कभी पानी और बिजली को तरसता था गांव, आज सरकार को करता है पावर सप्लाई

नीलगिरी की पहाड़ियों में बसा है ओड़नथूरई गांव. तमिलनाडू के कोयंबटूर से करीब 40 किलोमीटर दूर. आज ये गांव स्मार्ट गांव जैसा दिखता है. यहां पर शहर जैसी सारी सुविधाएं मौजूद हैं. गांव के लोगों में भी खूब खुशहाली है. लेकिन कुछ साल पहले तक ऐसा नहीं था. गांव की तस्वीर एकदम अलग थी. यहां बुनियादी सुविधाएं तक मौजूद नहीं थीं. बिजली नहीं थी. पीने का साफ पानी तक नहीं था. पूरे गांव में कच्चे घर थे. लोग घर छोड़कर शहर का रूख करने लगे थे.

बिजली क्या होती है.. जानते तक न थे

ओडनथुरई गांव की रहने वाली भुवनेश्वरी कहती हैं, “मैं यहां 20 साल से रह रही हूं. 20 साल पहले हमारे पास कोई बुनियादी सुविधा नहीं थी. हम एक झोपड़ी में रहा करते थे. यहां न बिजली की सुविधा थी और न ही पानी की. हमें पेयजल के 3 किलोमीटर दूर जाना पड़ता था. हमारे बच्चों को यह तक नहीं पता था कि बिजली कहते किसे हैं? अपना राशन के लिए भी हमें कई किलोमीटर जाना पड़ता था, जिसमें हमारा पूरा दिन निकल जाता था.”

गांव के अधिकांश घर एक जैसे

आज गांव की स्थिति  बिल्कुल पहले जैसी नहीं है. आज गांव में पक्के मकान हैं. घरों में सोलर पैनल लगे हैं. सोलर पैनल घरों को रौशन करने में काम आते हैं. गांव के अधिकांश घर एक जैसे हैं, जिससे गांव काफी आकर्षक लगता है. पानी के लिए अब गांव में बोरवेल लगे हैं, जिससे कि हर घर तक पानी पहुंच सके. अब आप सोच रहे होंगे कि मूलभूत सुविधाओं से वंचित गांव अचानक इतना परिवर्तित कैसे हो गया. तो यह सब हो सका गांव के पूर्व सरपंच आर षणमुगम की वजह से.

लोग शहर छोड़ लौटने लगे गांव

“1986 से 1991 तक मेरे पिताजी गांव के सरपंच थे. गांव में एक भी पक्का मकान नहीं था. गांव के जनजाति के लोग हमारे पास आए और पंचायत से पक्के घरों की मांग की. पंचायत से प्रस्ताव पास कर उनके लिए घर बनाने का निर्णय किया. मैं 1996 में मुखिया चुना गया. तब गांव के और लोगों ने भी पक्के घरों की मांग की. मैंने पंचायत के फंड से इंतजाम किया और दूसरे लोगों के लिए भी घर बनवाने का प्रस्ताव पास किया. गांव से सारी झोपड़ियों को हटाया गया और उनकी जगह बुनियादी सुविधाओं के साथ पक्के मकान बनाए गए. इससे गांव से पलायन कर गए लोग वापस आने लगे. 20 साल में हमारी जनसंख्या 1600 से 10 हजार हो गई है.पूर्व सरपंच आर षणमुगम

लोग अपने गांव की देखभाल खुद अच्छे से करते हैं और खुश हैं. गांव के ज्यादातर लोग खेतों में काम करते हैं. गांव में पीने के पानी और बिजली की आपूर्ति को पूरी करने पर भी षणमुगम का योगदान अविस्मरणीय है.

गांव करता है सरकार को बिजली सप्लाई

“बिजली के लिए हमने ऊर्जा के रिन्यूएबल विकल्पों को तलाशा. हमें पवनचक्की का विकल्प सबसे सही लगा. इसकी कीमत करीब 1.55 करोड़ रूपए थी.  हमने पंचायत में टैक्स और दूसरे तरीके से 40 लाख रुपए इकट्ठा करवाए.   और बाकी का बैंक लोन करवाया. साल 2006 में हमने पवनचक्की लगवाई जिससे 7 लाख यूनिट बिजली पैदा होती है. अब हम 20 लाख रुपए की बिजली हर साल तमिलनाडु सरकार को बेचते हैं.”- आर षणमुगम

स्मार्ट विलेज मॉडल की खूब तारीफ

षणमुगम के प्रयासों कभी बिजली और मूलभूत सुविधाओं के अभाव में जीने वाला गांव आज सरकार को बिजली बेच रहा है. षणमुगम को भारत के तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम और प्रदेश के मुख्यमंत्रियों ने पुरस्कार दिए हैं. विश्व के कई बड़े संगठन इस गांव के विकास को आकर देखते हैं और उनसे प्रेरणा लेते हैं. षणमुगम आज भले ही गांव के मुखिया नहीं हैं लेकिन उनके द्वारा किए गए काम से दुनिया के बड़े-बड़े देश और संगठन भी प्रेरणा ले रहे हैं.

जानकारी स्रोतः डीडब्ल्यू हिंदी

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विवेक चंद्र
विवेक चंद्रhttps://thebigpost.com
उम्मीदों के तानों पर जीवन रस के साज बजे आंखों भींगी हो, नम हो पर मन में पूरा आकाश बसे..

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