दुनिया भर में पेड़ों को दोस्त बनाने का हुनर सिखला रही देवोप्रिया की कहानी पढ़िए

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मेरी दो मां है, एक मुझे जन्म देने वाली मां और दूसरी धरती मां जिसके प्यार के बिना मेरा इस धरती पर जीवित रहना नामुमकिन था। इन दोनों मां ने मुझे खुब स्नेह दिया। धरती मां ने हरी भरे पेड़, पत्ते, रंग बिरंगे फूल, पक्षी बलखाती हुई नदियां और मस्त मलंग झरने मुझे उपहार में दिए। मुझे खुश रहने की कला सीखाई। वो अपने सभी बच्चों से बहुत प्यार करतीं हैं। तो क्या हम सब का कुछ फ़र्ज़ हमें इतना चाहने वाली मां के प्रति नहीं बनता? बनता है ना! मैं धरती मां के इसी कर्ज को चुकाने के लिए अब तक दुनिया भर में हजारों बच्चों से मिल चुकी हूं मैं उनसे बस एक   प्रॉमिस करवती हूं     कि धरती मां को खुशहाल रखें।” कहती हैं देबोप्रिया।

 

देवोप्रिया पर्यावरण संरक्षण पर काम करने वाली संस्था तरूमित्र से जुड़ी हैं। और अब तक भारत समेत कई देशों में जाकर पर्यावरण संरक्षण का अलख जगा रही हैं। देवो प्रिया युनाइटेड नेशन्स में भी इस विषय पर आपने विचार रख चुकी हैं।
देवोप्रिया कहती हैं कि मैंने इसके लिए बिहार, बंगाल , केरल, सिक्किम, महाराष्ट्र, मेघालय आदि राज्यों के स्कूलों का दौरा कर वहां के छात्र – छात्राओं से मुलाकात की है मैं उनसे पर्यावरण संरक्षण की अपील करने से पहले प्रकृति से जुड़ाव महसूस कराने की पहल करती हूं।

बच्चे बनाएंगे हरी दुनिया

देवो प्रिया कहती हैं कि हम सभी जानते हैं कि बच्चे ही कल हमारे जिम्मेदार नागरिक होंगे। इनके हाथों में कल के देश और दुनिया का भविष्य है। ऐसे में अगर बच्चे ही जागरूक हो जाएं तो समस्याओं का काफी हद तक समाधान निकल जाएगा। यह काफी चौंकाने वाला होता है कि शहर के स्कूलों में पढ़ने वाले काफी बच्चों ने गौरेया को नहीं देखा है। काफी बच्चों ने कौवे का कांव -कांव खुद के कानों से नहीं सुना है। आज अपार्टमेंट के बंद फ्लैट में रहते हैं।

गांवों की हालत भी काफी तेजी से बदल रही है। अब वहां भी आंगन वाले मकान काफी कम बचे हुए हैं। शहरी संस्कृति की खुब नकल गांवों में हो रही है। पेड़ कटते जा रहें हैं और कंक्रीट का दायरा बढ़ता जा रहा है। कुएं, तालाब, पाइन, आदि की संख्या तेजी से घटी है । इन सब के पीछे एक कारण यह भी है कि हमने प्रकृति से दोस्ती छोड़ दी है। पहले गांवों में कुओं का खुब प्रयोग होता था। लोग वहां के पानी का प्रयोग करते, यह जगह लोगों के मेल जोल की जगह भी थी। नहाने और पानी भरने के दौरान लोगों की आपसी बातें – मुलाकातें भी होती और शारीरिक श्रम भी। कुआं जल संरक्षण के लिए काफी उपयोगी होता था। समाज के लोग उसकी देखरेख करते। नियत समय पर साफ सफाई की जिम्मेदारी भी समाज के लोगों की होती। अब फास्ट लाइफ के पीछे या फिर एकल होते समाज में कुआं अकेला हो गया और बाद में उसे भर कर वहां भवन बना दिए गए। अब एक बटन दबाने पर पर ठंडा और गर्म पानी तो उपलब्ध है पर हमारा वाटर लेवल पाताल में चला गया है। जलवायु परिवर्तन का असर मौसम विज्ञान की गणना से बाहर आ शहरों और गांवों तक में दिख रहा है।

हम विकास के विरोधी न हों पर यह विकास प्रकृति की खुबियों के साथ साथ चलना चाहिए न की प्रकृति की आत्मा को कष्ट पहुंचा कर। अगर हम सभी बच्चों की सोच बदलने में कामयाब हो गए तो यह दुनिया खुद बदल जाएगी। मेरी कोशिश बस सोच बदलने की है ।

छोटी शुरुआत हीं सही

देवोप्रिया बताती है कि हम तुरंत जंगल नहीं लगा सकते पर आपने घर के छत या बालकोनी में चार गमले तो लगा सकते हैं। पंक्षियों के लिए छोटे घोंसले और दाना पानी तो रख सकते हैं यही से बदलाव की शुरुआत हो सकती है। हम तरूमित्र में बच्चों को तरह तरह के वर्कशॉप द्वारा प्रकृति से दोस्ती करना सीखाते है। हम वहां बिना उर्वरक और किटनाशक के आर्गेनिक फार्मिंग भी करते हैं। जब स्कूली बच्चे धान की रोपाई करते हैं तो उसका उत्साह देखने लायक होता है। यह सब मुझे काफी सुकून देता है। मुझे लगता है कि मैं धरती मां का क़र्ज़ चुका पा रही हूं।

