जब देश के हर कोने में अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ आवाज बुलंद हो रही थी. सालों पहले बोए गए क्रांति के बीज की फसल काटने का वक्त नजदीक आ रहा था. आंगल सत्ता द्वारा पहनाई गई बेड़ियां खुलने वाली थी. देश का हर तबका अपने सिरे से आजादी की लड़ाई लड़ रहा था. तब गांव के 6 बहादुर ग्रामीणों को अंग्रेजी सरकार ने फांसी से लटका दिया था. ऐसे हालात में सन् 1942 में ही उस गांव ने अपने शौर्य और हिम्मत के बूते खुद को आजाद घोषित किया. माइलस्टोन में आज पढ़िए देश के पहले ‘आजाद गांव’ की कहानी…
साल 1942. जब महात्मा गांधी ने भारत छोड़ो आंदोलन का आह्वान किया था, तब कर्नाटक के शिवमोगा के एक छोटे से गांव ने खुद ही अंग्रेजों से स्वतंत्र होने का फैसला कर लिया था. इस गांव का नाम था ‘ईसुरु’ जो स्वतंत्र होने वाला देश का पहला गांव बना. आजादी के बाद गांव में स्वराज सरकार के नाम का बोर्ड भी लगाया गया और तिरंगा भी फहराया गया था.
6 बहादुरों की फांसी के बाद बौखलाए गांववाले
गांव में क्रांति की आग तो पहले से ही लगी थी. तेज होते स्वतंत्रता के आंदोलन के साथ गांववालों के जोश भी आसमान चढ़ रहे थे. शायद जितनी लड़ाई दिल्ली और कोलकाता में लड़ी जा रही थी, उससे ज्यादा इन गांव में भी. बौखलाहट में अंग्रेजी सरकार ने ईसुरू के 6 बहादुर ग्रामीणों को फांसी के फंदे पर चढ़ा दिया, जिसके बाद गांव उबल उठा. और फिर ये हुआ जो इस देश का इतिहास बन गया.
आजादी के बाद नियुक्तियां भी हुईं
इस गांव के 16 वर्षीय जयन्ना और मालपैया को तहसीलदार और उप-निरीक्षक के रूप में नियुक्त किया गया था. उस दौरान यहां के साहूकार नेता बसवेनप्पा ने सोच समझकर इन दोनों को नियुक्त करने का फैसला किया, क्योंकि वे नाबालिग थे इसलिए उन्हें जेल नहीं भेजा जा सका.
गांववालों ने मिलकर अंग्रेजी प्रशासन की पूरी तरह से उपेक्षा करते हुए गांव के लिए नियमों का एक सेट भी पेश किया. जो अंग्रेजी राजस्व अधिकारी इकट्ठा करने आए थे, उन्हें किसानों ने वापस भेज दिया और टैक्स के दस्तावेजों को फाड़ दिया.
मंदिरों में आज भी ‘जिंदा’ हैं जवान
ईसुरु विद्रोह की खबर सुनकर मैसूर के महाराजा जयचामराज वोडेयार ने अंग्रेजों से कहा, येसुरु कोट्टारु एसुरू कोदेवु यानी हम आपको कई गांव दे सकते हैं लेकिन ईसुरु नहीं. महाराजा ने यह भांप लिया था कि ईसुरु ने जो किया था उससे देश के अन्य गांवों को एकता का संदेश जाएगा और वह दिन दूर नहीं जब इस धरती से अंग्रेज विदा होंगे. आज भी यहां बने मंदिर में देश के उन क्रांतिकारों की तस्वीरें रखी हैं, जिन्होंने ब्रिटिश शासन से देश को आजाद कराने के के लिए अपने जीवन का बलिदान दे दिया.
शहीदों को नमन
ईसुरु में एक पत्थर पर गोरप्पा, ईशवरप्पा, जिनहल्ली, मलप्पा, सूर्यानारायणाचर, बडकहल्ली हलप्पा और गौडरशंकरप्पा के नाम लिखे हैं, जिन्हें 8 मार्च, 1943 में ब्रिटिश राज के खिलाफ बगावत करने पर फांसी की सजा दे दी गई थी. द बिग पोस्ट ऐसे सेनानियों को नमन करता है.