ऐसा विद्यालय जहां फेल होना जरूरी है… देश की तरह बनती है सरकार, बच्चे ही चलाते हैं स्कूल

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    यह स्कूल कुछ खास है. दुनिया से अलग जंगल में मंगल सा है. यहां एडमिशन लेने के लिए बच्चों को फेल होना अनिवार्य है. अगर कोई पास कर जाता है तो संभव है कि उसे वेटिंग लिस्ट में डाल दिया जाए. एक देश की तर्ज पर बच्चे ही स्कूल को रन करते हैं. सिस्टम ऐसा ही रोजमर्रा की जिंदगी में ही विज्ञान, गणित, भूगोल, अर्थशास्त्र और दर्शन सीख जाते हैं.

    हिमालय में बसा है स्कूल

    तापमान माइनस 20-25 डिग्री तक. जहां दूर-दूर तक बर्फ से ढका पहाड़ ही पहाड़ है. बिजली का कनेक्शन नहीं. हम बात कर रहे हैं हिमालय में बसा शिक्षण संस्थान SECMOL यानी स्टूडेंट्स एजुकेशनल एंड कल्चरल मूवमेंट ऑफ लद्दाख की.

    इनोवेटर सोनम वांगचुक का दूरदर्शी विजन

    लद्दाख का सुरम्य क्षेत्र अपनी शांत सुंदरता और ऊबड़-खाबड़ इलाके के लिए जाना जाता है, य़ह एक इंजीनियर, कार्यकर्ता और इनोवेटर सोनम वांगचुक के नेतृत्व वाली शैक्षिक क्रांति का भी घर है. शैक्षिक प्रणाली की खामियों को पहचानते हुए उन्होंने एक ऐसा मॉडल बनाने का निश्चय किया, जो क्षेत्र की विशिष्ट जरूरतों को पूरा करे. औऱ इस विजन का परिणाम ही यह संस्थान है.

    यहां बिजली का कोई कनेक्शन नहीं है. स्कूल कैंपस में जितनी भी ऊर्जा की जरूरतें हैं, सौर ऊर्जा से पूरी होती है. भवन पूरी तरह मिट्टी से बना है. छात्रों के द्वारा विकसित की हुई तकनीक से हिमालय में भी स्कूल के भवन काफी गर्म रहते हैं.

    एडमिशन के लिए फेल होना जरूरी

    जहां दुनियाभर के स्कूलों में डिस्टिंक्शन और परसेंटेज के आधार पर एडमिशन होते हैं, लेकिन इस स्कूल का क्राइटेरिया कुछ अलग है. अगर इस स्कूल में आपको अपने बच्चों को एडमिशन दिलाना है तो उन्हें एंट्रेंस टेस्ट में फेल होना पड़ेगा. एंट्रेस में पास होने पर संभव है कि बच्चे को वेटिंग लिस्ट में भी डाल दिया जाए. एकेडमिक फेलियर्स कोई गुनाह और पिछड़ापन का प्रतीक नहीं है, इस सोच के चलते यह योग्यता रखी गई है.

    इनोवेटर सोनम वांगचुक कहते हैं, “हमारी सोच है कि बच्चे अगर हमारे तरीके से नहीं सीखते तो उन्हें उस तरीके से सिखाया जाए जैसे वे सीखना चाहते हैं.”

    इस स्कूल को बच्चे एक छोटे से देश के तौर पर चलाते हैं. मिसाल के तौर पर यहां हर दो महीने पर एक सरकार बनाई जाती है. एक नेता चुना जाता है. अलग अलग विभाग बनाकर बच्चों के बीच बांट दिया जाता है. अगले दो महीनों के लिए क्रियाकलापों का लक्ष्य रखते हैं और उसपर कार्यान्वन करते हैं. फिर उसकी रिपोर्टिंग करते हैं. इस तरह से बच्चे लाइफ स्कील को जीकर सीखते हैं. जिसे किताबों से नहीं सीखा जा सकता है.

    चलते फिरते सीख लेते हैं जिंदगी

    विज्ञान की बातें हो तो उसे जीवन में प्रयोग करके सीखा जाता है. जैसे लंबे समय तक खाद्य सामग्री को सुरक्षित रखने की तरकीबें. इसे सीखकर वे विज्ञान सीखते हैं. फिर जब उसे बाजार में बेचते हैं तो इस तरह से वे अर्थशास्त्र सीखते हैं. और उसके लाभ से जब बच्चे भारत के दर्शन के लिए बच्चे बाहर निकलते हैं तो वे ज्योग्राफी सीखते हैं.

    स्कूल कैंपस में खुद का अखबार, रेडियो

    स्कूल में अपनी न्यूजपेपर है. कैंपस रेडियो है. जिसपर जरूरी सूचनाओं का प्रसारण भी बच्चे ही करते हैं. अखबार का संपादन भी बच्चे खुद करते हैं. नए नए आविष्कार जीवन का हिस्सा है, जिसमें बच्चे भाग लेते हैं. पृथ्वी, सूर्य, हिम मिट्टी विषय के इर्द गिर्द अनुसंधान होते हैं.

    सर्दी में भी गर्म रहता है स्कूल भवन

    जैसे मिट्टी का घर जिसे विज्ञान का प्रयोग करके सूर्य की ताप से गरमाया जाता है. और फिर लद्दाख के माइनस 15-20 डिग्री सेल्सियस तापमान में भी इस भवन का तापमान 15 से 20 डिग्री तापमान रहता है. कह लीजिए विद्यालय में मौजूद हर एक चीज प्रयोगशाला का एक हिस्सा है.

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