इस डाकिया के हौसले को सलाम, घर..पोस्ट ऑफिस सब तबाह.. बावजूद हर चिट्ठी को मुकाम तक पहुंचाने की जद्दोजहद

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केरल के वायनाड में प्रकृति का ऐसा कहर बरपा कि इसमें 200 से ज्यादा लोगों की मौत हो गई. भूस्खलन में सैकड़ों घर जमींदोज हो गए. हजारों लोग हताहत हुए. जो बचा वो हाहाकार. चीख पुकार. गुमनामी. अंधेरा.

ऐसे हालात में जीना कितना मुश्किल है, यह मुंदक्कई के डाकिये पीटी वेलायुधन से बेहतर कौन जान सकता है. क्योंकि वह स्वयं भूस्खलन से बचे हैं. वह हर उस मंजर से गुजरे हैं, जिसमें अपनों ने अपनों को आंखों के सामने से गुम होता देखा है. उनसे बेहतर कोई नहीं जानता कि ऐसे हालात में पत्रों का लोग कितनी बेसब्री से इंतजार करते हैं.

आइये संकट के दौर में अपने कर्तव्यों को जीने वाले वेलायुधन की जिंदगी को जीते हैं.

आज से करीब 33 साल पहले वेलायुधन यहां काम करने के लिए आए थे. जब वह 29 साल के थे तब उकी पोस्टिंग यहां हुई थी. आज उनके रिटायरमेंट में 2-3 साल ही बाकी हैं, लेकिन अपनी ड्यूटी निभाने के लिए वे हर सीमा को पार कर रहे हैं.

गांव के लोगों से खूब प्यार मिला

वेलायुधन बताते हैं, जब सालों पहले मैं यहां आया था तो मुझे लोगों से बहुत प्यार मिला. मैंने यहीं बसने का फैसला किया. 13 साल पहले चूरलमाला में अपना घर बनाया हूं. गांव के कई लोगों के साथ मेरी अच्छी दोस्ती है. मैं लगभग सबको जानता हूं.

दो पते को ढूंढने में दिन गुजर गया

संतोष, मदाथिल हाउस, मुंडक्कई, वेल्लारमाला’ एक ऐसा पता था जिसे वह पूरे दिन तलाश रहे थे. एक अन्य पत्र अब्दु रहमान चेरिपराम्बा, पुत्र रायिन, चेरिपराम्बा, मुंडक्कई डाकघर, वेल्लारीमाला, वायनाड के नाम था.

खुद भूस्खलन में बाल-बाल बची जान

वेलायुधन ने पूरा दिन शिविरों से शिविरों तक जाकर दो पते खोजने में बिताया. वे खुद भूस्खलन में जीवित बचे हैं, और उनसे बेहतर कोई नहीं जानता कि लोग पत्रों का कितनी बेसब्री से इंतजार करते हैं. वे अब्दु रहमान को नहीं ढूंढ पाए जो भूस्खलन में लापता हो गए थे. संतोष के साथ भी यही स्थिति थी. किसी तरह उन्हें जानकारी मिली कि आपदा के बाद संतोष को वायनाड मेडिकल कॉलेज अस्पताल में उपचार मिला था. कार्यालय समय के बाद, वेलायुधन ने पाया कि संतोष अरापेटा में एक रिश्तेदार के पास सुरक्षित है. जिसके बाद उस पत्र को उन्होंने मुकाम तक पहुंचाया.

“कैंप में ज्यादातर लोगों के पास मोबाइल फोन नहीं है. इसलिए वे कहां रह रहे हैं इसका पता लगाना और भी मुश्किल हो रहा है. लेकिन हम किसी भी स्थिति में अपना काम करते रहेंगे. लोगों की जरूरी चिट्ठियां उनतक पहुंचाते रहेंगे”पीटी वेलायुधन, डाकिया

भूस्खलन में वेलायुधन के घर भी तबाह हो गया. समय पर परिवार के साथ बाहर गए होने की वजह से उनकी जान बच गई. उनका पोस्ट ऑफिस भी तबाह हो गया. वह अभी अपने रिश्तेदारों के साथ रह रहे हैं. ड्यूटी के प्रति वेलायुधन का जज्बा देखने लायक है. वह प्रेरणा हैं उन सबके के लिए जो मुश्किल हालात में उम्मीद और हौसला छोड़ने लगते हैं.

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