चीखने-चिल्लाने, एनिमेटेड ग्राफिक्स, फूहड़ विज्ञापनों के इस दौर में आज भी कई ऐसे विज्ञापन बनते हैं जो दिल को छू जाते हैं. बिस्किट कंपनी पारले-जी ने एक ऐसा ही विज्ञापन बनाया है, जिसकी चर्चा हर तरफ है.
विज्ञापन में शिक्षक और उनके स्टूडेंट्स के बीच अटूट प्रेम के साथ पर्यावरण प्रेम को दिखाया गया है. वो प्रेम जिसे सालों पहले पौधा के रूप में संजोया गया था. सालों बाद जब वो दरखत बना तो उसके साये में खुद को पाकर इंसान खुद को कितना आनंदित होगा.
चंद किरदारों ने कहानी जीवंत कर दी
चित्रण यूं है कि, स्कूल का कैंपस. घंटी बजती है. कोरिडोर से महिला हेडमास्टर निकलती हैं. जैसे ही गेट पर आती हैं लड़कियों की एक टोली उनका अभिवादन करती हैं. हेडमास्टर भी अभिवादन करती हैं. वार्तालाप के बीच में शिवानी शिक्षिका को पारले-जी बिस्किट ऑफर करती है. शिक्षिका भी बेझिझक पैकेट में से एक बिस्किट उठा लेती हैं. शिवानी स्पोर्ट में काफी रूचि रखने वाली है. टेनिस खेलती है. मैडम शिवानी से प्रैक्टिस के बारे में पूछती हैं. फिर गार्डन में पेड़ों की तरफ निकल जाती हैं.
शिक्षक, संशय और सवाल
शिवानी के अंदर मैडम को लेकर एक सवाल है, जिसे शायद वो कभी पूछ नहीं पा रही थी. आज अच्छा मौका है. वह अनुमति के साथ वह पूछती है. “मैम.. स्कूल कैंपस के सारे पौधों को वैसे तो माली अंकल देखरेख करते हैं, लेकिन यहां के पेड़ों को आप खुद. ऐसा क्यों?
ये पेड़ नहीं हैं.. यादें हैं 85 बैच के
मैडम हंसती हैं. यह देख रही हो? मैडम शिवानी से पूछती हैं. शिवानी झट से दो पेड़ों का नाम चीकू और चंपा बताती है. शिवानी सही थी. लेकिन मैडम के लिए ये पेड़ चीकू और चंपा के नहीं थे. ये थे मंजू, आनंदकर्वा, क्वेश्चन मास्टर राहुल जोशी, स्पोर्ट्स जीनियस रीमा शाह और बैक बेंचर्स और रॉकेट लॉन्चर्स. मुस्कुराते हुए मैडम वहां से चली जाती हैं.
इतना जानने के बाद शिवानी सवालों से खाली नहीं, बल्कि और भर चुकी थी. तुरंत वहां से गुजर रहे स्कूल के स्टाफ से पूछी, काका इन पेड़ों का 1985 के बैच से क्या संबंध है?
फेयवेल खास बनाने का अच्छा आइडिया
उन्होंने कहा, कि जब 1985 का बैच स्कूल से विदा ले रहा था, तब सब ने अपने अपने नाम का पौधा मैम को गिफ्ट किया. क्लास तो आगे निकल गई लेकिन मैम अब भी 1985 बैच के साथ ही हैं. जाते-जाते काका ने कहा, कि अगले सप्ताह ही मैम रिटायर होने वाली हैं.
मैम पेड़ों को छूती हैं. पुरानी यादों में खो जाती हैं. इधर शिवानी एक और पारले-जी बिस्किट चट करती हुई मैम को देखती रहती है.
गाना चलता है,
“किताबों के पन्ने पलटे बहुत हैं.”
कहानी अभी भी जहां थी वहीं है”
मैम के फेयरवेल का दिन आता है. सभी गुलदस्ता मैम को भेंट करते हैं. बच्चों से मिलते हुए मैम काफी भावुक हैं. सबसे मिलने के बाद वह फिर से उसी 1985 बैच वाले बागान की तरफ जाती हैं, तभी एक शख्स आकर मैम का अभिवादन करता है. मैम उसे देखती हैं पर पहचान नहीं पाती हैं.
तभी पीछे से शिवानी कहती है, कैसे पहचानेंगी मैम आपके पौधे अब पेड़ जो बन गए हैं. इधर उस शख्स ने अपना परिचय जैसे ही आनंदकर्वा के रूप में दिया तो मैम ने झट से रौल नंबर 28 दोहराया. इसके बाद एक एक कर सभी पेड़ों के पीछे से निकलकर मैम के 1985 बैच के सभी स्टूडेंट्स ने अपना परिचय देना शुरू करते हैं तो मैम भाव-विभोर हो जाती हैं.
गाने की अगली पंक्ति बजती है,
“ढूंढे जिसे वो किरदार सारे
आ ही गए वो कहानी निभाने
हर एक पन्ना हर एक किस्सा जरूरी
मिल जाए सारे तो कहानी है पूरी.”
और इस तरह मैम को फेयरवेल गिफ्ट के तौर पर बैच ऑफ 85 मिलता है बैच ऑफ 25 की तरफ से.
जो औरों की खुशी में पाए अपनी खुशी. पारले-जी. के साथ विज्ञापन खत्म होता है.