“यह कहानी एक ऐसे चिकित्सक की है जो भारत के भविष्य कहे जाने वाले बच्चों की ज़िंदगी संवार रहे हैं। उन्हें निकाल रहे हैं बीमारियों की नापाक गिरफ्त से। लड रहे हैं जंग, कुपोषण के खिलाफ। मकसद यह कि फिज़ा गुलज़ार होती रहे नन्हीं हंसी से। ठुमक -ठुमक कर चलते- बढ़ते बच्चे तुतली आवाज में बुलंद कर सकें स्वस्थ भारत का राग। आज कहानी कुपोषण के खिलाफ जन मन में जागरूकता भरने वाले डॉक्टर अनिल कुमार तिवारी की…”
“बच्चों में कुपोषण को अभिभावक रोग नहीं मानते, पर यह 50 फ़ीसदी बाल मृत्यु का कारक है। आप इसे ऐसे समझ सकते हैं कि अगर बच्चे सामान्य है तो डायरिया से दस में से नौ बच्चे सुरक्षित बच जाएंगे. पर अगर बच्चे कुपोषित हैं तो दस में से नौ बच्चे काल के गाल में समा जाने की संभावना है। बिहार जैसे राज्य में अभिभावक यह समझने को तैयार ही नहीं होते कि कुपोषण एक समस्या है और इसका इलाज जरूरी है। हमारे पास कुपोषण प्रभावित बच्चे तब आते हैं जब वे किसी दूसरी बीमारी से पीड़ित होते हैं।”कहते हैं डॉक्टर अनिल कुमार तिवारी । डॉक्टर अनिल कुमार तिवारी बिहार के जाने-माने शिशु रोग विशेषज्ञ हैं और कुपोषण के खिलाफ लंबे समय से कार्य कर रहे हैं।
डॉ.अनिल बताते हैं कि मैं अपने कार्य के दौरान ऐसे बच्चों का इलाज और पोषण पुनर्वास केंद्र में इनकी देखभाल तो करता ही हूं, साप्ताहिक अवकाश या अन्य छुट्टी वाले दिन शहरों के स्लम और गांव की बस्तियों में जाकर लोगों को कुपोषण के बारे में जागरूक भी करता हूं।
बच्चों की ज़िंदगी बचाने की खुशी अनमोल
डॉ.अनिल कुमार तिवारी बताते हैं कि बीमार और कुपोषित बच्चों का इलाज कर उन्हें स्वस्थ कर उनकी जिंदगी बचाने की खुशी अनमोल होती है। इस खुशी की तुलना आप करोड़ों की दौलत से नहीं कर सकते। जब कोई बच्चा स्वस्थ होकर डॉक्टर की ओर देख हौले से मुस्कुराता है तो यह दृश्य आपकी आत्मा को सुकून देने वाला होता है।
मुझे गर्व है कि मैं एक ऐसे पेशे में हूं जो बच्चों से और उनकी सेहत की रक्षा से जुड़ा है। बच्चों का मुस्कुराता चेहरा और हमारा कर्त्तव्य निर्वाहन मुझे हर रात अच्छी नींद और सुकून भरा जीवन देता है
कुपोषण पर रिसर्च नामी जनरल में प्रकाशित
डॉ.अनिल कुमार तिवारी ने कुपोषण पर लंबा शोध भी किया है। कुपोषण को लेकर किए गए शोध आधारित आलेख कई अंतरराष्ट्रीय जनरल ने डॉ. अनिल के लगभग 30 से अधिक रिसर्च पेपर प्रकाशित किए हैं। वे 40 से ज्यादा रिसर्च पेपर रिवियू का काम कर चुके हैं। बाल चिकित्सा पर दो टेक्सट बुक के निर्माण में भी डॉक्टर अनिल कुमार तिवारी ने अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया है। समय -समय पर वे बाल रोगों की स्थिति और उनके प्रभावों और निदान से संबंधित कार्यशालाओं में हिस्सा लेते रहते हैं। तथा टेलीविजन एवं समाचार पत्रों के माध्यम से जागरूकता फैलाते रहते हैं.
