महाराष्ट्र के सोलापुर जिले के माढा तहसील में स्थित है एक छोटा सा गांव मोडनिंब. 12X15 के कमरे में कैलाश काटकर सैलून चलाते हैं. हां, बाल कटिंग, शेविंग की दुकान. भूमिका में अब तक कोई खास बात नहीं. खासियत इसके आगे है जो हम आपको बताने जा रहे हैं. इस सैलून में कटिंग-शेविंग की शर्त यह है कि जब तक आप यहां किताबें नहीं पढ़ लेते, तब तक यह सेवा आपको नहीं दी जाएगी चाहे आप कितने भी पैसे क्यों नहीं दे देते.
सैलून शुरू करने और उससे पैसे कमाने की बात तो समझ आती है, लेकिन धंधा से पहले किताबें पढ़ने की शर्त जैसी बात कुछ समझ से परे है. इस अनूठे सैलून में ऐसा क्यों है यह जानने के लिए हमें कैलाश की जिंदगी के भी पन्ने पलटने होंगे.
भाइयों की पढ़ाई के लिए छोड़ी इंजीनियरिंग
कैलाश ने महाराष्ट्र के पंढरपुर से आईटीआई सिविल ड्राफ्टमैन का कोर्स किया था. सपना इंजीनियर बनने का था, सो उन्होंने इंजीनियरिंग में दाखिला भी लिया. कैलाश के दो छोटे भाई भी थे. उनकी पढ़ाई और घर का दारोमदार भी पिता के बाद कैलाश के कंधे पर आ गया था. इसलिए उन्होंने अपनी पढ़ाई छोड़कर पिता का सैलून संभाल लिया.
रीडिंग इंस्पीरेशन डे पर की पहल
कैलाश की पढ़ाई तो छूट गई लेकिन उन्होंने कसम खाई कि जितना भी हो सकेगा, पढ़ाई के रास्ते में हर किसी का वह सहयोग करेंगे. इसके बाद देश के पूर्व राष्ट्रपति कलाम साहब की जयंती यानी 15 अक्तूबर, जिसे हम रीडिंग इंस्पीरेशन डे के तौर पर मनाते हैं, से सैलून में किताबें रखनी शुरू कर दी. साथ ही कटिंग-सेविंग से पहले किताबें पढ़ने की शर्त भी.
दृष्टिबाधित ग्राहक से मिली प्रेरणा
कैलाश को सैलून में किताबें रखने की प्रेरणा दृष्टिबाधित ग्राहक विभीषण से मिली. 40 साल से बैरागवाडी के विभीषण जब भी सैलून आते ब्रेल लिपी की किताब लेकर आते. वे किताब पढ़ते और सैलून में मौजूद ग्राहक उन्हें सुनते. आज सैलून में अंदजन मंडल की ओर से ब्रेल लिपि की किताबें आती हैं.
सैलून अब बन गया है लाइब्रेरी
कैलाश के इस सैलून में भले ही ग्राहकों के लिए जगह कम पड़ जाएं, लेकिन किताबें रखने के लिए अलमारियों की कमी नहीं है. यहां करीब 300 से ज्यादा किताबों का संग्रह हो गया है. जिनमें ड़ॉ एपीजे अब्दुल कलाम, विनायक सखाराम खांडेकर, रणजीत देसाई, विश्वास पाटिल, सुधा मूर्ति सहित अन्य साहित्यकारों की किताबें हैं.
शेविंग से पहले पढ़नी होगी किताबें
यहां बच्चे, जवान और वृद्ध सभी उम्र वर्ग के लोग आते हैं, जिनके लिए च्वाइस के हिसाब से किताबें जमा हैं. अगर इस सैलून रूपी लाइब्रेरी में उन्हें बाल कटवाना या शेविंग कराना है तो उससे पहले उन्हें किताबें पढ़नी होती है. अगर किताब पसंद आए और पूरी पढ़ने की इच्छा हो तो ग्राहक उसे घर भी ले जा सकते हैं.
कैलाश की इस पहल के पीछे सोच है कि सैलून में ज्यादातर लोग अपना समय टीवी, मोबाइल देखने में बीता देते हैं. ऐसे में अगर वे किसी भी किताब के चंद पन्ने पढ़ लेते हैं तो उससे उन्हें कुछ अनुभव ही होगा.