यहां से मिली प्रेरणा

देवो प्रिया कहती हैं कि स्कूल में पढ़ाई के दौरान मैं मुझे अपने शिक्षक से प्रकृति से जुड़ाव की प्रेरणा मिली। मैं कक्षा 6 में थी तभी हमने तरुमित्र का दौरा किया था और यहां काफी कुछ जाना- सीखा। मन में यह बात तभी से आ गई कि धरती को बचाना जरूरी है। उसी वक्त वहां तरुमित्र के संस्थापक फादर रॉबर्ट से मुलाकात हुई ‌ । फादर रॉबर्ट से मैं काफी प्रभावित हुई। मैं क्लास की मॉनिटर रहा करती थी तो प्रखरता तो मेरे अंदर थी। आगे चलकर फादर रॉबर्ट ने मुझे तरूमित्र से जुड़ने का मौका दिया और फिर हरित बदलाव की मेरी मुहिम ने गति पकड़ ली।

 

क्या है तरूमित्र

तरूमित्र एक प्रसिद्ध पर्यावरणीय संस्था है, जिसकी स्थापना 1988 में पटना, बिहार में हुई थी। इसका मुख्यालय पटना में स्थित है और यह संस्था विशेष रूप से युवाओं को पर्यावरण संरक्षण के लिए प्रेरित करती है। तरूमित्र का उद्देश्य वृक्षारोपण, जैव विविधता संरक्षण और हरित जीवनशैली को बढ़ावा देना है। यह संस्था स्कूलों और कॉलेजों के छात्रों को शामिल कर पर्यावरणीय जागरूकता अभियान चलाती है। तरूमित्र को यूनिस्को (UNESCO) द्वारा मान्यता प्राप्त है,जो इसकी वैश्विक स्तर पर प्रासंगिकता और योगदान को दर्शाता है।

गरीब बच्चों को पढ़ाती भी हैं देवोप्रिया

देवोप्रिया दत्ता   कहती हैं कि आप कुछ अच्छा कर के देखो आपको खुद एक सुकून मिलेगा। मैं लगभग हर दिन किसी न किसी स्कूल कालेज में अपने कैंपेन के सिलसिले में जाती रहती हूं।शाम का समय मैं गरीब बच्चों को बढ़ाने में बिताती हूं। मैं पटना वुमेन्स कॉलेज में चलने वाले शाम के निर्धन बच्चों की क्लास में पढ़ाती हूं। यह मुझे खुशी देता है।

मिला परिवार का साथ

देवोप्रिया बताती है कि मुझे पर्यावरण के प्रति किमी करने की ताकत देने में परिवार के लोगों का बड़ा योगदान है। मेरी मां एक शिक्षिका हैं और पिता इंजीनियर दोनों ने मेरे फैसले का सम्मान किया है। मेरे नाना जी जो एक रिटायर्ड आईएएस अधिकारी हैं वे भी मेरी हौसला आफजाई करते रहते हैं और प्रकृति संरक्षण हेतु मुझे प्रेरित करते हैं।

पेट लवर भी है देवोप्रिया दत्ता 

दोवोप्रिया को पालतू जानवरों से भी काफी लगाव है ‌ उन्होंने अपने घर में कुत्ते और बिल्ली को पाल रहा है। फुर्सत का लम्हा इनके साथ बितता है। वे कहती हैं कि बेजुबान हमें कभी हर्ट नहीं करते। वे काफी इमोशनल होते हैं। ये मेरे अच्छे दोस्त हैं। हमें बेजुबानों की भाषा समझने की जरूरत है।

माटी की सौंधी महक में है जीवन

देवो प्रिया कहती हैं कि हमने एक तरूमित्र कल्ब भी बनाया हुआ है। हम रिसाइक्लिंग पर काफी ध्यान देते हैं। हमारे आश्रम में ये सब कुछ आपको देखने को मिलेगा। चाहे वो मिट्टी की लेप वाली दीवार हो या फिर कुएं में बना क्लास रूम । हमें आज वैकल्पिक ईंधन और उर्जा स्रोत पर जोर देने की जरूरत है जो कार्बन फुटप्रिंट को कम कर सके। हम तरूमित्र में बिजली का प्रयोग काफी कम करते हैं यहां सोलर पावर का प्रयोग होता है। कुछ मिलाकर एक अच्छी जीवनशैली ही हमें बेहतर बना सकती है और इसका रास्ता कंक्रीट की दीवारों से नहीं पेड़- पौधों और मिट्टी की सौंधी महक के बीच से निकलता है।।देवोप्रिया समाज विज्ञान की छात्रा रही है। वो लोगों से अपील करते हुए कहती हैं कि

“हम सब को अच्छा सोचने और करने की जरूरत है यह मत सोचिए कि आप चुपचाप बुरा करेंगे तो कोई देखेगा नहीं। हम सब के उपर ईश्वर ने अपना सीसीटीवी कैमरा लगाया हुआ है। वहां हमारे सभी कर्मों की रिकार्ड रखा है फिर हम अच्छे काम क्यूं न करें, एक अच्छा इंसान क्यूं न बने। चलिए हम मिलकर फिर से धरती को खुशियों से हरी – भरी धरती बनाते हैं।”

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