैं खुद से प्रेम करता/करती हूं, क्योंकि मैं इस प्रेम का हकदार हूं।”

याद रखिए, सबसे खूबसूरत प्रेम वही है, जो खुद से शुरू होता है!

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