मजहब की बेड़ियों को तोड़कर हुनर की नजीर पेश कर रहे हैं चाचा इश्तियाक.. आइये जानते हैं इनकी कहानी

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काकोरी के रहने वाले इश्तियाक अली लखनऊ में मूर्तियां बनाते हैं

धर्म और मजहब की दीवारें कमजोर पड़ जाती है कला के सामने. भला कला किसी मजहब का कैसे हो सकता है? ज्ञान को धर्म की जंजीर में कैसे बांधा जा सकता है? प्रतिभा को पहचान की मोहताज क्यों होनी चाहिए? इन सब सवालों के जवाब हैं उत्तर प्रदेश के काकोरी के रहने वाले इश्तियाक अली. आइये जानते हैं इनकी रोचक कहानी..

“मंदिर मस्जिद गिरिजाघर ने बांट लिया भगवान को।
धरती बांटी, सागर बांटा, मत बांटो इंसान को।।”

काकोरी के रहने वाले इश्तियाक अली लखनऊ में मूर्तियां बनाते हैं

मजहब, धर्म पर न जाने ऐसे कितनी रचनाएं की गई हैं. बेड़ियों और बंदिशों से ऊपर उठकर, संदेश बस एक.. इंसानियत की. मानवता का.

मेरा नाम इश्तियाक अली है. मैंने बड़ी गरीबी देखी है. 13 साल की उम्र से लकड़ी का काम कर रहा हूं. मैंने एक से बढ़कर एक काम किए लेकिन नाम नहीं हुआ. मैं अब भी अपने काम में जुटा हूं.- इश्तियाक अली, काष्ठ कलाकार

फटेहाल कपड़े, चेहरे पर झुर्रियां. नंगे पैर. हाथ में छेनी हथौड़ी और लकड़ी के कुछ टुकड़े. घंटों की मेहनत और फिर कला का वो नमूना तैयार हो जाता है, जिसे देखकर दंग रह जाएंगे. नाम इश्तियाक अली. चाचा ठाठ से कहते हैं कि वे सुन्नी मुसलमान हैं लेकिन वे मूर्तियां हिंदू देवी-देवताओं के बनाते हैं.

शिव, गणेश और हनुमान के सहारे जिंदगी

इश्तियाक चाचा की कलाकारी का नमूना

इश्तियाक चाचा शिवजी, गणेश जी और हनुमान जी की मूर्तियां बनाकर अपनी रोजी रोटी कमाते हैं. बचपन से उन्होंने अब तक कई काम किए. जैसे मदाड़ी का खेल दिखाया. गाड़ी साफ किया. मजदूरी की. लेकिन फिर उन्होंने वही चुना जो दिल ने कहा. लकड़ी पर नक्काशी की. वे कहते हैं कि बचपन से ही उन्हें लकड़ी पर कलाकारी करने का बहुत शौक था.

हर मूर्ति एक संदेश देती है

धीरे धीरे उनकी बनाई मूर्तियां लोग पसंद करने लगे. इस तरह उनके अंदर के कलाकार का मनोबल बढ़ता गया. आज इश्तियाक अली की बनाई हर मूर्ति एक संदेश देती है. संदेश कर्मठता का, एकता का और कर्म के प्रति सच्चा निष्ठा का.

इश्तियाक चाचा ने ऐसे सैकड़ों काम किए हैं

‘हिंदू देवताओं की मूर्तियां बनाना आसान नहीं था’

दूसरे मजहब की मूर्तियां बनाने का काम इतना भी आसान नहीं है. इस काम में उन्हें सामाजिक तिरस्कार भी सहना पड़ रहा है. वे कहते हैं, हमें धार्मिक काम का बहुत शौक है. रात में भी हमें देवी-देवता नजर आते हैं. कुछ हमारे भाई लोग हमसे नाराज भी होते हैं. हमसे दुआ-सलाम भी नहीं करते. हमसे कोई बात नहीं करता. हमारा काम अब सिर्फ धर्म है.

इश्तियाक चाचा के हुनर को पहचान दें

इश्तियाक चाचा चाहते हैं कि उनकी कला को सम्मान मिले. इस कलाकारी के लिए उनका नाम हो. उनकी अपील है कि लखनऊ के प्रमुख चौक चौराहों से गुजरते हुए जब कभी उनसे मुलाकात हो तो मूर्तियां जरूर खरीदें. इनसे उन्हें काफी मदद मिलेगी साथ ही पहचान भी.

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