कहानी जन-मन में कानूनी जागरूकता भरने वाले पूर्व न्यायाधीश बटेश्वर नाथ पाण्डेय की

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यह कहानी एक ऐसे शख्स की है जिनका बचपन मुफलिसी में बीता । किसान पिता के कथन और संघर्ष को मंत्र बना उन्होंने न सिर्फ खुद को स्थापित किया बल्कि न्याय का सूर्य बन अंधेरे समय और समाज में सत्यमेव जयते का रंग और राग भरा। सबसे कम समय में न्याय दिलवाने की बात हो या फिर सबसे तेजी से मुकदमे का निपटारा करने की। गांव- जवार जाकर आम लोगों को कानूनी बारिकियों से अवगत कराने से लेकर स्कूली बच्चों को आसान भाषा में कानूनी अधिकारों का फलसफा बताने तक , बिना रुके बिना थके जोश- जुनून और नई उम्मीद से लैस। मकसद यह की सच की कसौटी बुलंद होती रहे कानून की इबारत , बुलंद होता रहे हमारा लोकतंत्र और महफूज हो निर्भयता के साथ मस्तक ऊंचा कर मुस्कुराती रहें वसुंधरा। आज कहानी मुश्किल हालातों से दो दो हाथ कर कानून की अनवरत रक्षा का प्रण लेने वाले पूर्व न्यायाधीश बटेश्वर नाथ पाण्डेय की…

संघर्ष को बनाया सफलता का साथी

पूर्व न्यायाधीश बटेश्वर  नाथ पाण्डेय का शुरुआती जीवन संघर्षों के कांटेदार रास्ते से गुजरते हुए बीता। जन्म उत्तर प्रदेश के बलिया ज़िला के छोटे से गांव गंगा पाण्डेय का टोला में 1 अप्रैल 1963 को हुआ।
पिता स्वर्गीय बलिराम पाण्डेय सामान्य खेती- किसानी से जुड़े थे। मां स्वर्गीय सहोदरी देवी एक गृहिणी थीं। मां की रुचि धर्म-कर्म में भी काफी ज्यादा थी। बचपन से ही मां ने इन्हें नैतिकता के रास्ते पर चलने की राह दिखाई। पिता की आमदनी अत्यंत सीमित थी पर मन का हौसला असीमित था। वह अपने बच्चों की हौसला-अफजाई करते और बड़े सपने देखने और उसे साकार करने की बात कहते।


गांव के स्कूल से पढ़ाई

पूर्व न्यायाधीश बटेश्वर नाथ पाण्डेय बताते हैं की परिवार में हम दो भाई और तीन बहन थें। मैं भाई में सबसे बड़ा हूं। तब हमारे परिवार की आय बहुत ही कम थी। पिताजी किसी तरह से माह का खर्च चला पाते। आर्थिक आमदनी का जरिया बस खेती ही थी ।

वहां भी मेहनत के बाद उपज की कोई गारंटी नहीं। कभी मौसम की मार से सारी उपज खत्म हो जाती तो कभी जानवर और टिड्डों की भेंट चढ़ जाती।

पढ़ाई के लिए मेरा नामांकन गांव के ही प्राथमिक विद्यालय में कराया गया। तब उस स्कूल में बच्चों के बैठने के लिए बेंच की व्यवस्था नहीं थी। हम घर से बोरा लेकर जाते और उसे बिछाकर पढ़ाई करते, फिर वापस बोरा लेकर घर आते। प्राइमरी पास करने के बाद मेरा नामांकन बगल के ग्राम मध्य विद्यालय दया छपरा में कराया गया। इसके बाद हाईस्कूल की पढ़ाई बैरिया के  राष्ट्रीय विद्यालय से हुई।

उस वक्त स्कूलों में भले ही संसाधनों का अभाव था पर शिक्षक छात्रों को पूरे अधिकार के साथ पढ़ाते। पाठ याद न करने पर छड़ी से पीटाई भी लगती। अभिभावक भी शिक्षक को बच्चा सौंपकर निश्चित हो जाते।


हमें कोई ट्यूशन भी न मिलती। गांव में ट्यूशन का रिवाज उन दिनों तक नहीं आया था। स्कूल से लौटने के बाद हम ढिबरी की रौशनी में रात को पढ़ाई करते। काफ़ी दिनों बाद एक लालटेन ख़रीदा गया।

