120 रुपए की बुलेट और खरीदने को पैसे नहीं.. संघर्षों से भरी है ओलंपिक मेडलिस्ट स्वप्निल की कहानी

किसी भी सफलता के बाद आम तौर पर हम सिर्फ चकाचौंध को ही देखते हैं, जबकि उसका दूसरा पहलू सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण होता है. किसी प्रतियोगिता का विजेता बनना हो या उसके हिस्सेदारों का पदक जीतना. यह सफर आसान नहीं होता. कितने पापड़ बेलने पड़ते हैं. न जाने कितनी चुनौतियों से होकर गुजरना पड़ता है. ओलंपिक में कांस्य पदक जीतने वाले स्वप्निल कुसाले की कहानी भी कुछ ऐसी ही है.

अब तक भारत को तीन मेडल

पेरिस ओलंपिक में स्वप्निल कुसाले ने पुरूषों की 50 मीटर राइफल थ्री पोजिशंस में कांस्य पदक जीता. क्वालिफिकेशन में सातवें नंबर पर रहे स्वप्निल ने 451.4 स्कोर करके तीसरा स्थान हासिल किया. इसके साथ ही इस ओलंपिक में भारत के खाते में अब तक तीन मेडल आ चुका है. खबर समाप्त. अब सीधे स्वप्निल के संघर्ष के पन्नों को पलटते हैं.

बुलेट खरीदने को कम पड़ जाते थे पैसे

शूटिंग बेहद खर्चीला गेम होता है. राइफल और अन्य उपकरणों पर काफी पैसे खर्च करने पड़ते हैं. अभ्यास में दागे जाने वाली हर गोली का भी खर्च होता है. शुरुआती दिनों में स्वप्निकल के परिवार की हालत ऐसी थी कि प्रैक्टिस के लिए गोलियां खरीदने के लिए पैसे कम पड़ जाते थे. तब बुलेट की कीमत 120 रुपए हुआ करती थी. बेटे के अभ्यास में आर्थिक समस्या बाधा न बने, इसके लिए उनके पिता कर्ज लेकर भी बुलेट खरीदवाते थे, जिससे कि स्वप्निल प्रैक्टिस कर सके. और अपने सपने को पूरा भी.

माता-पिता ने नहीं किया था फोन

अपना पहला ओलंपिक खेल रहे स्वप्निल कुसाले के माता-पिता ने कहा कि उन्हें यकीन था कि उनका बेटा तिरंगे और देश के लिए पदक जीतेगा. स्वप्निल के शिक्षक पिता ने कोल्हापूर में पत्रकारों से कहा, ‘हमने उसे उसके खेल पर फोकस करने दिया और कल फोन भी नहीं किया. पिछले दस बारह साल से वह घर से बाहर ही है और अपनी निशानेबाजी पर फोकस कर रहा है, उसके पदक जीतने के बाद से हमें लगातार फोन आ रहे हैं. स्वप्निल की मां ने कहा, ‘वह सांगली में स्कूल में था जब निशानेबाजी में उसकी रूचि जगी. बाद में वह ट्रेनिंग के लिए नासिक चला गया.

यह मेरी वर्षों की मेहनत है- कुसाले

पदक जीतने पर स्वप्निल ने कहा, “उस रात मैंने कुछ नहीं खाया था. पेट में थोड़ी परेशानी थी. मैंने ब्लैक टी पी थी. हर मैच से पहले मैं ईश्वर से प्रार्थना करता था. उस दिन दिल बहुत तेजी से धड़क रहा था. मैंने सांस पर नियंत्रण रखा और कुछ अलग करने की कोशिश नहीं की. इस स्तर पर सभी खिलाड़ी एक जैसे होते हैं. मैंने स्कोरबोर्ड देखा ही नहीं. यह मेरी बरसों की मेहनत थी. मैं बस यही चाह रहा था कि भारतीय फैंस मेरी हौसला अफजाई करते रहें.”

स्वप्निल को रेलवे ने दिया तोहफा

कांस्य पदक जीतने वाले स्वप्निल रेलवे में बतौर टीटी नौकरी करते हैं. ओलंपिक में पदक जीतते ही रेलवे ने उन्हें तोहफा दिया है. स्वप्निल को टीटी से ओएसडी स्पोर्ट्स के पद पर प्रमोट कर दिया गया है.

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विवेक चंद्र
विवेक चंद्रhttps://thebigpost.com
उम्मीदों के तानों पर जीवन रस के साज बजे आंखों भींगी हो, नम हो पर मन में पूरा आकाश बसे..

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