अपने गांव के पहले डॉक्टर
डॉक्टर अनिल बताते हैं कि मैं अपने गांव का पहला डॉक्टर हूं । वैसे तो मुझे गणित विषय काफी पसंद था पर परिवार के लोग चाहते थे कि गांव में कोई डॉक्टर नहीं है तो मैं डॉक्टर बनूं । सो मैंने इंटरमीडिएट में बायोलॉजी चुना। यह मेरे लिए बड़ी चुनौती थी, पर मैंने इसे स्वीकार किया और आगे की राह चुनी। जब चयन के बाद मेरा दाखिला मेडिकल कॉलेज में हुआ तो परिवार के साथ पूरा गांव प्रसन्न था। तब गांव का माहौल काफी सकारात्मक होता था ।शहर की प्रतिस्पर्धा और निजता का अतिक्रमण तब गांव में नहीं हुआ था। किसी परिवार की खुशी पूरे गांव की खुशी होती थी। किसी एक व्यक्ति का सपना पूरे गांव का सपना होता था। यह मेरे पिता और संपूर्ण परिवार के लिए भी गौरव का क्षण था। मैंने अपने पिता के चेहरे पर इसे महसूस किया था। एक किसान का बेटा डॉक्टर बनने की राह पर बढ़ चला था।
यहां बीता बचपन
डॉ अनिल कुमार तिवारी बताते हैं कि उनका जन्म बिहार के बक्सर के बभनी ग्राम में हुआ। पिता श्री पारसनाथ तिवारी किसान थे। माता श्रीमती कमला देवी कुशल गृहिणी। पिताजी छह भाई थे। हमारे पिताजी को छोड़कर बाकी भाई नौकरी पेशा में रहे। पिताजी ने पारिवारिक जिम्मेदारियों के कारण बीच में ही पढ़ाई छोड़ खेती अपना ली। सभी भाइयों को आगे बढ़ाने में पिताजी की बड़ी भूमिका रही। प्रारंभ में परिवार में ग़रीबी एक समस्या की तरह थी। पिता दिन-रात मेहनत करते और तब जाकर गृहस्थी की गाड़ी चलती। उन्होंने बुरी परिस्थितियों से संघर्ष कर हम सब को पढ़ाया और सुपथ पर चलने की प्रेरणा दी। परिवार के सभी अग्रज ने अपनी भूमिका सराहनीय ढंग से निभाई जिसके कारण परिवार के अन्य सदस्य शिक्षा के क्षेत्र में श्रेष्ठता पाने में सक्षम हो सके। आज पिताजी और माताजी हमारे बीच नहीं पर उनका बताया मार्ग ही है जिसपर हम अब भी चल रहे हैं।
पगडंडी वाले हाई स्कूल में पढ़ाई
डॉक्टर अनिल बताते हैं कि उनकी प्रारंभिक शिक्षा गांव के स्कूल में ही हुई। पांचवी तक की शिक्षा गांव के प्राइमरी स्कूल से मिली। छठी कक्षा में पढ़ने के लिए गांव से चार किलोमीटर दूर पैदल जाना होता था। हाईस्कूल भी ऐसा था कि वहां तक पहुंचने के लिए कोई सड़क नहीं थी । पगडंडी से होकर हम हाईस्कूल में पहुंचते। खैर इन तमाम कठिनाइयों के बाद भी शिक्षा और शिक्षक अच्छे थे। मेरे अंदर अनुशासन और नैतिक मूल्यों को स्थापित करने का श्रेय इन्हीं स्कूलों को जाता है। नौवीं से ग्यारहवीं तक की पढ़ाई के लिए मैं चाचाजी के यहां बोकारो चला गया यहां बोकारो स्टील सिटी स्थित स्कूल में मेरा दाखिला हुआ। तब बोकारो बिहार का हिस्सा था बिहार का बंटवारा नहीं हुआ था।
1978में मैट्रिक करने के बाद मेरा नामांकन पटना साइंस कालेज, पटना में करवा दिया गया। 1980 में इंटरमीडिएट पास करने के उपरांत 1981 में दरभंगा मेडिकल कॉलेज में मैंने दाखिला लिया। 1991 में पटना के पीएमसीएच से डिप्लोमा इन चाइल्ड हेल्थ और 1994 में दरभंगा मेडिकल कॉलेज अस्पताल से शिशु रोग में एमडी किया। 2009 में केरल विश्वविद्यालय से डेवलपमेंट न्यूरोलॉजी में पोस्ट ग्रेजुएट डिप्लोमा किया।
मैं 1990 में बिहार राज्य स्वास्थ्य सेवा में योगदान करने के बाद विभिन्न स्थानों पर कार्यरत रहा। वर्तमान में 2011 से मैं पीएमसीएच में सेवा दे रहा हूं। मेरी पूरी शिक्षा में अग्रज प्रोफेसर अखिलेश्वर तिवारी का भी काफी योगदान रहा।
