इस  गांव में बेटियों के नाम से रौशन हैं दरवाज़े, पढ़ें अनोखे गांव तिरिंग की कहानी

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आज कहानी झारखंड के एक वैसे गांव की जहां घर की मिल्कियत बेटियों के नाम होती है। इस गांव में हर घर के दरवाजे पर घर की बेटियों के नाम का बोर्ड लगा मिलेगा। आमतौर पर जहां घर के मुखिया का नाम लोग मकान के बाहर लगे नेम प्लेट पर लिखवाते हैं पर झारखंड के इस गांव में घर की बेटियों के नाम नेमप्लेट पर लिखवाने की परंपरा चल रही है। क्यों और कैसे शुरू हुई ये परंपरा और क्या है इसका मकसद पढ़िए झारखंड का आदिवासी बहुल छोटे से गांव तिरिंग की अनोखी कहानी।

छोटे- छोटे मकान । ज्यादातर मिट्टी की कच्ची दीवारों वाले घर । दीवारों पर चटख रंग, फूल पत्ते और बेल-बूटे की पेंटिंग ‌।
साफ सुथरी और लीपी हुई देहरी। हर घर के मुख्य दरवाजे के उपर एक बड़ा बोर्ड जिसपर शान से लिखा है घर की बेटियों का नाम और उसके नीचे उनकी मां का।
झारखंड का साधारण सा दिखने वाला गांव तिरिंग वास्तव में असाधारण सोच और जज्बे से लैस है। यह गांव आज देश के लिए प्रेरणा का स्रोत बन चुका है। यहां हर घर के दरवाजे पर बेटियों के नाम लिखे नेम प्लेट दिख जाएंगे।

दरअसल यहां हर घर के बाहर गृह मुखिया के तौर पर बेटियों के नाम बड़े बड़े अक्षरों वाले बोर्ड पर लिखे जाते हैं। इसके पीछे का मकसद बेटियों को
न केवल पहचान और समाज में सम्मान दिलाना हैं बल्कि उनके अधिकारों और महत्व को भी मजबूत करना हैं। इस गांव का टैग लाइन ही है “मेरी बेटी मेरी पहचान”।

ऐसे शुरू हुआ यह खास अभियान

गांव वालों के अनुसार गांव में आदिवासियों के कुल 161 घर है। घरों पर बेटियों के नाम लिखने की परंपरा तब शुरू हुई जब इस गांव की जनसंख्या में लड़कियों का लिंगानुपात लड़कों की अपेक्षा कम होने लगा। तब साल 2016 में जिले के तात्कालिक डीसी संजय पाण्डेय ने इस खास पहल की शुरुआत। इसके लिए गांव वालों और सामाजिक संगठनों से बात कर इस अभियान के लिए राजी किया गया।


गांव की आंगनबाड़ी सहायिका सुलोचना कहती है

“आदिवासी समाज में वैसे तो बेटियों और बेटों के बीच भेदभाव नहीं किया जाता है पर इस गांव में बेटियों की घटती तादाद चिंतित करने वाली थी। जब तात्कालिक डीसी ने इस गांव को मेरी बेटी मेरी पहचान अभियान के लिए चुना तो गांव वालों ने इसमें बढ़-चढ़कर कर हिस्सा लिया। अब यह इस गांव की परंपरा बन गई है। इसका असर भी दिखता है। यहां की हर बेटियां स्कूल जाती है और पढ़ लिख रही हैं।”

गांव की बेटी उषा रानी सरकार कहती हैं।

मैं जब भी दरवाजे पर लगा अपने नाम का नेमप्लेट देखती हूं मेरा आत्मविश्वास कई गुना बढ़ जाता है। यह हमें मजबूती देता है और एक जिम्मेदार नागरिक बने रहने की चुनौती भी। “

लौह नगरी जमशेदपुर से इतनी दूर है तिरिंग

तिरिंग गांव झारखंड के पूर्वी सिंहभूम जिले में स्थित है और लौह नगरी जमशेदपुर से लगभग 30 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यह गांव मुख्य रूप से कृषि पर आधारित है,यही यहां के लोगों की आजीविका का मुख्य साधन है।

हालांकि, यहां की अर्थव्यवस्था अन्य क्षेत्रों की तुलना में बहुत मजबूत नहीं लेकिन , लेकिन शिक्षा और सामाजिक सुधारों के चलते यह गांव तेजी से प्रगति की इबारत लिख रहा है।

बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ का सजीव उदाहरण

बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ अभियान को जहां सरकार और सामाजिक संस्थाएं बढ़ावा दे रही हैं, वहीं तिरिंग गांव ने मेरी बेटी मेरी पहचान को अपने जीवन का हिस्सा बना लिया है। यहां के लोग यह मानते हैं कि बेटियां किसी से कम नहीं हैं और उन्हें भी समान अवसर मिलने चाहिए। दरवाजों पर बेटियों के नाम लिखने की यह पहल इस सोच को और मजबूत करती है।

हर फैसले में भी बेटियों की राय

इस परंपरा ने गांव में बेटियों के प्रति सोच को बदला है। अब यहां माता-पिता गर्व से न सिर्फ अपनी बेटियों के नाम अपने घर के मुख्य द्वार पर लिखवाते हैं। बल्कि हर प्रमुख फैसलों में भी बेटियों की राय भी लेते हैं।

उदार होता है आदिवासी समाज

इस गांव का कई बार दौरा कर चुके झारखंड के युवा पत्रकार समीर कहते हैं

“आदिवासी समाज में महिलाओं के प्रति स्वतंत्रता और समानता का नजरिया प्राचीन काल से ही है। यह उनकी संस्कृति का हिस्सा है। दूसरी बात यह कि यहां के लोग किसी भी बात का दिखावा नहीं करते वो आपके साथ दिल से जुड़ते हैं। यही वजह है कि जब तात्कालिक जिला प्रशासन ने इस गांव में मेरी बेटी मेरी पहचान अभियान की शुरुआत की तो तिरिंग गांव के लोग इस अभियान के साथ न सिर्फ पूरे मन से जुड़े बल्कि इसे एक परंपरा का रूप ही दे दिया। मुझे लगता है यह आदिवासी समाज में ही संभव है और यह आदिवासी समाज की खुबसूरती भी है जहां कोई दिखावा नहीं होता। “

 

फैल रही शिक्षा और समानता की रोशनी

इस पहल का सबसे सकारात्मक प्रभाव शिक्षा के क्षेत्र में देखने को मिल रहा है। गांव में लड़कियों की स्कूल छोड़ने की दर में कमी आई है और उच्च शिक्षा के प्रति जागरूकता काफी बढ़ी है।

समाज के लिए एक नई राह

जहां जहां देश के महानगरों में महिलाओं के प्रति भेदभाव और महिला हिंसा की खबरें चिंता में डालतीं है। वहीं झारखंड का यह छोटा सा गांव तिरिंग गांव की यह पहल पूरे देश के लिए एक प्रेरणास्रोत है।

यह दिखाता है कि बदलाव सिर्फ सरकारी नीतियों से ही नहीं, बल्कि उन नीतियों को लोगों की सोच से जोड़ने की है जब समाज बेटियों को दिल से बराबरी का दर्जा देगा, तभी महिला सशक्तिकरण का सपना साकार हो सकेगा।

झारखंड का तिरिंग के बदलाव की पहल यह बताती है कि अपने समाज में छोटी-छोटी सकारात्मक बदलाव करें, तो उसका दूरगामी प्रभाव पूरे देश पर पड़ सकता है।

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