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आंखों में आदिवासियों की बदतर जिंदगी का दर्द , दिल में हालात बदलने का जज्बा और अपने गुरु शिबू सोरेन के बताए पथ पर चलते रहने का संकल्प। यह कहानी उस शख्स की है जिन्होंने अपनी जवानी झारखंड आंदोलन की आंच में होम कर दी। जेल भी गए पर टूटे नहीं। अपने प्रण को कठिन परिस्थितियों की आंच में तपाकर कुंदन बना दिया। लड़ाईयां लड़ी, हक के लिए आवाज बुलंद किया और झारखंड अलग राज्य के निर्माण में बनें मील का पत्थर। आज ‘राजनेता’ में कहानी अलग झारखंड राज्य के मजबूत स्तंभ और शिबू सोरेन के प्रिय शिष्य  रबींद्रनाथ  महतो की…

बात उन दिनो की है जब मेरी पढ़ाई चल रही थी। सपना एक आम आदमी की तरह एक अदद नौकरी कर घर- गृहस्थी बसाने- चलाने का था। इसी बीच जब भी एकांत में बैठता मन आदिवासी समाज के हाशिए पर होने का जबाव तलाशने लगता। उस वक्त झारखंड संयुक्त बिहार का हिस्सा हुआ करता था। पता चला कि सरकार की योजनाओं में संथाल परगना और छोटानागपुर के लिए जगह काफी कम होती है। विकास के सारे पैमाने पटना और बड़े शहरों की पैमाईश तक सिमट जाते हैं। हमारे मूलवासी, आदिवासी के लिए न उस वक्त की सरकार सोचती न बड़े नेता। यहां तक की जो पढ़े लिखे युवक थे उनकी नौकरी भी यहां नहीं लगती थी। बेरोजगारी एक श्राप की तरह था।
मैं हमेशा इस इलाके के पिछड़ेपन को दूर करने के उपाय सोचता, यहीं से मेरे मन में बदलाव की या यूं कहें राजनीति का बीज पनपा जिसे दिशोम गुरु शिबू सोरेन के सानिध्य ने एक वृक्ष बना दिया कहते हैं झारखंड विधानसभा के अध्यक्ष रबींद्रनाथ महतो  ।

शिबू सोरेन से मुलाकात ने बदली दिशा

रविन्द्र नाथ महतो आगे बताते हैं कि युवा काल में ही हमने दिशोम गुरु शिबू सोरेन के बारे में काफी सुना था। कालेज की पढ़ाई के दौरान दोस्तों के बीच भी उन्हें लेकर चर्चा होती थी। शिबू सोरेन उस वक्त जल ,जंगल ,जमीन और आदिवासियों के अधिकार के मुद्दे पर काफी मुखर होकर आंदोलन चला रहे थे। मन में इच्छा थी कि एक बार गुरूजी शिबू सोरेन से मुलाकात हो। समय ने यह भी साकार कर दिया, मेरे मुलाकात शिबू सोरेन से हो गई। पहली ही मुलाकात में शिबू सोरेन के विचारों ने मुझे काफी प्रभावित किया। मुझे लगा कि इन विचारों पर चलकर ही आदिवासी और मूलवासी के हक और हुकूक की लड़ाई लड़ी और जीती जा सकती है। फिर मैं गुरूजी शिबू सोरेन से करीब होता गया और इस आंदोलन का एक मजबूत सिपाही बन गया। शिबू सोरेन को भी मेरा कार्य भाने लगा वे मुझे नई- नई जिम्मेदारियां देते और मैं उसे वक्त पर पूरा करता।

धीरे- धीरे तात्कालिक बिहार सरकार ने हमारी मांगों पर विचार करने का आश्वासन दिया। तब इन इलाकों के विकास के लिए कुछ योजनाएं भी बनी। इन सब के बाद भी झारखंड को उपनिवेश वाद जैसी व्यवस्था से मुक्ति नहीं मिली। शिबू सोरेन के नेतृत्व में हमारा आंदोलन और तेज होता गया। हमने अलग झारखंड राज्य के गठन की मांग की और काफी संघर्ष के बाद उसे हासिल भी किया।

और कदम बढ़ते रहे

रबींद्रनाथ महतो का  जन्म 12 जनवरी 1960 को जामताड़ा के पाटनपुर में बेहद सामान्य परिवार में हुआ था । पिता रिटायर्ड शिक्षक हैं । घर में शिक्षा का माहौल प्रारंभ से ही था। प्रारंभिक पढ़ाई जामताड़ा के स्थानीय विद्यालय में हुई ।उच्च शिक्षा के लिए भागलपुर विश्वविद्यालय से स्नातक की पढ़ाई की इसके बाद और उत्कल विश्वविद्यालय से बीएड किया।

लिखने पढ़ने में काफी रूचि

शांत विचारों वाले रविन्द्र नाथ महतो की दिलचस्पी पढ़ने -लिखने में काफी है। अब भी जब उन्हें समय मिलता है वे नई किताबें पढ़ने में जुट जाते हैं। उन्होंने कई किताबें भी लिखी है । विचारों के ग्यारह अध्याय इनकी काफी चर्चित पुस्तक है। इसके साथ ही झारखंड के आदिवासी ग्रामीण व्यवस्था पर इनका काफी ज्यादा अध्ययन है।

