दिल्ली के इस इलाके में हर साल तैयार होता हजारों ‘रावण’… इनके जलने से हजारों घर चलते हैं

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जब देशभर में शक्ति की देवी की आराधना होती है. भजन, कीर्तन, आरती, यज्ञ, हवन आदि-आदि. उसी समय दिल्ली के तीतरपुर इलाके में हजारों की संख्या में ‘रावण’ तैयार हो रहे होते हैं. रावण तैयार होना माने रावण के पुतले जो बनते ही वध के लिए तैयार होते हैं.

विरासत में मिला रावण बनाने का काम

रावण का पुतला बनाने का काम ऐसा है कि आज की पीढ़ी को भी यह विरासत में मिला. उम्मीद है आने वाली पीढ़ियों को भी मिले, जिससे अधर्म पर धर्म का विजय पताका हमेशा लहराता रहे.

ताकि आने वाली पीढ़ियां भी न भूले

ये हैं मदन लाल लोहिया.  ये दिल्ली के टैगोर गार्डन के पास तीतरपुर गांव में रहते हैं. रावण के पारंपरिक पुतले बनाते हुए इन्हें 40 साल से भी ज्यादा समय बीत चुका है. आगे की पीढ़ी को भी मदन लाल अपनी यह कला विरासत में दे रहे हैं. उनका बेटा छोटी उम्र से ही पिता से रावण बनाना सीख रहा है.

रावण के पुतलों का भारी डिमांड

अपनी कलाकारी और काम पर इन्हें गर्व है. मदनलाल बताते हैं कि इनकी दुकान न्यू इंडिया रावण वाले से इनके बनाए पुतले आस्ट्रेलिया तक भेजे जा चुके हैं. देश में तो रावण के पुतले के लिए महीनों पहले से ऑर्डर भी मिलते हैं.

5000 से ज्यादा कारीगर बनाते हैं पुतले

राजधानी दिल्ली के पश्चिमी हिस्से में स्थित तीतरपुर में हर साल दशहरे के समय सैकड़ों कारीगर रावण के पुतले बनाते हैं. यह एशिया का सबसे बड़ा पुतला मार्केट है. त्योहार के सीजन में 5 हजार से ज्यादा कारीगर दिन रात एक कर बांस और देसी तरीके से हर साल हजारों की संख्या में पुतले बनाते हैं.

जलता है रावण तो चलता है घर

नवरात्रि के समय से ही तीतरपुर के बाजार में आपको रावण के पुतले दिखने शुरू हो जाएंगे. दुकानदार सड़क किनारे रावण को सजाए रखते हैं. इनके बनाए पुतले जब जलते हैं तो इनके घरों में रोशनी आती है. रोटी का खर्च निकलता है.

त्योहार के सीजन में वैसे तो ये रावण गढ़ते हैं, लेकिन साल के बाकी समय में ये कारीगर कार्पेंटर, इलेक्ट्रिशियन, पेंटर और अन्य तरीके के कामगार होते हैं.

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