बाल अवस्था में ही वक्त ने उस शख्स के सिर से ममता का साया छीन लिया। हृदय रोग से मां के असमय निधन के वक्त उस शख्स ने बाल मन में उभरते दर्द की टीस के बीच एक संकल्प लिया, संकल्प कि किसी बच्चे की मां की मौत समुचित इलाज के अभाव में ना हो जाए, हृदय रोग से किसी की असमय मृत्यु ना हो जाए । इसी संकल्प का दामन थाम हौसलों की डगर पर चलते -बढ़ाते हुए उन्होंने डॉक्टरी की पढ़ाई की और बने प्रख्यात हृदय रोग विशेषज्ञ । आज की कहानी जाने-माने हृदय रोग विशेषज्ञ डॉक्टर अरुण कुमार झा के संकल्प, संघर्ष और सफलता की …
मेरा पैतृक गांव रामनगर, पटना से 350 किलोमीटर की दूरी पर है। मेरा जन्म एक अत्यंत साधारण परिवार में हुआ ।हमारा गांव रामनगर बिहार के साधारण से गांव की तरह ही है। मेरे बचपन के वक्त वहां आम सुविधाएं भी मयस्सर न थी । बाढ़- सुखाड़ की त्रासदी , जहां किसानों के 6 महीने की जमा पूंजी डुबो देती वहीं आम बीमारी इलाज के आभाव में बड़ी बीमारी में तब्दील हो मौत का तांडव रचती। तब हमारे गांव की सरकारी व्यवस्था आज के ‘पंचायत वेब सीरीज’ से कुछ मिलती-जुलती थी। गांव में ही मेरी पढ़ाई लिखाई शुरू हुई। उम्र 9 वीं साल की दहलीज पर दस्तक देने ही वाली थी कि वक्त ने जिंदगी में बेइंतहा दर्द भर दिया। मेरी मां का निधन हृदय रोग से हो गया ।कारण, समुचित इलाज न मिल पाना । उन दिनों हृदय रोग के चिकित्सक काफी कम थे । पटना में इलाज था, पर पटना हमारे गांव से 350 किलोमीटर दूर , और तब यातायात भी सुगम नहीं थे। पैसों का अभाव भी था और जानकारी का भी ।
वो गम मैं आजीवन नहीं भूला
मैं बचपन में ही खुद से प्यार करने वाली मां को इस दुनिया से विदा लेते हुए देखा। उस पल को मैं कभी नहीं भूला। मेरे सर से मां के स्नेह का, उसकी ममता का साया हमेशा हमेशा के लिए उठ गया था ।वह वक्त कितना क्रूर और दर्दनाक था इसे अब भी शब्दों में बयां नहीं कर सकता ।आंखों से आंसू की धार बह रही थी। मन गम से बोझिल था। उसी बाल अवस्था में मेरे बाल मन ने प्रण किया कि मुझे अब डॉक्टर बनना है ।समाज के लिए ,लोगों के समुचित इलाज के लिए, लोगों की सेवा के लिए और लोगों को असमय में मौत के मुंह से निकलने के लिए।
…और पूरा हुआ प्रण
डॉ एके झा की मेहनत रंग लाई और उन्होंने डीएमसीएच से एमबीबीएस किया ।एमडी मेडिसिन Pmch से किया। वहीं FICC, FIACM, MAMS, FIAMS इंडियन कालेज से किया। डॉ झा बताते हैं कि इंदिरा गांधी हृदय रोग संस्थान पटना में विभिन्न पदों पर लंबे समय तक रहने के उपरांत उन्होंने वहां से स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति ले ली।
हृदय रोग पर लंबा रिसर्च
