दो भाइयों निखिल – नितिन की जोड़ी ने बिजनेस को दिया आकाश आज ‘BATIDO’ कैफे सात राज्यों में फैला

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भूख मिटाने के लिए लिए कभी सूखी रोटी पानी में डूबो कर खाते। । खास जरूरत के लिए सहकर्मी से 100 रूपए उधार मांगा, जब पैसे होते हुए भी सहकर्मी ने रूपए उधार नहीं दिए। तब भीगी आंखों ने एक सपना  गढा और हृदय ने मजबूत हो इस सपने को जमीं पर उतारने का संकल्प लिया। आज छोटे भाई नितिन के साथ कैफे चेन , BATIDO के मालिक हैं। ब्यूटी और कास्मेटिक प्रोडक्ट का भी बिजनेस बुलंदी पर है। महज  8 हजार की पगार पर नौकरी करने वाले निखिल बाबू ने भाई नितिन के साथ  मिलकर कैसे खड़ा किया भारत की मशहूर कैफे BATIDO.का साम्राज्य, इस लेख में पढ़िए उनकी दिलचस्प कहानी…

वो बहुत संघर्ष के दिन थे तब पटना में एक छोटे से कमरे में हम पांच लोग रहते थे। फर्श पर ही सोना होता था। सैलून में काम करता था। थोड़े से जो पैसे मिलते उसे घर भेज देता।  मैंने भूख मिटाने के लिए पानी में सूखी रोटी डूबा कर कई-कई दिनों तक खाएं हैं।
बस मन में यह भाव रहता था कि मुझे और भी बेहतर करना है। खुब मेहनत करनी है।
अपने पुराने दिनों को याद करते हुए निखिल बाबू की आंखें डबडबा जाती है।
और केरल के निखिल को पटना से प्यार हो गया
 निखिल अपने जीवन संघर्ष की दास्तान आगे बताते हुए कहते हैं कि हम केरल के मूल निवासी हैं। बिहार आना एक इत्तेफाक जैसा था। शायद  फिर किस्मत ने मेरी सफलता के लिए बिहार को ही चुना था। केरल में बिहार का नाम आते ही लोग अजीब सा चेहरा बना लेते थे। कुछ लोग बिहार के नाम पर डरावनी कहानियां सुनाते तो कुछ इसे पिछड़ा प्रदेश बनाते। मुझे भी जब पहली बार इंटर्नशिप के लिए बिहार भेजा गया तो मन में कई तरह के सवाल थे , डर भी था। जब यहां आया तो देखा ऐसा कुछ भी नहीं। यहां के लोग काफी मिलनसार और मददगार हैं। हां इक्के-दुक्के नकारात्मक लोग तो आपको हर प्रदेश में मिल जाएंगे जो यहां भी हैं। आप सोचिए मुझे बिजनेस में यहां के लोगों का समर्थन नहीं मिलता तो मैं केरल का आदमी यहां कैसे अपना बिजनेस खड़ा कर पाता। , रहन सहन केरल और बिहार का बहुत अलग है , शुरू शुरू में भाषा की समस्या भी आती थी पर जब दिल की भाषा मिलती हो तो सब खुबसूरत हो जाता है। अब मुझे यह लगता ही नहीं कि यह मेरा बर्थ प्लेस या अपना स्टेट नहीं है। यहां के लोगों मेरे मुझे दुख -सुख में साथ दिया है। सच कहूं तो अब पटना और बिहार मेरे दिल की धड़कन बन चुके हैं। पटना से इतना प्यार हो गया है  वो गीत है न कि’ जीना यहां मरना यहां। लव यू पटना।
‘वो पुराने दिन…’
आठ हजार की पगार से करोड़ों का सफर
निखिल बताते हैं कि मेरा जन्म केरल में जन्म हुआ और शिक्षा – दीक्षा भी केरल से ही हुई।‌माता जी स्कूल में अध्यापिका थीं और पिताजी दुबई की एक कंपनी में काम करते थे। बाद में पिताजी ने केरल में ही अपना खुद का छोटा सा बिजनेस कर लिया। सब कुछ ठीक चल रहा था पर  इंटर की पढ़ाई करने के दौरान ही मेरे जीवन की एक दुखद घटना घटी। पिताजी का निधन हो गया। इस घटना ने मुझे अंदर से तोड़ दिया। मेरा एक छोटा भाई भी है। मुझे इसके बाद हर वक्त घर की चिंता सताती रहती। मुझे  लगता की मेरे कंधे पर घर की जिम्मेदारी है। मैंने अपने सभी सपनों का त्याग कर दिया और तकनीकी शिक्षा की और कदम बढ़ाया। अब मैं जल्द से जल्द पैसा कमाना चाहता था ताकि घर की जिम्मेदारी उठा सकूं।