हम हर शाम अपनी पढ़ाई चमकाने की कोशिश से पहले लालटेन के सीसे को चमकदार बनाने की जुगत लगाते। मनोरंजन हेतु हम बच्चों के बीच उन दिनों गांव के खेल ही मशहूर थे ‌ । कबड्डी तब बच्चों के समूह का लोकप्रिय खेल था। इसके साथ ही चोर – सिपाही, गुल्ली डंडा जैसे खेल गांव के बच्चों द्वारा खेले जाते।

पिताजी मुझे हमेशा पढ़ने के लिए प्रेरित करते। वो बताते कि पढ़ाई से ही भविष्य बदला जा सकता है । पिताजी की प्रेरणा से में पढ़ाई में मन रमाने लगा था। सारे पाठ मन लगाकर पढ़ता – लिखता और याद करता। भोर में पिताजी पढ़ने के लिए जगाते। आंखें धोकर हम भोर में लालटेन जला पढ़ने बैठ जाते। पिताजी बहुत पढ़ें नहीं थे। बस अपना नाम लिख पाते थे पर शिक्षा को लेकर उनके अंदर खास लगाव था।


और किया इलाहाबाद का रूख

मैट्रिक पास करने के बाद आगे की पढ़ाई के लिए मैंने इलाहाबाद का रुख किया। यहां मेरा नामांकन काली प्रसाद इंटरमीडिएट कॉलेज  में हुआ‌ । इंटरमीडिएट के बाद मैंने इलाहाबाद ( प्रयागराज )विश्वविद्यालय से बीए किया।



याद रही पिता की वो बात

पूर्व  न्यायाधीश बटेश्वर नाथ पाण्डेय बताते है कि पिताजी हमारा हौसला बढ़ाने के लिए यह कहा करते थे कि जज- कलेक्टर आदमी ही बनता है। यह बात मेरे जेहन में हमेशा चला करती। बीए पास करने के बाद मैंने इलाहाबाद विश्वविद्यालय में ही LLB में नामांकन ले लिया। इसी बीच काल ने फिर से मुझे एक बड़े ही दुखद मोड़ पर ला खड़ा किया। पिताजी का निधन हो गया। यह मेरे लिए एक बड़ी त्रासदी थी। इन सब के बाद भी मैंने टूटती हिम्मत को एक जूट कर पढ़ाई जारी रखी।


जीवन साथी का आगमन

पूर्व न्यायाधीश बटेश्वर नाथ पाण्डेय आगे कहते हैं कि इस दौरान मेरी शादी हो गई। जीवनसाथी के रूप में नीता पाण्डेय का साथ मिला। वो उस जमाने में बीएससी आनर्स तक की पढ़ाई कर चुकी थी। विवाह के बाद पत्नी ने मुझे हिम्मत दी, भरोसा दिलाया की आप अवश्य सफल होंगे। तब पारिवारिक ख़र्च का बोझ भी मेरे उपर बढ़ चुका था। पढ़ाई का खर्च अलग।

पढ़ाई जारी रखने के लिए शुरू किया पढ़ाना

बटेश्वर नाथ पाण्डेय पुराने दिनों को याद कर कहते हैं  पिताजी के निधन के बाद आर्थिक स्थिति और भी डगमगाने लगी। पढ़ाई और इलाहाबाद में रहने का मामूली खर्च भी निकालना मुश्किल हो गया। इसके बाद मैंने वहीं बच्चों को पढ़ाना शुरू किया। मैंने इस कोचिंग का नाम विधिक अधय्यन संस्थान रखा। कोचिंग अच्छा चलने लगा। इस कमाई से मैंने पढ़ाई जारी रखी। बच्चों को कोचिंग में पढ़ाता भी रहा और अपनी पढ़ाई भी करता रहा। वे आगे बताते हैं कि मेरे पढ़ाए बच्चों में कई आई एस और जिला जज है।

