उस शख्स का जन्म एक ऐसे गांव में हुआ जहां तक विकास की रौशनी लोगों की आंखों से ओझल थी
बेहतर शिक्षा और स्वास्थ्य सपनों तक सिमटे थे। इलाज के लिए है नीम हकीम और झोलाछाप डॉक्टरों का सहारा। ऐसे में जब होश संभाला तो गांव की ये समस्याएं मन को विचलित करती रहती। पढाई के दौरान जेहन में बार – बार यह ख्याल आता की कैसे गांव के लोगों के लिए बेहतर स्वास्थ्य सेवा मुहैया कराई जा सके। फिर डॉक्टर बनने का प्रण लिया, सरकारी नौकरी भी मिली पर मन में कुछ अलग करने की अलख जग गई थी सो सब कुछ छोड़ अपना अस्पताल खोला। अस्पताल ऐसा कि कम दर पर एक छत के नीचे इलाज की सुविधा उपलब्ध है। अगर आपके पास पैसे नहीं हैं तो बिना पैसे भी आपका इलाज चलता रहेगा। भविष्य का सपना अपने कस्बा ढाका समेत बिहार के हर प्रखंड में अत्याधुनिक सुविधाओं से युक्त चैरिटेबल अस्पताल खोलने का है। आज की कहानी बिहार के लोगों को सेहतमंद बनने की ज़िद थामें आगे चलते -बढ़ते चिकित्सक डॉ अशफाक अहमद की…
मेरा जन्म बिहार नेपाल की सीमा पर लगे ढाका के करसहिया गांव में हुआ। हमारे गांव की हालत ये कि तीन पंचायत के बीच भी एक भी डॉक्टर नहीं था। ऐसे में मर्ज भी बढ़ता जाता और लोगों की जान पर बन आती। ऐसे में मुझे लगा कि यह सूरत बदलनी चाहिए । मैंने उसी वक्त संकल्प लिया था कि मुझे डॉक्टर बनना है और अस्पताल खोलना है। कहते हैं डॉ अशफाक। डॉ अशफाक कहते हैं कि जब मैंने नजदीक से कई निजी अस्पतालों की हालत देखी तो मुझे वह मरीजों की हितकारी नहीं लगी। इस वक्त मैं पढ़ाई पूरी कर नौकरी भी करने लगा था। मेरे सामने मेरे गांव के बीमार लोगों का चेहरा घुमता रहता। फिर मैंने नौकरी छोड़ी और पटना के कुम्हरार में 12 बेड का एक अस्पताल शुरू किया। इसके बाद 2020 में राजधानी पटना के एसपी वर्मा रोड पर रेनबो अस्पताल की स्थापना की। यह अस्पताल 52 बेड का है और इसमें एक छत के नीचे उचित दर पर सभी इलाज अत्याधुनिक तकनीक के साथ उपलब्ध है।
यह है रेनबो अस्पताल का मकसद
देखिए रेनबो की तरह ही हम चाहते हैं कि लोगों की जिंदगी में खुशियां के तमाम रंग हों। हर किसी का जीवन चटख रंगों से गुलजार हो मुस्कुराता रहे। सभी स्वस्थ रहें सभी सबल रहें। यही हमारे अस्पताल का मकसद है। कहते हैं डॉ अशफाक। वो आगे कहते हैं कि किसी भी चार्ज को हमारे अस्पताल में य छुपा कर नहीं रखा गया है। सब कुछ डिस्प्ले किया है। प्राइवेट अस्पतालों पर लोगों का नजरिया पैसे के मामले में ठीक नहीं रहता। कुछ अस्पतालों के कारण एक आम धारणा बन गई है कि निजी अस्पताल मरीजों से मोटी वसूली करते हैं। बेवजह उन्हें आईसीयू में भर्ती रखते हैं और मोटा बिल बनाते हैं, हम इन सभी धारणाओं को यहां तोड़ने का काम करते हैं। हमारी कोशिश कम दर पर उम्दा स्वास्थ्य सेवाएं मुहैया कराना है। यही वजह है कि यह अस्पताल अब लोगों के भरोसे का नाम बन गया है। वे आगे कहते हैं कि रेनबो अस्पताल एक विश्वास है, उम्मीद है अंतिम आदमी तक बेहतर स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध करवाने का। यही हमारी टीम का संकल्प है। हम मेवा भाव से नहीं सेवा भाव से कार्य करते हैं। अगर किसी के पास पैसे न हो फिर भी यहां इलाज नहीं रुकता। हमारी प्राथमिकता जीवन बचाने की होती है। हर किसी की जिंदगी महफूज रह सकें हम यही दुआ उपर वाले से मांगते हैं।
ढाका में चैरिटेबल अस्पताल जल्द
डॉ अशफाक आगे कहते हैं कि हम जल्द ही ढाका में चैरिटेबल अस्पताल शुरू करने जा रहे हैं। यहां एक छत के नीचे तमाम आधुनिक चिकित्सा सेवाएं उपलब्ध हो सकेंगी। इससे बिहार ही नहीं पड़ोसी देश नेपाल के लोगों को भी काफी फायदा होगा। यहां रियायती दर पर स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध होंगी। यहां के चिकित्सक और सहकर्मियों को भी विशेष ट्रेनिंग दी जाएगी। यह अस्पताल तकनीकी मामलों में तो अव्वल होगा ही व्यवहार के मामले में भी बेहतर होगा।