माता – पिता
इसके लिए मैंने फायर सेफ्टी का कोर्स किया। फिर कई शॉर्ट टर्म कोर्सेज किए । मकसद यह रहा कि मुझे जल्द काम मिल जाए । इसी क्रम में केरल के कोच्चि से 6 माह का कोर्स सैलून इंडस्ट्री मैनेजमेंट का किया। फिर स्पा मैनेजमेंट का क्रैश कोर्स किया। 6 माह के सैलून इंडस्ट्री के कोर्स के दौरान ही जर्मनी की एक कंपनी ने हमारे संस्थान से कुल 40 छात्रों में से दो छात्रों का चुनाव कैंपस सलेक्शन के तौर पर किया। उपर वाले का आशीर्वाद था कि उन दो छात्रों में एक छात्र मैं भी था।
थमा नहीं संघर्ष का सफर
निखिल बाबू आगे कहते हैं कि कैंपस सलेक्शन में चुने जाने के बाद मुझे लगा कि अब सुख वाले दिन आ गए पर किस्मत के दरवाजे पर अभी भी संघर्ष ने हीं दस्तक दी थी । हमें बताया गया कि इंटर्नशिप के लिए हमें बिहार भेजा जाएगा। उन दिनों बिहार का नाम आते ही लोगों ने मुझे डरना शुरू कर दिया। मैं खुद भी सहमा हुआ था पर परिवार का हितों के लिए मेरा कमाना जरूरी था सो मैंने इंटर्नशिप के लिए हां कर दिया और बिहार की राजधानी पटना आ गया।
मैंने यहां एक सैलून में इंटर्नशिप की और इसके बाद वही काम भी मिल गया।  मुझे तब 8 हजार रुपए पगार मिलती थी। मैं ज्यादा से ज्यादा पैसा अपने घर भेज देता था। यहां का संघर्ष काफी कठिन था। जैसा की मैंने पहले बताया कि हम पांच लोग एक छोटे से कमरे में रहते थे और पैसे खत्म हो जाते सब्जी , दाल कुछ भी नहीं होती। सुखी  रोटी हलक से उतरती नहीं तो मैं रोटी को पानी के साथ डूबों कर खाता था। यह क्रम लंबा चला । कभी कमरे में मित्र अपनी सब्जी में से शेयर कर देते। मैं सैलून में खुब मन लगाकर काम करता था। बाद में मेरे काम से प्रभावित हो कर सैलून वाले ने मेरी तनख्वाह में कुछ इजाफा भी किया पर यह अब भी प्रयाप्त नहीं था।
घर दूर और छुट्टी मिलती नहीं
निखिल बताते हैं कि सैलून के काम में छुट्टी बहुत कम मिलती थी । साल में एक बार 10 दिनों की छुट्टी मिलती 6 दिन तो पटना से केरल और केरल से पटना आने जाने में ही निकल जाते।
पूर्व मंत्री रामकृपाल यादव के साथ निखिल बाबू
इस घटना ने बदल दी जिंदगी
तमाम संघर्ष के बीच समय और जिंदगी दोनों बीत रही थी। इस बीच एक ऐसी घटना घटी जिसने मेरी जिंदगी बदल दी। मैं जिस सैलून में काम करता था वहां मेरे एक सीनियर थे। उनकी तनख्वाह भी काफी ज्यादा थी और टीप भी उन्हें खुब मिला करते। एक बार मुझे 100 रुपए की जरूरत थी और मेरे पास पैसे नहीं थे।
मैंने उनसे 100 रुपए उधार मांगे। मुझे मालूम था कि उनके पास पैसे हैं पर उन्होंने मुझे 100 रूपए नहीं दिए। मुझे काफी दुख हुआ। उसी वक्त मन में विचार आया कि मुझे ज्यादा पैसा कमाना है। कुछ कर दिखाना है।  मैंने मन में संकल्प लिया। पूंजी थी नहीं। न कोई बैकअप, न कोई गॉडफादर पर एक विश्वास था कि सफलता मिलेगी जरूर। मैं सैलून का काम अच्छे से करता और खाली समय में दिमाग में बिजनेस आइडिया ढूंढता। मैंने बचपन में पिताजी को बिजनेस करते देखा था । मुझे भरोसा था कि बिजनेस तो मैं कर ही लूंगा।