दूरदर्शन के एक कार्यक्रम के दौरान

पिताजी के सपनों को पूरा करने का संकल्प

इलाहाबाद में संघर्ष चरम पर था। शादी भी हो चुकी थी । कभी कभी लगता कि कोई छोटी – मोटी नौकरी कर लूं जिसमें गुजारा चलता रहे। फिर पिताजी की बात जेहन में आती की जज, कलेक्टर आदमी ही बनता है और फिर मैं मन के संकल्प को दुहरा कर लग्न से पढ़ाई में जुट जाता। मैं भोर में चार बजे जग जाता और पांच से छह घंटे तक पढ़ाई करता। मैंने कोई कोचिंग नहीं ली, बस सेल्फ स्टडी करता।

सिविल कोर्ट समस्तीपुर में झंडोत्तोलन के उपरांत

और सपनों को मिली मंजिल

बटेश्वर नाथ पाण्डेय आगे बताते हैं कि
बिहार हायर ज्यूडिशियरी के इम्तिहान में छठे स्थान पर रहा। मेरे सपनों को अब रास्ता मिल चुका था। बाबूजी का संकल्प भी मैंने पूरा कर लिया। घर में सब बहुत खुश थे। मैं अपने क्षेत्र का पहला युवक था जिसका चयन हायर ज्यूडिशियरी  सेवा के लिए हुआ था। मेरी पहली पोस्टिंग मधुबनी एडीजे के रूप में 12 सितंबर 2003 को हुई। फिर मुझे मधुबनी में ही जिला जज का प्रभार मिला।

लीगल अवेयरनेस पर जोर

मैंने मधुबनी में ही लीगल अवेयरनेस पर काफी जोर दिया। मैंने देखा कि ज्यादातर लोगों को कानून की जानकारी बहुत कम है ऐसे में वे परेशान होते रहते हैं। मैंने आम आदमी में कानूनी जागरूकता फैलाना शुरू किया। पब्लिक से जुड़ाव रखा। हमने मधुबनी जिले के सभी ब्लाक में लीगल अवेयरनेस कैंप की शुरुआत की । हर कैम्प में मैं खुद उपस्थित होता था।

नाव से जाता था कोर्ट

पूर्व न्यायाधीश बटेश्वर नाथ पाण्डेय बताते हैं कि जब मैं समस्तीपुर के रोसड़ा में एडीजे था तो उस वक्त वहां विकराल बाढ़ आई थी। कई मार्गं से सड़क संपर्क भंग हो गया था। कोर्ट के काम में बांधा न हो इस कारण मैं उस दौरान नाव से कोर्ट जाता था।रोसरा में एडीजे के रूप में पदस्थापना के दौरान ज़िला एवं सत्र न्यायाधीश के रूप में पदोनती मिली तथा प्रधान न्यायाधीश (परिवार न्यायलय के पद पर मुंगेर में योगदान दिया।

सात दिनों में फैसला सुनाने का रिकॉर्ड ,

बटेश्वर नाथ पाण्डेय आगे कहते हैं कि मैं मुकदमों को काफी तेजी से निपटने की कोशिश करता था। मैं मानता हूं कि आपके कार्यों पर जनता का विश्वास काफी जरूरी है। रोसड़ा में एडीजे न्यायाधीश रहने के बाद मुंगेर के पदोन्नति प्रधान न्यायाधीश के रूप में पदोन्नति के बाद यहां जिला एवं सत्र न्यायाधीश रहा।

इस दौरान में यह ध्यान रखता था कि परिवार न टूटे। इसमें मैं सफल भी रहा। वे आगे बताते हैं कि कटिहार में ढाई सालों तक डिस्ट्रिक्ट जज रहने के दौरान स्कूली बच्चों में लीगल अवेयरनेस हेतु काफी काम किया।इस दौरान श्री पाण्डेय ने महज सातवें दिनों में बलात्कार और कत्ल के एक मामले की सुनवाई पूरी कर ली और फैसला भी सुना दिया.
24 जनवरी को हुए इस अपराध की सुनवाई अदालत द्वारा 28 जनवरी को शुरू की गई थी।

यह वह दौर था जब देश में   ‘वी वांट जस्टिस’    के नारे बुलंद हो रहे थे।

मैंने इस मामले में 7 दिनों में सुनवाई कर फैसला सुना दिया। उस वक्त इतने कम समय में फैसला सुनना एक रिकॉर्ड था। इससे पहले इतने कम समय में कोई फैसला नहीं आया था। देश और दुनिया भर की मीडिया में इसकी चर्चा हुई।