ढाका के बाद हम बिहार के हर जिले में एक अदद अस्पताल बनाने की योजना पर कार्य कर रहे हैं और मुझे यकीन है कि जल्द ही हमारा यह सपना भी पूरा होगा और कोई भी इंसान इलाज के आभाव में दम नहीं तोडेगा।
जिंदगी के इम्तिहान से मिलती है सीख
डॉक्टर अशफाक बताते हैं कि जिंदगी आपका हर कदम पर इम्तिहान लेती है। जरूरी नहीं कि आप जिंदगी के हर इम्तिहान में पास ही हो जाएं कभी कभी फेल भी होना पड़ता है। इतना तो तय है कि जिंदगी के हर इम्तिहान से आपको सीख ही मिलेगी। अब यह आप पर निर्भर है कि आप उसे कामयाबी में कैसे बदलते हैं। कामयाबी के मायने बस दौलत तक नहीं सिमटें है मेरी नज़र में कामयाबी आपको एक अव्वल इंसान बनाती है आपमें इंसानियत भरती है । आपके रूह को पावन करती है।
यहां से हुई शिक्षा दीक्षा
डॉ अशफाक की प्रारंभिक शिक्षा गांव के स्कूल में हुई। यहां के सरकारी स्कूल से उन्होंने पांचवीं तक पढ़ाई की । इसके बाद ढाका के एक निजी स्कूल में उनका दाखिला कराया गया यहां से आठवीं पास करने के बाद मोतिहारी स्थिति जिला स्कूल से उन्होंने मैट्रिक तक की पढ़ाई की। इसके बाद एल एन डी कालेज से बारहवीं की पढ़ाई हुई। साल 2005 में इंटरमीडिएट की परीक्षा पास करने के बाद साल 2006 से 2011 तक दरभंगा में BUMS की पढ़ाई पूरी की। फिर राजधानी पटना का रुख किया और मेडिकल आफिसर के रूप में अपना योगदान दिया।
2013-2015 में सिम्वायोसिस यूनिवर्सिटी पुणे से हॉस्पिटल एंड हेल्थ केयर मैनेजमेंट की पढ़ाई की। यहीं से क्लीनिकल रिसर्च में पीजी किया। इसके बाद साल 2015 में बिहार सरकार के स्वास्थ्य विभाग में आयुष मेडिकल आफिसर के पद पर नियुक्त हुए। यहां 2016 तक कार्यरत रहे। साल 2016 में नौकरी से त्यागपत्र दे दिया और एमबीबीएस की पढ़ाई हेतू आर्मेनिया में नामांकन लिया। सन 2021में एम बीबीएस की पढ़ाई सफलतापूर्वक पूरी करने के बाद एमआरसीपी किया। इसी दौरान रेनबो हॉस्पिटल की नींव पड़ी ।
पिताजी ने हमेशा दिया हौसला
डॉ अशफाक बताते हैं कि उनके पिता ने हर कदम पर उन्हें हौसला दिया है। पिताजी मुस्ताक अहमद वेटनरी डिपार्मेंट में कार्यरत हैं। उन्होंने कभी भी मुझे निराश नहीं होने दिया आज मैं जो कुछ भी हूं उसमें मेरे पिताजी का बड़ा महत्वपूर्ण योगदान है।
जीवन साथी का साथ महत्वपूर्ण
डॉ अशफाक बताते हैं कि मेरी शादी 2016 में हुई । पत्नी शाहेदा परवीन ने दरभंगा विश्वविद्यालय से MSC किया और इसके बाद पाटलिपुत्र विश्वविद्यालय से LLB किया है। जीवन के हर दौर में शाहिदा का साथ मिला है। कोरोना काल में जब हमरा अस्पताल बंद हो गया था और कई और से मुश्किलें आ गई थी उस वक्त उन्होंने मुझे बड़ी हिम्मत दी। वह हर कदम पर मेरे साथ रहती हैं।
उत्साह भरती है बच्चे की नन्हीं हंसी
डॉ अशफाक कहते हैं हमारा बेटा आरिज़ तीन साल का है। बच्चे के साथ रहकर हमारे बचपन की यादें ताजा हो जाती है। कितनी भी थकान या तनाव हो उसकी नन्ही हंसी सब दूर कर देते हैं। छुट्टियों के दिन मैं परिवार में ज्यादातर वक्त देने की कोशिश करता हूं।
मिल चुके हैं कई सम्मान
डॉ अशफाक अहमद को देश भर के प्रतिष्ठित मंचों से चिकित्सा क्षेत्र में विशेष कार्य हेतु सम्मानित किया जा चुका है। इसके साथ साथ दूरदर्शन और अन्य टीवी चैनलों पर समय समय पर बीमारियों से बचाव और स्वस्थ जीवन के सूत्र डॉ अशफाक बताते रहते हैं।
100 से अधिक फ्री मेडिकल कैंप
डॉ अशफाक ने अब तक 100 से अधिक मेडिकल कैंप का आयोजन किया है। ज्यादा मेडिकल कैंप सुदूर गांवों में आयोजित किए जाते हैं ताकि हासिए पर रहने वाले लोगों के सेहत की जांच और उनका इलाज किया जा सके।
फिलवक्त डॉ अशफाक अपने नाम के अनुरूप दयालु हृदय के साथ स्वस्थ भारत का प्रण लें जन जन को सेहतमंद बनाने की मुहिम में जुड़े हैं।