यूं तो बिहार के किसी कोने में निकल पड़िए तो एक अलग ही चटखारा आपको मिल जाएगा. कोस-कोस पर पानी बदले और दस कोस पर वाणी तो बदलती ही है. साथ ही बदल जाती है रिवाज, रस्म और सबसे जरूरी स्वाद. चटखारे में आज मजा लेंगे सिलाव के खाजे का. कैसे 200 साल के इतिहास में खजूरी से खाजे के रूप में इस लजीज मिठाई को वैश्विक पहचान मिली.
200 साल का है इतिहास
नालंदा जिला मुख्यालय से बिहारशरीफ से करीब 20 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है छोटा सा शहर सिलाव. वैसे शहर ये आज है, पहले तो गांव ही हुआ करता था. सिलाव की पहचान यहां बनाई जाने वाली एक अलग किस्म की मिठाई है. नाम है खाजा. 52 परत वाले खाजे की शुरुआत यहां के ही बाशिेंदे काली साह ने करीब 200 साल पहले की थी। पहले इसे खजूरी कहा जाता था, लेकिन धीरे-धीरे इसका नाम खाजा पड़ा. 200 साल बीत गए, लेकिन खाजा के स्वाद में कोई फर्क नहीं आया है. आम से लेकर खास तक को यह व्यंजन बहुत लुभाता है. आज इनकी चौथी पीढ़ी इस व्यवसाय से जुड़ी है.
खाजा कारोबार से जुड़ी है चौथी पीढ़ी
चूंकि यह कारोबार 200 साल पहले शुरू हुआ. साल बदलते गए तो इससे पीढ़ी भी जुड़ती चली गई. आज काली साह के पीढ़ी के कुल 31 लोग जीवित हैं और खाजे के कारोबार से ही जुड़े हैं. काली साह के नाम पर शहर में 6 दुकानें हैं. पैतृक शान और कारोबार का आलम यह है कि उनके परपोते संदीप लाल की दारोगा की नौकरी लगी लेकिन उन्होंने उसे ठुकराकर अपने परदादा के व्यवसाय को आगे बढ़ाया.
एक पैसे सेर बिकता था खाजा
संदीप लाल बताते हैं, दिवंगत काली साह का मिठाई बनाने का पुश्तैनी धंधा था. दो सौ साल पहले जो खाजा बनता था उसे खजूरी कहा जाता था. उस वक्त घर मे हीं गेंहू पीस कर मैदा तैयार किया जाता था. शुद्ध घी में खाजा बनता था. उस समय एक पैसे सेर (किलो) खाजा बेचा जाता था. आज तकनीक के जरिए खाजा दुनिया के कई देशों तक पहुंच रहा है.
ऐसे वैश्विक बनता गया खाजा..
सिलाव मे बनाये गये खाजा का प्रदर्शन सबसे पहले वर्ष 1986 में अपना महोत्सव नई दिल्ली में हुआ था. कालीसाह के वंशज संजय कुमार को वर्ष 1987 मे मारीशस जाने का मौका मिला. मारीशस मे आयोजित सांग महोत्सव में मिठाई मे खाजा को सर्वश्रेष्ठ मिठाई का दर्जा मिला. 1990 में दूरदर्शन के लोकप्रिय सांस्कृतिक सीरियल सुरभि, वर्ष 2002 में अंतरराष्ट्रीय पर्यटन व व्यापार मेला नई दिल्ली के अलावे अन्य कई मौके पर खाजे ने धूम मचाई. देश सहित दुनिया की बड़ी हस्तियां इसका स्वाद चख चुके हैं. सिलाव के खाजे को जीआई टैग भी मिला हुआ है. अब भारत सरकार दवारा मेक इंडिया के तहत भारत के 12 पारंपरिक व्यजंन अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पेश किए जाने की योजना है, जिसमें सिलाव का खाजा भी शामिल है.