कहानी उस शिखंडी बैंड की.. जिसने पूरे महाराष्ट्र में तहलका मचा रखा है

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वे अब न सिर्फ आपके साथ जहाज उड़ाएंगे. वे अब न सिर्फ कंधे से कंधा मिलाकर पुलिस सेवा में शामिल होंगे. न सिर्फ डॉक्टर, इंजीनियर बनकर ऊंचाइयां हासिल करने की ललक होगी उनकी. वे हर कदम आपके साथ होंगे. आपके सुख में, दुख में. हर चीज में. वे हैं महाराष्ट्र की प्रताड़ित ट्रांसजेंडर जिन्हें समाज ने दुत्कारा लेकिन आज पूरे राज्य में उनका तहलका है. उनके बीट्स पर पूरा महाराष्ट्र झूमता है. यह कहानी है राज्य की पहली ट्रांसजेंडर बैंड पार्टी ‘शिखंडी’ की.

‘ट्रांसजेंडरों में हुनर की कमी नहीं’

मनस्वी गोयलकर नाम की ट्रांसजेंडर ने इस बैंड पार्टी को बनाया है. गोयलकर कहती हैं, ‘ट्रांसजेंडर समाज में भी बहुत सारे हुनर और कला है. उचित अवसर नहीं मिलने की वजह से यह समाज आज भी काफी पिछड़ा हुआ है. अस्तित्व की लड़ाई के रूप में हमने शिखंडी ढोल ताशा टीम की शुरुआत की.’

और ऐसे हुआ ‘शिखंडी’ का जन्म

शुरू में गोयलकर को इस सफर में काफी कठिनाइयां झेलनी पड़ी लेकिन आज यह बैंड लोगों के लिए प्रेरणा के स्रोत हैं. इस बैंड की स्थापना से पूर्व गोयलकर दूसरे मंडलियों से संपर्क किया था, लेकिन ट्रांसजेंडर होने की वजह से उन्हें निराशा ही मिली.  हालांकि, निराशाएं उन्हें मजबूत करती गईं. फिर उनके जीवन में गुरु कादंबरी शेख का सहयोग मिला और फिर ‘शिखंडी’ का जन्म.

आज ‘शिखंडी’ से जुड़े हैं 30 मेंबर

यह यात्रा आसान नहीं थी. इंस्ट्रूमेंट्स की सुरक्षा, अभ्यास के लिए स्थान और प्रशिक्षण प्राप्त करना महत्वपूर्ण चुनौतियाँ थीं. गोयलकर कहती हैं, “मेरे गुरु ने ट्रांसजेंडरों की एक स्वतंत्र टीम शुरू करने का फैसला किया. हमने काम करना शुरू किया,  लेकिन किसी को भी इंस्ट्रूमेंट्स बजाने का एक्सपीरियंस नहीं था. इसे मजबूत करने के लिए नादब्रह्म ढोल-ताशा टीम के अतुल बेहरे ने टीम में शामिल ट्रांसजेंडरों को ट्रेनिंग दी. आज शिखंडी से 30 मेंबर जुड़े हैं.

गणपति में प्रदर्शन से दीवाने हुए लोग

शिखंडी का संदेश साफ है कि ट्रांसजेंडर व्यक्ति दूसरों के साथ सक्षमता से खड़े हो सकते हैं. इस साल गणपति पर्व में शिखंडी ने जोरदार प्रदर्शन किया. जिसे देख-सुनकर लोग दीवाने तो हुए. जागे भी. प्रेरणा भी मिली.

शिखंडी कहानी है आशा की किरण की

शिखंडी की कहानी आशा की किरण के रूप में काम करती है. यह दिखाती है कि दृढ़ संकल्प और इच्छाशक्ति से प्रतिकूल परिस्थितियों पर विजय पाई जा सकती है. शिखंडी का मानना है कि जब वे मंच पर उतरेंगे तो वे न केवल मनोरंजन करेंगे, बल्कि सामाजिक मानदंड को भी चुनौती देंगे. जिससे समाज में उन्हें उसी तरह स्वीकार किया जाए, जैसे औरतों और मर्दों को किया जाता है.

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