भारत का इकलौता शहर कोलकाता जहां आज भी ट्राम चलती है. बीते डेढ़ सौ साल से ये यहां के लोगों की हमसफर रही है. लेकिन अब इसके पहिये शायद थमने वाले हैं.
पश्चिम बंगाल सरकार ट्राम को बंद करना चाहती है. अगर सार्वजनिक परिवहन से ट्राम को हटाया जाता है तो ट्राम प्रेमियों के लिए यह शहर की पहचान को मिटाने जैसा है. कोलकाता का दुर्गा पूजा, रसगुल्ला, विक्टोरिया मेमोरियल, हावड़ा ब्रिज जैसे इस शहर की पहचान है, वैसे ही ट्राम भी यहां की विरासत है जो डेढ़ सौ साल पुराना है.
ट्राम का सफर.. एक नजर
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दुनिया के कई शहरों की तरह जब पहली बार कोलकाता में पहली बार ट्राम चली तो उसे इंजन नहीं, बल्कि घोड़े खींचते थे. साल था 1873 जब सियालदह से लेकर अरमेनियन घाट तक करीब चार किलोमीटर तक चलने वाली यह ट्राम सेवा कुछ ही महीनों में बंद कर दी गई. लेकिन इसके 7 साल बाद कोलकाता में फिर से ट्राम की शुरुआत हुई. साल 1882 में ट्राम को चलाने के लिए भाप वाले इंजन का इस्तेमाल हुआ जो काफी सफल रहा. इस तरह कुछ साल चलने के बाद बिजली से चलने वाले ट्राम की शुरुआत साल 1902 से हुई. फिर शहर का ट्राम नेटवर्क बढ़ता चला गया.
यूं थमते गए ट्राम के पहिए
कलकत्ता ट्राम यूजर्स एसोशिएशन (CTUA) बताते हैं कि जब ट्राम नेटवर्क पूरी तरह से काम कर रहा था तब कोलकाता और हावड़ा में इसके 40 से ज्यादा नेटवर्क थे. हावड़ा का अलग ट्राम वे था. अभी सिर्फ तीन रूट ही चल रहे हैं. 2015 तक कोलकाता में 25 रूटों पर ट्राम चल रही थी. बीते कुछ सालों में कोलकाता की सड़कों से ट्राम गायब होते चले गए. कुछ लोग इसे गुजरे जमाने की चीज मानने लगे तो कुछ इसकी धीमी गति को सड़कों पर जाम की वजह बताते हैं.
ट्राम को बंद करना चाहती है बंगाल सरकार
पिछले दिनों कोलकाता हाईकोर्ट में ट्राम से जुड़ी एक याचिका पर सुनवाई के दौरान पश्चिम बंगाल के परिवहन मंत्री स्नेहाषीश चक्रवर्ती ने ट्राम को बंद करने की योजना के बारे में बताया. हालांकि, इसकी अभी कोई तारीख तय नहीं की गई है. परिवहन मंत्री ने बताया कि ट्राम की धीमी गति पीक आवर्स में सड़कों पर ट्रैफिक जाम का कारण बनती है और मौजूदा वक्त में उसे इसी गति पर चलाए रखना कठिन है, क्योंकि यात्रियों को तेज चलने वाले पब्लिक ट्रांसपोर्ट की जरूरत है. पर्यटकों के लिए मैदान से लेकर एस्प्लानाडे तक जाने वाली ट्राम रूट खुला रहेगा. बाकी रूटों से ट्राम को हटाया जाएगा.
“कोई टाइम टेबल नहीं है. बहुत कम ट्राम चल रही है. आपको पता नहीं होता है कि अगली ट्राम कब आएगी. एक घंटा या दो घंटा बाद. दूसरी बात.. कि पहले ट्राम के लिए रिजर्व ट्रैक होते थे. अब कार मालिकों की सुविधा के लिए उन ट्रैक्स को डिरिजर्व कर दिया गया है. योजना यह है कि लोग ट्राम में नहीं चढ़ें. निश्चित तौर पर आप पूछ सकते हैं कि इससे किसको फायदा है? प्राइवेट टैक्सी, ट्रांसपोर्ट को”.– देबाशीष भट्टाचार्य, अध्यक्ष, CTUA
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रफ्तार में बाधा है ट्राम?
जानकार कहते हैं कि जिस रफ्तार से कोलकाता को चलना चाहिए, उस स्पीड के आधा के आधा से भी कम रफ्तार ट्राम की है. ऐसे में शहर को ट्राम के जरिये संभालना मुश्किल है. यानी कोलकाता समय के साथ आगे तो बढ़ा लेकिन इलेक्ट्रिफाई होने के बाद भी ट्राम आगे न बढ़ सकी.
दुनिया के दूसरे शहरों ने संभालकर रखा है ट्राम
दूसरा पहलू यह भी है कि ट्राम को दुनिया के कई देशों ने शान से संभालकर रखा है. उन देशों में ट्राम कोलकाता की तरह नजरअंदाज नहीं.. बल्कि वहां यह आधुनिक परिवहन व्यवस्था का हिस्सा है. आस्ट्रेलिया के मेलबर्न शहर में दुनिया का सबसे पुराना ट्राम नेटवर्क है. 1885 से चल रही मेलबर्न ट्राम आज 20 से ज्यादा रूटों पर चलती है. 500 से ज्यादा ट्राम का नेटवर्क करीब 250 किलोमीटर दूरी को आसान करती है.
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विदेशी ट्राम के नेटवर्क से सीखने की जरूरत
वहीं, रूस के शहर सैंट पीटर्सबर्ग में 40 रूटों पर ट्राम चल रही है. इनके जरिए 205 किलोमीटर तक का सफर तय किया जाता है. दुनिया के सबसे बड़े ट्राम नेटवर्क के मामले में तीसरा स्थान जर्मनी के बर्लिन शहर का है, जहां ट्राम के 22 रूट हैं और वे 193 किलोमीटर नेटवर्क का हिस्सा हैं.
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ट्राम अतीत नहीं.. भविष्य है
मॉर्डन होती दुनिया में जब विश्व के दूसरे देशों में ट्राम चल सकती है तो सवाल ये है कि भारत के शहर में कोलकाता में क्यों नहीं? जानकार और जिम्मेदार भी चाहते हैं कि कोलकाता में ट्राम चलती रहे लेकिन इसके स्वरूप को थोड़ा बदलना पड़ेगा. इसके चाहने वाले कहते हैं कि ट्राम को शहर का अतीत नहीं बल्कि भविष्य समझना चाहिए.