कहानी उस गांव की.. जहां 32 साल बाद कोई दलित दूल्हा घोड़ी चढ़ा

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दूल्हों का घोड़ी पर चढ़कर बारात जाना आम रिवाज है. लेकिन अभी भी देश के कई गांवों में यह रिवाज समाज के अगड़े वर्गों तक सीमित है, क्योंकि वहां दलितों को अब भी घोड़ी पर चढ़ने की इजाजत नहीं है. वजह सिर्फ इतना ही वे दलित हैं.

दलित दूल्हों पर होते थे हमले

अनेकों घटनाएं हैं, जब दलित दूल्हे ने घोड़ी पर बैठकर बारात जाने की जहमत उठाई तो उनपर हमले हुए. हत्या तक कर दी गई. द बिग पोस्ट इसे समझाने के लिए आपको ले जा रहा है राजस्थान. जहां के हालात और आंकड़ों से इसे बखूबी समझा जा सकता है.

नाम मनोज बैरवा. उम्र 24 साल. शादी तय हो चुकी है. अब तक गांव में कोई भी घोड़ी से दूल्हा बनकर बारात नहीं गया है. मनोज ऐसा करने वाले पहले शख्स बनना चाहते हैं.

नीम का खेड़ा गांव में ऊंची जातियों का दबदबा रहा है. इन्होंने अतीत में दलित दूल्हों पर खतरनाक हमले किए हैं. पहले दूल्हे का परिवार काफी डरा हुआ था. उन्होंने कहा, कि अगर पुलिस कहती है तो हम नहीं करेंगे. लेकिन अगर पूरा गांव कहता है तभी हम ऐसा करने (घोड़ी से दूल्हा का बारात जाने) को तैयार हैं.जय यादव, एसपी, बुंदी जिला

ऐसे मामलों के सामने आने के बाद बूंदी जिले की पुलिस गांवों में बैठकें करवा रही हैं, जिससे कि समाज की पुरानी सोच बदली जा सके.

इसी डर से बिगड़ी थी बुआ की शादी

बैरवा के लिए यह मुद्दा काफी संवेदनशील है. क्योंकि करीब 30 साल पहले इनकी बुआ की शादी इसी वजह से बिगड़ गई थी. उनकी बुआ कन्या बाई कहती हैं कि जब उनकी शादी हो रही थी. और उनका होने वाला दूल्हा घोड़ी पर बैठकर आया था तो उनके साथ मारपीट की गई थी. और उनका सेहरा भी गिरा दिया था. वो शादी तो करके चले गए लेकिन मुझे नहीं ले गए.

मंदिर के सामने से गुजरने की मनाहट

गांव के अगड़ी जातियों का दबदबा इस कदर है कि वे गांव के मंदिर के सामने से भी दलितों के बारात गुजरने देने से मना करते हैं. करीब 32 साल बीत चुके हैं जब कोई दलित दूल्हा घोड़ी बैठा होगा. किसी की हिम्मत ही नहीं होती. लोग भूल चुके हैं, कि ऐसा वे भी कर सकते हैं.

महिलाओं और बुजुर्गों में हमेशा डर

मनोज बैरवा की घोड़ी चढ़ने की इच्छा हुई तो प्रशासन भी सामने आया. शादी का दिन भी आ गया. हलवाई मिठाइयां और पकवान बना रहे हैं. मनोज को उबटन लग रहा है. घर में चहल पहल है. वहीं महिलाओं और बुजुर्गों में एक डर है कि कहीं उन्हें फिर से पीड़ा न झेलना पड़े. प्रताड़ना का. नीच दिखाए जाने का. किसी तरह के तनाव हो जाने का.

डर भी दूर हो रहा.. अधिकार भी मिल रहा

मनोज घर की महिलाओं को समझाते हैं. डरना नहीं है. कोई दिक्कत नहीं है. वह कहते हैं, हमारा अधिकार है ये हम तो इसे लेंगे ही. आखिरकर बैरवा घोड़ी चढ़ते हैं और बिना किसी रुकावट के बारात निकलती है. घोड़ी पर चढ़कर वह न सिर्फ बारात गए, बल्कि गांव के उन इलाकों में भी घूमे जहां उन्होंने पहले कभी कदम भी नहीं रखा था. बारात जाते हुए बैरवा कहते हैं जो हमारी बुआ न कर सकी, उसे हमने कर दिखाया है.

अब गांव में माहौल ठीक है

गांव के लोग मानते हैं कि अब गांव में माहौल ठीक हो रहा है खासकर दलितों की शादियों को लेकर. अब चीजें बदल रही हैं. बहुत बदल गई हैं. अब इस तरह की कोई बाधा नहीं है. यह सब हो पाया है शासन द्वारा लागू किए गए सख्त कानून, पुलिस की मुस्तैदी और प्रशासन की जन जागरुकता के कारण. न जाने कितनी बैठकें हुईं. कितने समझौते हुए तब जाकर यह मुहिम अब रंग ला रहा है.

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