जानें ‘हाथी गांव’ की दिलचस्प कहानी.. जहां हाथियों के लिए बने हैं घर, तालाब और अस्पताल

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    आप यह जानकर निश्चित ही थोड़ा चकित होंगे कि कोई गांव सिर्फ हाथियों के लिए बसाया गया है. जी हां, उस हाथी गांव में न सिर्फ हाथी रहते हैं, बल्कि उनके लिए शानदार घर, तालाब और अस्पताल जैसी व्यवस्था भी की गई है. तो आइये द बिग पोस्ट के साथ आपको हाथी गांव की सैर कराते हैं.

    गांव में 80 है हाथियों की आबादी

    राजस्थान की राजधानी जयपुर से जब आमेर की तरफ बढ़ेंगे तो तकरीबन 20 किलोमीटर दूर आमेर किले के पास यह गांव आपको मिलेगा. गांव का नाम ही है ‘हाथी गांव’. इस गांव के बारे में जब हम किसी आंकड़े या सुविधाओं की बात करें तो आप आंख मूंदकर हाथियों की ही समझिएगा. गांव की आबादी लगभग 80 है. यहां हाथियों के रहने के लिए सारे प्रबंध हैं, जिसे देखने देश ही नहीं, बल्कि विदेशी सैलानी भी यहां आते हैं.

    हाथियों के लिए फ्लैट, तालाब और हॉस्पिटल हैं

    हां, इस भ्रम में मत रहिएगा कि किसी आम गांव की तरह आप हाथी गांव के भी दो-तीन चक्कर देखते-देखते लगा सकते हैं. यह गांव पूरे 100 एकड़ में फैला हुआ है. जाहिर है गांव के निवासी भी तो ऐरावत महाराज हैं. खैर गांव घूमेंगे तो पता चलेगा कि यहां हाथियों के लिए रहने के लिए शानदार 1-बीएचके या 2 बीएचके टाइप घर बना हुआ है. उनके लिए तालाब बने हैं, जहां वे स्नान कर सकें. किसी कारणवश उनकी तबीयत खराब हो गई तो अस्पताल भी बनाए गए हैं. डॉक्टर उनकी सेहत का खूब ध्यान रखते हैं.

    गजराज के भरोसे महावत की जिंदगी

    हाथी के गांव में जाकर हाथी की सवारी न हो तो सफर अधूरा है. एलीफैंट विलेज में पर्यटक हाथी सफारी का खूब आनंद लेते हैं. इससे पर्यटक न केवल सफारी का लुत्फ उठा पाते हैं, बल्कि उन्हें हाथियों की जीवनशैली को पास से जानने का अवसर मिलता है. यहां हाथियों की देखरेख करने के लिए महावत के परिवार भी हाथियों के पास ही रहते हैं और उनका भरण पोषण भी हाथियों पर निर्भर रहता है.

    इंसानों जैसे हाथियों के भी नाम

    इनकी दुनिया भी बाकियों के मुकाबले अलग है, जो दिन-रात सिर्फ हाथियों के बीच ही बरसों से जिंदगी बिता रहे हैं. फिलहाल भारत के इकलौते हाथी गांव में 80 के करीब हाथी और इतने ही महावतों के परिवार रहते हैं, क्योंकि एक हाथी को एक महावत का परिवार देखभाल करता है. वहीं, इंसानों की भांति लक्ष्मी, चमेली, रूपा, चंचल जैसे हाथियों के नाम भी होते हैं और उन्हें नाम से ही पहचाना जाता है.

    इंसानों की तरह हाथियों को मिलती है छुट्टी

    इसके अलावा, विशेष पहचान के लिए हाथियों के कान के नीचे माइक्रोचिप भी लगाई गई है. वहीं, मौसम के हिसाब से हाथियों को महीने में 15 दिन छुट्टी भी मिलती है और सर्दी-गर्मी और बरसात के हिसाब इन्हें खाना दिया जाता है. हाथी गांव में हाथियों के रहने के लिए थान बने हुए हैं और एक ब्लॉक में तीन थान हैं और इस गांव में लगभग 20 ब्लॉक हैं.

    साल 2010 में हाथी गांव की घोषणा

    यही नहीं, हाथी के लिए अलग से स्टोरेज रूम के साथ महावत का कमरा भी थान के नजदीक ही होता है ताकि दिन-रात हाथी की मॉनिटरिंग होती रहे. दरअसल, देश आजाद होने के बाद जब आमेर फोर्ट को सरकार ने आम लोगों के लिए खोला तो यहां हाथी सवारी लोगों के बीच खासी लोकप्रिय हुई. ऐसे में आमेर के पास दिल्ली रोड पर एक गांव में हाथियों के रखने की व्यवस्था की गई. राज्य सरकार ने इस गांव में हाथियों की बढ़ती संख्या को देखकर इसे 2010 में हाथी गांव घोषित कर दिया.

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