फिर जोड़ा एक एक पैसा

100रूपये उधार न देने की इस घटना ने निखिल को अंदर से तोड़ दिया था। अब वे भारी मन से खुद का हौसला और एक एक पैसा जोड़ने लगे। उन दिनों सैलून इंडस्ट्री काफी तेजी से उभर रही थी। उसमें इंटिरियर से लेकर स्टोर फर्नीचर आदि की जरूरत पड़ती थी। मैंने समय निकाल कई स्थानीय नए सैलून का भ्रमण किया। फिर सैलून निर्माण की सामग्री उपलब्ध करवाने वाली कंपनी के बारे में जानकारी हासिल की। एक कंपनी मिली CASA ये काफी कम दर पर स्टाइलिस्ट सैलून सॉल्यूशन उपलब्ध कराती थी। संयोग यह कि उनका बिहार में कोई बंदा नहीं था। मैंने नंबर खंगाल वहां फोन मिलाया और सेल्स के लिए बात की। बात जम गई। उन्होंने मुझे कुछ कैटलॉग PDF भेजा।

CASA का पहला ऑर्डर

निखिल कहते हैं कि अब चुनौतियां बड़ी थी। सैलून की नौकरी भी तत्काल नहीं छोड़ सकता था। क्योंकि दो वक्त की रोटी उससे ही चल रही थी। इधर नया काम बढ़ाने के लिए समय चाहिए था। अब मैंने और मेहनत शुरू कर दी। मैं छुट्टी के दिन चार बजे सुबह उठकर बस से बिहार के दूसरे शहरों में जाता । नए सैलून विजिट करता। उन्हें CASA का प्रोडक्ट दिखाता। यह क्रम चलता रहा। चार माह के बाद मुझे पहला आर्डर मिला। यह बड़ा ऑर्डर था। मुझे 75% एडवांस पैसे मिले। मैंने यह पैसा कासा को भेजा और कहा मेरा कमिशन वह अपने पास ही रखे। फिर दूसरा तीसरा ऑर्डर दिया। पैसा उन्हीं के पास छोड़ दिया।

अब मेरे पास थी ब्यूटी ग्लैक्सी
मैं निरंतर अपने काम में जुटा रहा। बोरिंग रोड गली में एक छोटी सी जगह ली। CASA वालों के पास कमिशन के जमा पैसे के बदले ब्यूटी प्रोडक्ट्स मंगवाया और अपनी पहली दूकान ब्यूटी ग्लैक्सी खोली। मेरे सपनों की पहली मंजिल थी यह। ब्यूटी ग्लैक्सी में सेल काफी अच्छा हो रहा था। इधर CASA  के पास मैं लगातार ऑर्डर भेज रहा था मुझे पता भी नहीं चला कि कब मैं बिहार और झारखंड का सबसे अधिक सेल करने वाला बन गया। CASA ने मुझे सम्मानित किया। अब हम बिहार और झारखंड में CASA के डिस्ट्रीब्यूटर हैं। काम बढ़ता गया तो पहले की जगह कम पड़ने लगी फिर उसे गोदाम बनाया और एक बड़ी सी जगह ली ब्यूटी ग्लैक्सी के लिए। CASA ने यहां भी मदद की और दस लाख का सामान भेजा। ब्यूटी ग्लैक्सी की ब्यूटी अब और निखर गई।
निखिल -नितिन की जोड़ी वाला BATIDO
निखिल बताते हैं कि मेरा बिजनेस बढ़ रहा था। उधर छोटे भाई नितिन की बीटेक की पढ़ाई भी हो चुकी थी। वह वहां  नौकरी भी कर रहा था। मैंने भाई को भी केरल से बिहार बुला लिया। अब मेरा काफी काम भाई संभालने लगा। हमने बिजनेस को टेक्नोलॉजी से जोड़ा। इसी समय भाई  नितिन ने यहां के मार्केट का रिसर्च किया तो पाया कि यहां के युवाओं में शेक के प्रति दिलचस्पी काफी है पर यहां बेहतर तरीके के शेक उपलब्ध नहीं हैं एक दो बड़े महंगें ब्रांड को छोड़कर। फिर भाई के साथ बातचीत हुई। भाई ने सेक के फ्लेवर पर काफी काम किया। अब हम एक नये वैंचर के लिए तैयार थे।
स्पेनिश  नाम स्वाद लाजवाब
निखिल बाबू के भाई नितिन बताते हैं कि हमें पटना के बोरिंग रोड़ में गोल्ड जिम के पास यह जगह मिली। ब्रांड के लिए हमने नाम रखा BATIDO यह एक स्पेनिश भाषा का शब्द है जिसका मतलब मिल्क शेक।  होता है। दरअसल हम यहां युवाओं को कुछ नया देना चाहते थे वो भी उनके ही बजट में।
नितिन आगे कहते हैं कि हम बिहार में पहली बार शेक में डिफरेंट फ्लेवर लेकर आए। हमने लीची, आम जैसे वेरिएशन की शुरुआत शेक में की। दूसरे ब्रांड जहां 600 एम एल के लिए 180 रूपये  लेते हैं वहीं हम 60 रूपए में 600 एम एल गुणवत्ता पूर्ण शेक उपलब्ध करवाते हैं। नितिन आगे बताते हैं कि हमने पहले दिन से ही गुणवत्ता का ख्याल रखा । ग्लास पर अपना लोगो लगाया। धीरे-धीरे दो तीन माह में माउथ पब्लिसिटी से ही हमारे यहां ग्राहक बढ़ते गए। आज हमारे यहां सबसे अधिक वैसे ग्राहक हैं जो रेगुलर यहां आते हैं।
मस्ती वाला स्वाद
आप एक बार हमारे प्रोडक्ट का स्वाद चख कर देखिए। आप खुद अगली बार जरूर आएंगे। हम लगातार यहां के जायके में नए प्रयोग करते रहते हैं। व्यवहार, बजट ओर स्वाद तीनों मिलकर हमें उन्नत बनाते हैं। जब लोगों का विश्वास बढ़ता गया तो हमने इसके चेन बनाने के उपर ध्यान दिया आज भारत के 6 राज्यों के प्रमुख शहर में 250 आइटम के साथ हमारी मौजूदगी है।  हम इसे दुनिया भर में फैलाना चाहते हैं।
यादगार पल: अपनी पत्नी के साथ निखिल बाबू
बिहारी जीवनसाथी ‘स्नेहा ‘का सहयोग
निखिल यह भी बताते हैं कि इस यात्रा में उनकी जीवन संगिनी स्नेहा श्री भारती का भी काफी सहयोग मिला। वे कहते हैं कि स्नेहा से हमारी शादी लव मैरिज है। वह बिहार के दरभंगा की रहने वाली हैं। हमारी शादी दो राज्यों, दो संस्कृतियों और दो धर्मों का मिलन है। स्नेहा से शादी के पहले 4 साल तक हम रिलेशनशिप में रहे। मुझे अब भी मलाल है कि मैं उसे उन दिनों बिजनेस के कारण काफी कम वक्त देता था।