रुलर इकोनॉमी पर लिखने की ख्वाहिश

रविन्द्र नाथ महतो कहते हैं कि आज ग्रामीण परिवेश में बड़ा बदलाव आ रहा है। परिवार की ऑइडियोलॉजी ध्वस्त हो रही है। बाजार का प्रवेश परिवार के अंदर हो गया है। संयुक्त परिवार लगभग खत्म हो गए हैं। पहले गांव की गृहस्थी का अपना एक अर्थशास्त्र होता । वह बाजार के अर्थशास्त्र से काफी अलग होता था। वहां सबकी जरुरतों की पूर्ति आसानी से हो जाती थी। मैं समय मिलते ही रूलर इकोनामी पर एक किताब लिखना चाहता हूं।

युवा राजनीति से विधानसभा अध्यक्ष तक का सफर

पहली बार  रबींद्रनाथ महतो  ने दिग्गज नेता और नौ बार के विधायक रहे डा. विशेश्वर खान को टक्कर दी। हालांकि पहली बार उन्हें सफलता नहीं मिली। इसके बाद नाला विधानसभा से साल 2005 के चुनाव में उन्होंने जीत का परचम लहराया। साल 2009 का वह विधानसभा चुनाव हार गए। उसके बाद लगातार उन्होंने दो विधानसभा चुनावों में भारी मतों से जीत हासिल की। फिलहाल  रबींद्रनाथ  महतो झारखंड विधानसभा के अध्यक्ष हैं।

सबके साथ से बदलेगी सूरत

अलग झारखंड राज्य बनने के बाद झारखंड कितना बदला सवाल के जबाव में  रबींद्रनाथ महतो कहते हैं अब तक यहां संपूर्ण बदलाव नहीं हुआ है। एक आंशिक बदलाव ही हो पाया है अब तक। आपको संपूर्ण बदलाव के लिए सभी दल को एक पवित्र मकसद के साथ एकजुट होना पड़ेगा। वे आगे कहते हैं कि झारखंड के युवा मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन आदिवासी हित में काफी प्रयास कर रहे हैं लेकिन एक नेता का प्रयास प्रयाप्त नहीं सभी को एक साथ आना पड़ेगा। बंटकर रहने से बल नहीं मिलता है।

आज की राजनीति में वस्तु के प्रति आकर्षण

रबींद्रनाथ महतो बताते हैं कि जब हमने राजनीति की शुरुआत की थी उस वक्त लोग देश हित में आंदोलन से जुड़ते थे। स्वयं के प्रति सुख प्राप्त करने की भावना नहीं थी। इन दिनों राजनीति में वस्तु के प्रति आकर्षण बढ़ता जा रहा है यह देश के लिए हितकर नहीं है। आज राजनीति को सही सोच और सही दिशा देने की जरूरत है।

युवाओं में राजनीतिक सोच जरूरी

रबींद्रनाथ महतो कहते हैं कि आज राजनीति के सही अर्थ को समझने और सही सोच रखने की जरूरत है। इस कार्य में युवाओं को आगे आना होगा। युवा ही बदलाव के वाहक बन सकते हैं। वे कहते हैं कि मैं हमेशा से युवाओं को राजनीति समझने और इसके प्रति सकारात्मक नजरिया रखने की अपील करता हूं। विधानसभा अध्यक्ष बनने के बाद मैंने हर साल छात्र संसद जैसे कार्यक्रम आयोजित करवाया है।

पत्नी ने बढाया हौसला

रबींद्रनाथ  महतो कहते हैं कि आज मैं जो भी हूं उसका बड़ा श्रेय पत्नी को भी जाता है। पत्नी शर्मा देवी ने मेरे सपनों के लिए संघर्ष के दिनों में अपना हर सुख निछावर कर दिया । वे हमेशा मुझे हिम्मत और हौसला देती। परिवार में आज भी मैं कम वक्त दे पाता हूं ऐसे में परिवार को एक सूत्र में वे बांधे रखती हैं। बेटे -बेटियों को भी वे बातों बातों में नैतिक शिक्षा का उजाला भरती रहती है।


खत्म हो अमीर गरीब की खाई

रबींद्रनाथ महतो कहते हैं कि देश में अमीर और गरीब के बीच की खाई को खत्म करने की जरूरत है। गांवों के लोग भी हुनर हो अपनी आजीविका बेहतर ढंग से चला सकें। अर्थव्यवस्था में सुधार और बदलाव की जरूरत है। इस के लिए मैं प्रयास कर रहा हूं। सपना एक ऐसे भारत के निर्माण का है जहां जाति, लिंग, वर्ग भेद न हो और न हो गरीबी की विभीषिका।


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विवेक चंद्र

उम्मीदों के तानों पर जीवन रस के साज बजे आंखों भींगी हो, नम हो पर मन में पूरा आकाश बसे..