डॉ अरुण कुमार झा को हृदय रोग चिकित्सा का लंबा अनुभव है । वह समय-समय पर दुनिया के प्रमुख चिकित्सा जनरल के साथ ही साथ हृदय रोग पर होने वाले परिचर्चा व अन्य ओरिएंटेशन कार्यक्रमों में हिस्सा लेते रहते हैं। डॉक्टर अरुण कुमार झा प्रेसिडेंट कार्डियो समिति ऑफ इंडिया बिहार चैप्टर से 2022 से 2023 तक जुड़े रहे। इसके साथ-साथ हुई सन 2000 से हॉस्पिटो इंडिया मेडिकल फाऊंडेशन पटना में एक कार्डियोलॉजिस्ट के तौर पर सेवा दे रहे हैं ।डॉक्टर झा नालंदा ओपन यूनिवर्सिटी में ट्यूटर और एग्जामिनर के तौर पर भी जुड़े रहे हैं। 1984 से अब तक में पटना हार्ट क्लिनिक में भी लगातार वें सेवा दे रहे हैं। डॉ अरुण कुमार झा कार्डियक सोसाइटी ऑफ इंडिया बिहार के संगठन सचिव 2009 से 2010 तक रहे। बिहार हार्ट जनरल 2002 से 2003 में भी डॉक्टर झा ने संपादक के तौर पर कार्य किया। पटना के प्रसिद्ध उदयन हॉस्पिटल में डॉक्टर झा नियमित विजिटिंग कार्डियोलॉजिस्ट के तौर पर सेवाएं दे रहे हैं।
कमजोर हो रहा है युवाओं का दिल
डॉ झा बताते हैं कि 10 से 15 वर्ष पहले तक हृदय की बीमारी को लोग 50 से ऊपर उम्र की बीमारी मानते थे पर अब दिल की बीमारी ने तेजी से युवाओं को अपनी चपेट में लेना शुरू कर दिया है । खास तौर पर कोविड महामारी के बाद युवाओं में दिल की बीमारी, हार्ट अटैक जैसे लक्षणों में तेजी से बढ़ोतरी देखी गई है। हार्ट अटैक और उनसे होने वाली मौत के आंकड़ों में युवाओं की तादाद तेजी से बढ़ी है।
आप दिल से बीमार क्यों हो रहे ?
दिल की बीमारियों का युवाओं में तेजी से बढ़ाने के पीछे की वजह बताते हुए डॉक्टर झा कहते हैं कि इसकी सबसे बड़ी वजह है हमारी बदलती हुई जीवन शैली वह आगे कहते हैं कि आज की मॉडर्न जीवन शैली ने व्यक्ति को तनावग्रस्त कर दिया है । मशीनीकरण और इस दौर में लंबे घंटों तक बैठकर काम करना, मोबाइल का स्क्रीन टाइम बढ़ना, जैसी वजह ही है जो आपके जीवन को प्रभावित कर रही है। इसके साथ-साथ पैक्ड और जंक फूड के कारण वजन बढ़ रहा है । भारतीय युवा तेजी से इस कारण डायबिटीज जैसे बीमारियों के शिकार हो रहे हैं। डायबिटीज के बढ़ने से हार्ट अटैक का खतरा बढ़ रहा है।
गुम हुए खेल के मैदान
आज के जमाने में तरुण और बच्चों के लिए खेल के मैदान भी तेजी से घटे हैं। बच्चे ओवरवेट हो रहे हैं। मोबाइल फोन उनका नया खिलौना बन गया है। ऐसे में वह शारीरिक रूप से फिट नहीं हो पा रहे हैं ।डॉक्टर झा आगे कहते हैं कि युवाओं में बढ़ती प्रतिस्पर्धा ने मानसिक तनाव को जन्म दिया है। नशा का प्रयोग भी युवाओं की जीवन शैली का हिस्सा बनता जा रहा है। यह सभी कारक दिल के लिए बहुत ही हानिकारक है।
जिम का साइड इफेक्ट बड़ी वजह
डॉ झा कहते हैं कि बॉडीबिल्डिंग के शौक का फैलाव भी दिल की बीमारियों को बड़ी तेजी से बढ़ा रहा है जिम का साइड इफेक्ट तेजी से बढ़ रहा है जिम का साइड इफेक्ट बताते हुए डॉक्टर झा कहते हैं कि यह चौंकाने वाली बात है अगर मैं यह कहूं कि आप जिस फिटनेस के लिए जिम कर रहे हैं वह आपकी सेहत को हानि पहुंचा रही है और दिल को जोखी में डाल रहा है तो शायद आपको हैरानी हो! पर यह सच है। इन दिनों बॉडीबिल्डिंग का शौक जिस तरह से युवाओं के अंदर चढ़कर बोल रहा है उसके लिए वह अधिक मात्रा में प्रोटीन का सेवन कर रहे हैं ।