‘स्कूटर स्कूल’ से झुग्गियों में ज्ञान की रोशनी लुटा रहे विजय अय्यर

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प्यासा कुआं के पास जाता है. अज्ञानी ज्ञानवान के पास. इसी तरह मरीजों का अस्पताल औऱ बच्चों का स्कूल जाना सामान्य बात है. लेकिन मध्य प्रदेश के भोपाल में स्कूल खुद ही चलकर बच्चों के पास जाता है. बच्चों को ललचाने, लुभाने, रोशनी लुटाने.

विजय चलाते हैं ‘स्कूटर स्कूल’

पेशे से मैकेनिक और समाज सेवा में लीन विजय अय्यर भोपाल के झुग्गियों में अपने ‘स्कूटर स्कूल’ के सहारे रोशनी लुटा रहे हैं. विजय का स्कूटर ही चलता फिरता स्कूल है. मोटरसाइकिल के पीछे लगेज स्पेस बना हुआ है, जिसमें बच्चों को लुभाने, फुसलाने, खिलाने और पढ़ाने के सामान होते हैं.

 

आम तौर पर जिन झुग्गियों को लोग नाक पर रूमाल बांधकर पार कर जाते हैं, वहां के बच्चों को स्कूल की राह दिखाना आसान नहीं है. लेकिन विजय इसे बखूबी निभा रहे हैं अपने स्कूटर स्कूल के सहारे.

विजय कहते हैं,

“स्लम बस्ती के बच्चे स्कूल नहीं जा पाते हैं. इन क्षेत्रों में माइग्रेंट वर्कर भी रहते हैं, जहां जाकर बच्चों को प्रेरित करते हैं. उन बच्चों को लुभाने की चीजें और खाने-पीने का सामान देकर पढ़ने के लिए प्रेरित किया जाता है.”

“मेरे स्कूटर का कॉन्सेप्ट बस यही है कि आजकल बच्चों को कुछ नया और यूनिक चाहिए होता है. स्लम बस्ती के बच्चों की मानसिकता और दूसरे बच्चों से अलग होती है. स्लम एरिया में घनी आबादी होती है, जिसके चलते बड़ी गाड़ी नहीं जा पाती है. इसके लिए हमने स्कूटर डिजाइन किया है. बच्चों के लिए मूलभूत सुविधाएं, स्टेशनरी, कपड़े, जूते आदि सामानों की व्यवस्था करते हैं.” विजय अय्यर, समाजसेवी

मोटरसाइकिल जो चारों तरफ से पोस्टरों से ढका है. जिसमें ढेर सारे खिलौने, चॉकलेट, किताबें और अन्य सामान पड़े रहते हैं. छोटा वाला लाउडस्पीकर भी. अलख शिक्षा का जगाएं गाना बजे तो बच्चे खिलखिला उठें. माटसाब जैसे ही उनके ही बीच जाएं तो अभिवादन. वाह! विजय जी इस शानदार आगाज के लिए. आप जहां भी रहिए रोशनी लुटाते रहिए.

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