 

उसने बस  स्टैंड पर मेरे लिए घंटों इंतजार किया है। आज मैं जो भी हूं उसमें स्नेहा की भूमिका अहम है। उसका सहयोग अहम है। आज हमारा दो साल का  बेटा है इयान

मुस्कुराती रहें जिंदगी: परिवार के साथ निखिल

संयुक्त परिवार खुशियों की चाभी

निखिल बाबू कहते हैं कि अब मां भी हम लोगों के साथ ही रहतीं हैं। हमारा परिवार संयुक्त रूप से साथ रहता है। पैसा जीवन के लिए जितना अहम है उससे अधिक आपका परिवार। संयुक्त परिवार खुशियों की चाभी की तरह हैं। यहां हर कोई एक दूसरे का ख्याल रखता है।

नया वेंचर
जल्द आएंगे नए प्रोजेक्ट
निखिल और नितिन बताते हैं कि हम जल्द नये प्रोजेक्ट को सामने लेकर आने वाले हैं।  हमने B bowl की नई श्रृंखला भी प्रारंभ की है । हम B bowl को भी देश भर में लेकर जाना चाहते हैं।

वे  आगे कहते हैं कि हम यह कभी नहीं छुपाते की हमने बिहार की धरती से अपनी शुरुआत की है। हम चाहते हैं कि भारत के  लोगों को रोजगार देने में हमारी भी भूमिका हो। हम दुनिया के सबसे युवा देश के नागरिक हैं हमारे सपने भी जवां होने चाहिए और हौसला भी। युवा खुद को कोसने की जगह अपने को रोजगार की ओर बढ़ाएं। बिजनेस या नौकरी जो भी चुनें दिल से करें तभी आपको खुशी भी दिल की गहराइयों से महसूस होगी।

निखिल और नितिन वैसे युवाओं के लिए प्रेरणा श्रोत है जो अपना व्यवसाय तो करना चाहते हैं पर पूंजी और अन्य संसाधनों के आभाव का रोना रो उसे शुरू नहीं कर पाते। यह कहानी बताती है कि अगर मन में मजबूत इच्छाशक्ति हो तो सफलता मिलकर ही रहेगी।

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