कुपोषण के खिलाफ सरकार सजग
डॉ अनिल कुमार तिवारी कहते हैं कि मैं पीएमसीएच में शीशु रोग विभाग में प्राध्यापक के साथ ही स्टेट सेंटर ऑफ एक्सीलेंस फार सीवियर एक्यूट मालनरिस्ट चिल्ड्रेन का नोडल आफिसर भी हूं। डॉ. अनिल बताते हैं कि सरकार ने कुपोषित बच्चों के विकास के लिए कई महत्वपूर्ण कदम उठाए हैं। बात बिहार की करें तो बिहार में सभी जिलों को मिलाकर 41 कुपोषण पुनर्वास केंद्र है। इन केंद्रों में इलाज के साथ पोषण की जानकारी भी प्रदान की जाती है। वे आगे कहते हैं कि ग्रामीण इलाकों से भी खराब स्थिति शहरों के स्लम में रहने वाले बच्चों की होती है। स्लम में जगह की काफी कमी होती है और साफ-सफाई का काफी आभाव होता है ऐसे में कुपोषित बच्चों को कई बीमारियां अपने चपेट में ले लेती हैं।
मिल चुका है कई पुरस्कार
डॉ.अनिल कुमार तिवारी IYCF के राज्य स्तरीय प्रशिक्षक हैं। हेपेटाइटिस के राष्ट्रीय प्रशिक्षक हैं। डॉ. अनिल ने वैक्सीन प्रतिरक्षण, टी.वी.और एईएस जैसे बीमारियों के खिलाफ काफी कार्य किया है। वे IAP के एग्जिक्यूटिव बोर्ड मेंबर भी रहे हैं। डॉ.अनिल को अति प्रतिष्ठित फेलोशिप FIAP से नवाजा गया है। डॉ.अनिल कुमार तिवारी नेतृत्व में वर्ष 2020-2021 में बिहार स्टेट एन .एन.एफ के मानद सचिव के तौर पर कार्य के दौरान राष्ट्रीय स्तर पर बेस्ट स्टेट चेप्टर अवार्ड प्रदान किया गया। इस्ट जोन एकेडमी ऑफ पेट्रियोटिक पूर्वांचल पायोनियर अवार्ड से भी डॉक्टर अनिल को सम्मानित किया है।
बेटियां भी सामाजिक क्षेत्र में दे रही योगदान
डॉ. अनिल कुमार तिवारी बताते हैं कि उनकी दो बेटियां भी सामाजिक क्षेत्रों से ही जुड़ी हुई है। बड़ी बेटी डॉ. नेहा सावर्ण PMCH के कम्यूनिटी मेडिसिन विभाग में ट्यूटर के पद पर कार्यरत हैं। वहीं छोटी बेटी वर्तिका सावर्ण मिरिंडा हाउस से इकोनॉमिक्स में ग्रेजुएशन के बाद बर्लिन जर्मनी में प्रतिष्ठित संस्थान से मास्टर इन पब्लिक पॉलिसी” की पढ़ाई करने के बाद बर्लिन में हीं कार्यरत है।
पत्नी का मिलता रहा सहयोग
डॉ. अनिल बताते हैं कि उनका विवाह 1989 में डॉक्टर कमलेश तिवारी के साथ हुआ। जीवन के अच्छे – बुरे हर दौर में पत्नी का सहयोग मिलता रहा। फिलहाल डॉ कमलेश तिवारी आरडीजेएम मेडिकल कॉलेज, तुर्की , मुजफ्फरपुर में स्त्री एवं प्रसूति रोग विभाग में प्राध्यापक के पद पर कार्यरत हैं।
पर्यावरण संरक्षण जरूरी
डॉ. अनिल कुमार तिवारी कहते हैं कि हम सभी सेहतमंद रहे इसके लिए पर्यावरण को बचाना सबसे ज्यादा जरूरी है। यह काम बहुत मुश्किल भी नहीं हम ज्यादा से ज्यादा पेड़ लगा कर पर्यावरण को संरक्षित कर सकते हैं। वे आगे बताते हैं कि मैंने अपने गांव से जुड़ा हुआ हूं और वहां खुद पेड़ तो लगता ही हूं लोगों को भी इसके लिए प्रेरित करता हूं।
युवाओं को संदेश देते हुए डॉ. अनिल कुमार तिवारी कहते हैं :
“भले ही समय के साथ इस पेशे के बारे में सामाजिक सोच में कुछ नकारात्मक बदलाव आए हैं , इसके वावजूद यह पेशा आज भी पावन हैं, उम्दा है, पवित्र है। आज देश को बेहतर चिकित्सकों की जरूरत है। आप बेशक यह पेशा चुन सकते हैं यह आपको पहचान और सुकून दोनों देगा।”