“मेरे हाथों से तराशे हुए पत्थर के सनम, मेरे सामने भगवान बने बैठे हैं”.. “मैंने पत्थर से जिनको बनाया सनम , वो खुदा हो गए देखते देखते”. पत्थरों न जाने कितनी गजलें, कितने शेर चाहे जिस भी भाव में लिखे गए हैं. सीधे-सीधे इन शब्दों का जो अर्थ निकलकर आता है, उसे चरितार्थ कर रहे हैं बिहार की चंद पहाड़ियों की गोद में बसे एक छोटे से गांव के लोग. इनके हाथ जब पत्थर पर चलते हैं, तो मूर्तियां बोल पड़ती हैं.
पहाड़ियों की गोद में बसा है गांव
ऐतिहासिक धरोहरों, यहां की विशिष्टता के चलते बिहार विहार की धरती तो है ही. यहां की हुनर और कलाकारी की भी दाद देते आप नहीं थकेंगे. द बिग पोस्ट आज आपको वहां ले चलेगा, जहां के लोगों के हाथ जब पत्थरों पर चलते हैं, तो उन पत्थरों में जान आ जाती है. वह गांव है नालंदा और गया जिले की सीमा पर छोटी-छोटी पहाड़ियों की गोद में बसा ‘पत्थरकट्टी’.
शिल्पकला से जुड़ा है लगभग पूरा गांव
पत्थरकट्टी गांव की दूरी गया शहर से लगभग 30 किलोमीटर है. यह पंचायत है जिसकी आबादी लगभग 10 हजार की है. गांव की 75% फीसदी आबादी मूर्तियां बनाने का काम करती है. शायद पत्थरों के काटने और तराशने की कला के कारण ही इस गांव का नाम पत्थरकट्टी पड़ा होगा. पत्थरों काटकर नक्काशी करने और उसे मनचाहा मूर्तियों के आकार में ढालने के लिए गांव के लोगों को महारत हासिल है. गांव के लोग पत्थर को तराश कर बेहद खूबसूरत और बेशकमीती मूर्ति बनाते हैं, जिसकी डिमांड देशभर में है.
300 साल पुराना गांव होने की कहानी
गांव के बुज़ुर्गों की मानें तो करीब 300 साल पहले इस गांव को बसाया गया था. इंदौर (मध्यप्रदेश) की रानी अहिल्याबाई ने गांव को बसाया था. उन्हीं के निमंत्रण पर सैकड़ों ब्राह्मण राजस्थान से यहां पहुंचे थे. परंपरागत तौर पर मूर्ति बनाने का काम गौड़ ब्राह्मणों का था. कहते हैं कि यहां के पत्थरों में एक अलग ही खासियत थी, जिसकी वजह से ही मूर्तिकारों को यहां बसाया गया था.
विष्णुपद मंदिर का निर्माण करने का दावा
ग्रामीण कहते हैं कि गया का मशहूर विष्णुपद मंदिर का निर्माण भी इन्हीं मूर्तिकारों ने कभी किया था. गौरतलब है कि पत्थरकट्टी गांव सख्त काले पत्थर को तराश कर अनोखी नक्काशी करने के लिए मशहूर है. यहां के कारीगरों को सख्त से सख्त पत्थर (संगमरमर, ग्रेनाइट और सफ़ेद बलुआ पत्थर) को तराश कर मनचाहा आकार देने में महारत हासिल है. यहां के पत्थर की तराशी मूर्तियों की देश और विदेशों में भी खूब डिमांड है.
लाखों में बिकती हैं तराशी हुई मूर्तियां
पत्थरकट्टी पंचायत की ज्यादातर आबादी पत्थरों को तराशने और मूर्ति बनाने का काम करती है. इनमें महिलाएं और बच्चे भी हाथ बंटाते हैं. देवी-देवताओं, बड़ी शख्सियतों, महापुरुषों और हितजनों की मूर्तियों का यहां खूब डिमांड आता है. पत्थरों पर यहां के कलाकारों के हाथों की सफाई के कारण साधारण से लेकर उच्च किस्म की मूर्तियों की कीमत 10 लाख रुपए तक होती है.