यह प्रोटीन आपकी सेहत और हृदय के लिए अत्यंत ही हानिकारक है । इसके साथ ही साथ हठात श्रम से भी हृदय पर अचानक जोर पड़ता है । डॉक्टर अरूण कुमार झा कहते हैं कि आजकल अपने खबरों में देखा होगा कि जिम करने के दौरान हृदय गति रुकने से मौत की घटनाएं बढ़ी है। इसके पीछे की वजह यही है।
ऐसे बचे हृदय रोग से
डॉक्टर अरूण कुमार झा बताते हैं कि हृदय रोग से बचने के लिए आपको मोटापा शुगर कोलेस्ट्रॉल पर कारगर ढंग से नियंत्रण रखना होगा। अपने खान-पान की शैली में बदलाव करें और नियमित रूप से व्यायाम करने की आदत विकसित करें । साथ ही तनाव को अपने मन- मस्तिष्क से गुड बाय कह हमेशा खुश रहने की कोशिश करें। डॉक्टर झा आगे कहते हैं कि हृदय रोग का निदान यह है कि हृदय रोग से संबंधित परिवार की फैमिली हिस्ट्री होने पर अवश्य ही आपको जांच करवानी चाहिए।जांच करवाने में कभी भी देर ना करें ।देर से अंधेर होता है। बीपी शुगर एवं टी एम टी जैसे प्राथमिक जांच आपके हृदय की स्थितियों को स्पष्ट करते हैं ।अगर प्राथमिक जांच में कोई गड़बड़ी दिखे तो तुरंत हृदय चिकित्सक के परामर्श लेकर इलाज प्रारंभ करें।
चला रहे जन जागरुकता अभियान
डॉ अरुण कुमार झा हृदय रोगों से बचाव के लिए बड़े पैमाने पर जन जागरूकता की मुहिम भी चलाते रहे हैं। इसके साथ ही ग्रामीण इलाकों में वे जागरूकता कार्यक्रम के साथ निशुल्क हृदय जांच शिविर भी लगाया करते हैं। डॉ झा कहते हैं कि हर जिले में सरकार ने हृदय रोगियों और हृदय रोगों के जांच और इलाज की प्रयाप्त व्यवस्था कर रखी है, जरूरत है जागरूकता की।
सफलता में पिताजी का योगदान अहम
डॉ अरुण कुमार झा अपने जीवन की सफलता में अपने पिता स्वर्गीय विश्वनाथ झा का योगदान काफी हम मानते हैं वह कहते हैं कि पिताजी ने मुझे हर कदम पर हौसला दिया जिससे मैं पढ़ाई और पेशा दोनों के साथ न्याय कर पाया हूं। डॉक्टर अरुण कुमार झा की पत्नी मीना झा भी दूरदर्शी सोच वाली महिला हैं। वह सामाजिक कार्यों में बढ़ चढ़कर का हिस्सा लेती हैं । डॉक्टर झा के पुत्र अमीश कुमार पटना उच्च न्यायालय में अधिवक्ता है ,वही पुत्रवधू डॉक्टर कीर्ति चौधरी पटना विमेंस कॉलेज में असिस्टेंट प्रोफेसर के पद पर कार्यरत हैं।
अपने लिए जिए तो क्या जिए…
डॉ अरुण कुमार झा युवाओं को संदेश देते हुए कहते हैं कि खुद के लिए तो सभी जीते हैं। जीने का सही आनंद दूसरों के लिए जीने में है। वें अपनी पसंदीदा गीत गुनगुनाने लगते हैं …
“अपने लिये जिये तो क्या जिये,
तू जी, ऐ दिल, ज़माने के लिये “
फिलवक्त डॉ अरुण कुमार झा पूरे दिल से दिल के मरीजों के उपचार और इस बीमारी से बचाव के लिए जागरुकता कार्यक्रमो में जुटे हुए हैं। कोशिश यह कि देश का हर इंसान दिल से दुरूस्त रहे और धड़कती रहे सभी के दिल की धड़कनें।