बिहार विधानसभा में भी इस का जिक्र किया गया। बार एसोसिएशन सुप्रीम कोर्ट ने इस बात की भूरी -भूरी सराहना की। कटिहार में पहला न्याय सदन की शुरुआत भी बटेश्वर नाथ पाण्डेय के समय में ही हुई।

बिहार विधानसभा से स्टडी टूर

पूर्व न्यायाधीश बटेश्वर नाथ पाण्डेय बताते हैं कि बिहार विधानसभा में सचिव के नाते विधानसभा के तत्कालीन अध्यक्ष  विजय चौधरी की अध्यक्षता में स्टडी टूर पर मॉरीशस की यात्रा की। यह छह दिनों का टूर था।

CPA कांन्फ्रेंस में सचिव के नाते दौरान यूगांडा में हुए कांन्फ्रेंस में हिस्सा लिया। जीरो एक्वेयर पर  वृक्षारोपण  किया। नील नदी के किनारे महात्मा गांधी के स्मारक पर माल्यार्पण किया। इस मौके पर बिहार विधानसभा के  तात्कालिक अध्यक्ष विजय चौधरी मौजूद थे। इसका नेतृत्व  तत्कालीन लोक सभा अध्यक्ष  ओम बिड़ला कर रहे थे।

परिवार के सदस्यों से मिलती है ऊर्जा

पूर्व न्यायाधीश बटेश्वर नाथ पाण्डेय बताते हैं कि परिवार के सदस्यों से बेहतर करने की उर्जा मिलती रहती है। परिवार में बड़े पुत्र पीयूष पांडेय पटना हाईकोर्ट में अधिवक्ता हैं। बेटी कुमारी प्रिया भी वकालत से जुड़ी हुई है। छोटे बेटे प्रियांशु कुमार पांडे फिलहाल कानून की पढ़ाई कर रहे हैं।

जीवन के आयाम में पत्नी का महत्वपूर्ण सहयोग

बटेश्वर नाथ पाण्डेय-बताते हैं कि जीवन के हर मोड़ पर , हर दुःख सुख में पत्नी नीता पाण्डेय ने हमेशा साथ दिया। पढ़ाई के दौरान ही हमारी शादी हो गई थी आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी उन दिनों पर उन्होंने कभी मेरे उपर दवाब नहीं बनाया। हमेशा हौसला आफजाई की‌ । आज परिवार में उनकी कमी हम सबको खलती है।

गांव से अब भी मजबूत नाता

बटेश्वर नाथ पाण्डेय- का नाता गांव से अब भी मजबूत है वे समय समय पर गांव जाते रहते हैं। वे कहते हैं कि

गांव की माटी और देहरी की सुगंध मनुष्यता को सहेजने का उपक्रम जानती है। गांव की संस्कृति आपको मजबूत बनाती है ।

वे आगे कहते हैं कि आज भी गांव में उनका संयुक्त परिवार कायम है।

छात्रों को मुफ्त कानूनी पढ़ाई कराने की चाहत

पूर्व न्यायाधीश बटेश्वर नाथ पाण्डेय कहते हैं कि उनका सपना आर्थिक रूप से कमजोर छात्रों को मुफ्त में कानून की पढ़ाई करवाने का है। वे भविष्य में ऐसा संस्थान स्थापित करने की योजना पर काम कर रहे हैं जहां पैसों के आभाव में किसी की पढ़ाई बाधित न हो जाए।

फिलवक्त  बटेश्वर  नाथ पाण्डेय संपदा अपीलीय न्यायाधिकरण, पटना में न्यायिक सदस्य के पद पर कार्यरत हैं।

आने वाली पीढ़ी को संदेश देते हुए वे कहते हैं कि कभी भी हिम्मत न हारें, समस्याएं सबके जीवन में आती हैं। इनसे घबराने की नहीं समाधान निकालने की जरूरत है। वे आगे कहते हैं कि हमारे युवाओं में कानून की जानकारी भी बहुत जरूरी है। कानूनी जागरूकता से ही हम असत्य के खिलाफ लड़ाई लड़ सकते हैं। तब हम मजबूत होंगे, हमारा देश मजबूत होगा और बुलंद हो मुस्कुराती हुई फिजा गुनगुनाएगी सत्यमेव जयते का जयघोष।

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