दो सरहदों की दूरियां मिटा रहे कलमकार की कहानी

किसी भी दो देशों की सरहदें दोनों देशों की राजनीति की दिशा तो तय करती ही है समय और समाज को गढ़ कर उसे पुष्पित करती हैं। दोनों देशों की साझा संस्कृतियों की मिठास दोनों देशों के सामाजिक, आर्थिक, और राजनीतिक कैनवास पर चटख रंग भर उसे उर्जावान करती हैं, पर सरहदों पर माहौल बिगड़ जाए तो इसका भी सीधा असर दोनों देशों के जन मन और शासन पर पड़ता है। इसमें सबसे ज्यादा प्रभावित वे लोग होते हैं जो सरहद के आसपास रहते हैं। इसलिए हम सरहदों की कड़वाहट खत्म कर रिश्तों में मिठास भरने का प्रयास कर रहे हैं”।

कहते हैं पेशे से पत्रकार अमरेन्द्र तिवारी। अमरेन्द्र, मीडिया फॉर बॉर्डर हारमोनी संगठन के फाउंडर हैं। फिलहाल यह संगठन भारत और नेपाल के साझा संबंधों को मजबूत करने में जुटा है। इस पहल का असर भी दिखने लगा है। अमरेन्द्र कहते हैं कि हमारा संगठन मुख्य रूप से दो तरह के कार्यक्रम चलाता है। एक तो हम भारत और नेपाल में हर वर्ष दो बड़े वैचारिक कार्यक्रमों का आयोजन करते हैं जिसमें दोनों देशों के ब्‍यूरोक्रेट्स, राजनेता और पत्रकार मौजूद रहते हैं। दूसरा हम सालों भर दोनों देशों की सीमाई इलाकों में भारत-नेपाल में मैत्री संवाद और बैठकों का आयोजन करते हैं, जिससे स्थानीय स्तर पर आ रही समस्याओं को मिल-बैठकर सुलझाया जा सके।

अमरेन्द्र को इस संगठन की स्थापना का ख्याल तब आया जब भारत और नेपाल के बीच रिश्तों में कड़वाहट आने लगी थी और खुली सीमा पर कंटीले बाड़ लगाने की बात की जाने लगी थी। अमरेन्द्र खुद नेपाल भारत सीमा के निकट मोतिहारी के रहने वाले हैं ।
उन्होंने बचपन से ही दोनों देशों की साझी विरासत की मिठास देखी है। वो कहते हैं कि भारत और नेपाल में एक अटूट रिश्ता है। दोनों के देवी- देवता से लेकर शादी ब्याह तक। इसी कारण इसे लोग बेटी–रोटी का रिश्ता कहते हैं पर कुछ दुष्प्रचार की वजह से ऐसा माहौल बनने लगा की सदियों के इस संबंध पर बाड़ लगाने की बात की जाने लगी। ऐसे में रिश्तों की कड़वाहट बढ़ती जाती और साझी संस्कृतियों की बयार हमेशा के लिये खत्म हो जाती। इसे बचाने के लिये हमने संगठन बनाया और जमीन पर उतर बुनियादी समस्याओं को सुलझाने में जुट गए।

मनमोहन सिंह से लेकर मोदी तक ने की तारीफ

दोनों देशों के रिश्तों की मधुरता को बढ़ाने की धुन लिये अमरेन्द्र सन 2014 में तात्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह से मिलकर सरहद पर बाड़ न लगाने और रिश्तों को मधुर बनाने की गुहार लगा चुके हैं। तब मनमोहन सिंह नें इस पहल की काफी सराहना की थी। अमरेन्द्र इस पहल को लेकर भारत के गृह मंत्री राजनाथ सिंह से लेकर विदेश मंत्री सुषमा स्वराज तक से मिल चुके हैं। वहीं नेपाल के राष्ट्रपति विद्या देवी भंडारी और प्रधानमंत्री पुष्प दहल कमल प्रचंड से मिल सीमा पर सौहार्द बनाए रखने की अपील कर चुके हैं। पीएम मोदी ने भी अमरेन्द्र के काम की सराहना की है। अमरेन्द्र के संगठन से दोनों देशों के पत्रकार के साथ ही राजनेता और ब्‍यूरोक्रेट्स जुड़े है।

जेब में सिर्फ सौ रूपए पर पहुंचे पीएम के पास

अमरेन्द्र कहते हैं कि संगठन को सरकार या किसी अन्य संस्था से कोई सहयोग नहीं मिलता। हम तिनका-तिनका जोड़ इसे चला रहे हैं। जीवन यापन के लिये अखबार की नौकरी और उससे प्राप्त आ़य का एक हिस्सा इस संगठन पर खर्च होता है। पहले घर वालों ने इसका विरोध किया पर अब परिवार का पूरा सहयोग मिल रहा है। आगे कहते हैं कि हमारे पास पैसा नहीं है पर हौसला है। अमरेन्द्र यह वाकया याद कर भावुक हो उठते हैं कि जब उन्हें तत्कालीन प्रधानमंत्री से मिलने का समय मिला तो जेब में बस सौ रूपए थे। इसके बाद भी उन्होंने अपना हौसला नहीं कमने दिया। संगठन के कार्य के लिये मीलों पैदल सफर करना अमरेन्द्र के रोज की बात है।

टीम से मिलती है हिम्मत

अमरेन्द्र कहते हैं कि उनकी टीम के सभी सदस्य काफी मेहनती और उर्जावान हैं। जब भी वो निराश होते हैं तो उनकी टीम उन्हें हौसला देती है। अमरेन्द्र कहते हैं कि मुजफ्फरपुर के पूर्व सांसद अजय निषाद और नेपाल के प्रदीप यादव ने संगठन के कारवां को आगे बढ़ाने में काफी मदद की है।

पाकिस्तान से रिश्तों की बेहतरी के लिये भी होगा प्रयास

अमरेन्द्र तिवारी का संगठन नेपाल के साथ–साथ अब भूटान में भी भारत के रिश्तों को मजबूत करने की पहल करेगा। इसके बाद भारत-बांग्लांदेश और भारत–पाक के रिश्तों को बेहतर करने की पहल भी की जाएगी।
फिलवक्त तो अमरेन्द्र तिवारी और उनका संगठन सरहदों की दूरियां मिटा वहां अपनापन की खुशबू भरने में लगा है। इस प्रयास से सीमाई इलाके के लोगों की जिंदगी तो बदल ही रही है यह संदेश भी जा रहा हैं कि सरहदों पर कंटीले बाड़ की नही प्यार और भाईचारे की जरूरत है।

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विवेक चंद्र
विवेक चंद्रhttps://thebigpost.com
उम्मीदों के तानों पर जीवन रस के साज बजे आंखों भींगी हो, नम हो पर मन में पूरा आकाश बसे..

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